दिल्ली,समाजहित
एक्सप्रेस (रघुबीर सिंह गाड़ेगाँवलिया) l दिल्ली के राजौरी गार्डन स्थित वेव सिनेमा
हाल पर वीरवार 11 जून को रैगर समाज की प्रमुख संस्थाओ के प्रतिनिधियों ने आर्टिकल
15 फिल्म सामूहिक रूप से देखी l जाति विषय को केंद्र में लेकर बनाई गई इस फिल्म को रैगर
समाजके प्रबुद्ध लोगो ने जमकर सराहा है l दर्शक भी फिल्म को काफी पसंद कर रहे हैं
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अनुभव सिन्हा
निर्देशित और आयुष्मान खुराना अभिनीत फ़िल्म आर्टिकल 15 भारतीय संविधान के
अनुच्छेद-15 पर आधारित है। इस अनुच्छेद में कहा गया है कि धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्मस्थान के
आधार पर किसी के साथ भी भेदभाव नहीं किया जाएगा । फिल्म Article 15 में यथार्थ को दिखाया गया है कि भारतीय समाज में जाति के
आधार पर किस प्रकार भेद भाव किया जाता है । पिछड़ी जाति वालों को किस प्रकार से
प्रताड़ित किया जाता है । फिल्म देखने के बाद दर्शक पूछता है कि कब तक चलेगा ये
जातिगत भेदभाव ?
वेव सिनेमा हाल
पर वीरवार 11 जून को रैगर समाज के राम लाल मौर्या, कजोड़ राम मौर्या, रघुवीर सिंह गाड़ेगांवलिया, सोहन लाल पीपलीवाल, मोहन लाल मौर्या, राजेश चांदोलिया, सुनील सबलानिया, फतेह सिंह अटल, हरनारायण कांसोटिया, त्रिलोक चन्द बोकोलिया, कपूर चन्द बछांवादिया, यशवंत कुमार सबलानिया, खुशहाल चंद मौर्या,बलवीर मौर्या, प्रभु दयाल शेरसिया, मनोज कुमार धनवाडिया, चेतन प्रकाश खोरवाल ने सामूहिक रूप से आर्टिकल
15 फिल्म देखी l समाज के लोगो ने फिल्म को जमकर सराहा l
दिल्ली प्रांतीय
रैगर पंचायत शाखा मादीपुर के महामंत्री राजेश चान्दोलिया ने आर्टिकल 15 फिल्म
देखने के बाद कहा कि देश में जातिवाद और धार्मिक उन्माद को दर्शाती इस फ़िल्म के
निर्देशक हैं अनुभव सिन्हा ने वर्तमान ग्रामीण
क्षेत्र की सच्चाई दिखाई है l यह फिल्म भारतीय
समाज के एक कलेक्टिव फेलियर पर बात करती है l
उन्होंने कहा कि भारतीय संविधान में आर्टिकल-15 यानी समानता का अधिकार । इस आर्टिकल-15 में
प्रावधान है कि राज्य किसी नागरिक से केवल धर्म, मूलवंश जाति, लिंग, जन्मस्थान या इसमें से किसी के आधार पर कोई
विभेद नहीं करेगा। भारतीय संविधान का अनुच्छेद-15 किसी भी तरह के भेदभाव को नकारता
है लेकिन क्या अमल में ऐसा होता है? वास्तविकता है कि समाज में जातियों का बोलबाला
है और हम सब वास्तविकता से मुंह चुराकर निकल जाते हैं । आजादी के इतने वर्षों बाद
भी क्या हम भारतीय संविधान के आर्टिकल-15 को सही ढंग से लागू कर पाए हैं । जातिगत
भेदभाव केवल गांवों में ही नहीं बल्कि यह पढ़े-लिखे लोगों में भी है। शहरी और
अंग्रेजी बोलने वाले वर्ग में भी है। बड़े संस्थानों और शिक्षा संस्थानों में भी
है । ये जातिगत भेदभाव वाली समस्याएं सख्त कानूनों के बावजूद बरकरार हैं । दलितों की जमीनी
हकीकत तो वैसी की वैसी ही है ।
सोहन लाल
पीपलीवाल ने कहा कि अनुभव सिन्हा की ‘आर्टिकल 15’ फिल्म में भेदभाव व छुआछूत जैसी ‘संकीर्ण मानसिकता’ की नए सिरे से चीर-फाड़ करती है और एक मनोरंजक
व दिल थमा देने वाली पुलिस प्रोसीजरल थ्रिलर के बहाने जातिवाद के मवाद का
सूक्ष्मतम निरीक्षण करने का बीड़ा उठाती है l जाति व्यवस्था नामक सामाजिक सड़ांध
पर इतनी बेबाकी से बात करने वाली फिल्म शायद हिंदी सिनेमा में इससे पहले कभी नहीं
बनी हो l
मोहन मौर्या ने
कहा कि फिल्म ‘आर्टिकल 15’ में आज के वक्त का कड़वा सच है कि ऊंची जाति के
लोगो द्वारा पैदा किया जातिवाद के कारण समाज में असमानता की खाई बढ़ रही है l ऊंची
जाति के अधिकारी असमानता और अत्याचार के प्रति उदासीन है और वो दलित-पिछड़ी
जातियों को सिर्फ रिजर्वेशन के चश्मे से देखते है l रिजर्वेशन के नाम से समाज
में जहर बोने की इनकी सियासत खूब फल-फूल रही है l
खुशहाल चंद
मौर्या ने कहा कि फिल्म ‘आर्टिकल 15’ की एप्रोच एकदम साफ है कि वह ग्रामीण क्षेत्र
की जातिगत संरचना दिखाकर हर उस शहरी नागरिक तक पहुंचना चाहती है जो जाति व्यवस्था
के सच को स्वीकारता नहीं है, या फिर स्वीकारता
भी है तो उसकी वीभत्सता से अंजान बना हुआ है l चाहे जानकर या फिर अनजाने में ही l दुनिया का सबसे
खौफनाक यथार्थ यही है l गंदगी से लबालब भरे मेनहोल में से एक सफाई कर्मचारी के
बार-बार बाहर आने और अंदर जाने का बेहद प्रभावी तरीके से फिल्माया गया सीन तो इस
कदर हृदयविदारक है l सिनेमेटोग्राफी तो इस कदर उच्च की है कि धुंध, धूसर रंगों और मुर्दा सन्नाटे का उपयोग कर ऐसा अतीत में अटका देहात रच देती है
जहां जैसे कभी सूरज उगा ही न हो और केवल अंधेरे व अन्याय का वास हो l








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