दिल्ली समाजहित
एक्सप्रेस (रघुबीर सिंह गाड़ेगांवलिया) l वर्तमान समय में हम अपने अपने परिवारों और घरों तक सीमित होकर
रह गए है l आपके आस पास में कोई व्यक्ति खुले आम हमारे समाज को अपमानित कर रहा होता है
और हम हमेशा गहरी नींद
में सोए रहते हैं l उस समय हम उस व्यक्ति के विरोध में कोई प्रतिक्रिया प्रकट नहीं करते, यह दुखद और
विचारणीय है l जब कोई समाज असहाय और लज्जित होने लगे, तब समझ लो कि उस समाज के पतन का समय निकट आ गया है l
जब हम एक दुसरे
के सुख-दुःख के विचारों का आदान-प्रदान करते है, समूह में अपने कार्यकलापों की समीक्षा
करते है और एकता के साथ एक मुखिया चुनकर उसके प्रतिनिधित्व में सबके हित के लिए योजनाएं
तैयार करते है, तब हम एक मजबूत समाज का निर्माण करते है l तब हम अपने समाज पर गर्व
करते है और उस समाज का सदस्य होने पर स्वयं को गौरवान्वित महसूस करते है ।
पिछले कुछ दशको
से कुछ सक्रिय व उत्साही सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा सामाजिक संगठन के माध्यम से समाज
सेवा के नाम पर साल में दो-तीन रंगारंग सम्मान समारोह आयोजित करके अपने सामाजिक कर्तव्य
को पूरा हुआ, समझ लेते हैं, यह औपचारिकता हमें अपने
दायरों मे सीमित तो कर ही रही है,
साथ में हमारे नैतिक
व्यवहार पर हमारी व्यक्तिगत महत्वकांछाएं भारी पडने के कारण आपसी भाईचारा, अपनापन और सामाजिक रिश्ते भी प्रभावित हो रहे हैं l
यह हमारा समाज ही
है जो हमारे लिए जीवन मे आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करने का कार्य करता है । अगर
समाज का डर न हो तो इंसान, इंसान नहीं रह सकता है । हम हर पल समाज की शरण
में रहते हैं क्योंकि हम समाज का ही महत्वपूर्ण अंश हैं । समाज की छोटी-छोटी बातें
हमें कुछ सकारात्मक व सार्थक कार्य करने के लिए प्रेरित करती हैं साथ ही गलत करने
से रोकती भी है ।
समाज सेवा का
कार्य, ईश्वरीय सेवा का कार्य है, यही हमारी आत्मा की
शुद्धि का द्वार है l हमारे समाज में कुछ गंभीर बाते हैं, जिन पर आज हमें विचार करने की आवश्यकता है l आज हमे, हमारी सामाजिक एकता की जरूरत है और उसके माध्यम
से हमारे सामाजिक संगठनों को मजबूत बनाने की सर्वप्रथम आवश्यकता है l समाज सेवा के
विविध रूप हैं जैसे शिक्षा,रोजगार, स्वास्थ्य,सामाजिक न्याय व आर्थिक विकास आदि के
क्षेत्र में नैतिक आचरण व निष्ठा के साथ समाज सेवा के कार्य किये जाय l इसके अलावा
समाज में व्याप्त कुरीतियों व बुराईयों जैसे दहेज़ प्रथा, कन्या भूर्ण हत्या, नशा, बाल
मजदूरी व शोषण व अत्याचार इत्यादि समाज सेवा के विराट रूप हैं l समाज सेवा कोई छोटी
या बडी नहीं होती और ना ही इसकी कोई कीमत होती है, बस जरूरत इस बात की होती है कि समाजसेवा
किस भावना से अथवा किस उददेश्य से की जा रही है l
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