दिल्ली, समाजहित एक्सप्रेस (रघुबीर सिंह गाड़ेगाँवलिया) l आज रैगर समाज के सामाजिक परिवेश की बात करे, तो आमतौर पर हम जब किसी व्यक्ति को परमार्थ का कार्य करने को कहते है या समाजसेवा करने को कहते है तो सबसे पहले उसका जवाब होता है कि मुझे क्या मिलेगा ? मुझे इसने या समाज ने क्या दिया है ? मेरा क्या फायदा होगा ? मेरा क्या मतलब है ? मुझे क्या लेना-देना है ? मैं ही समाजसेवा या परमार्थ क्यूँ करू ? समाज के अधिकांश लोग हमेशा कुछ पाने की जुगाड़ मे ही लगे रहते है या पाने की ही सोचते रहते है ।
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जो व्यक्ति समाजहित की दृष्टि से नहीं सोचकर केवल अपने स्वार्थ, अपने व्यक्तिवाद में लगे रहते है, ऐसे व्यक्ति की स्वार्थपरता सामाजिक जीवन के लिए विष के समान घातक है l स्वार्थी व्यक्ति ने अपने पास चाहे कितनी भी शक्ति,सामर्थ,समृद्धि,सम्पन्नता आदि अर्जित कर ली हो और उसकी समृद्धि, सम्पन्नता उसी तक सिमित है, किसी भी रूप में समाज को उसका लाभ नहीं पहुँचता तो उसकी सारी शक्ति,सामर्थ,समृद्धि,सम्पन्नता व्यर्थ है l समाज में व्यक्तिगत भाव का कोई स्थान नहीं है l ऐसे स्वार्थी व्यक्ति का कोई विवेकशील व्यक्ति तो आदर की दृष्टि से देखेगा नहीं l मुर्ख और चापलूस लोग भले ही उसको आदर सम्मान देते रहें l ऐसे स्वार्थी लोग ही समाज का शोषण करते है l परमार्थ की सोच के अभाव में समाज और व्यक्ति दोनों ही नष्ट हो जाते है l
जब कोई स्वार्थी व्यक्ति मर जाता है तो अक्सर सुनने मे आता है कि फलाना-फलाना व्यक्ति दुनिया को छोड़कर चला गया, लेकिन सोचो कि, वो जिंदा था, तब समाज को उससे क्या फायदा था, जो मरने पर नुकसान हो गया । चापलूस लोग कहते है कि, अच्छा व्यक्ति था, तब समाज के लोग कहते है कि, कैसे, जरा समझाये । केवल अपनी पत्नि, बेटा-बेटी और चापलूसों के लिए अच्छे होंगे, समाज क्या लेना-देना ?
अनेक बार अनेक लोग व्यक्तिवाद से प्रेरित होकर यह दावा करने का साहस करने लगते है कि उन्होंने अपना विकास अपने प्रयत्न एवं पुरुषार्थ के बल पर किया है, समाज ने उनकी कोई सहायता नहीं की, बल्कि टांग खीच कर पीछे खीचने का ही प्रयत्न किया है l ऐसे लोग शायद समाज को समझने की भूल करते है l वे केवल उन्हें ही समाज समझ बैठते है जिन्होंने उन्हें प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष सहयोग नहीं दिया होता है l कुछ इने-गिने ही लोग समाज नहीं होते l समाज एक विशाल और व्यापक संस्था है l समस्त समाज जिसका असहयोग करता है उसका विकास तो दूर जीना भी दूभर हो जाता है l
व्यक्ति जो कुछ सीखता है वह समाज में ही समाज से सीखता है और जो कुछ पाता है समाज से ही पाता है l जब व्यक्ति का जन्म समाज में होता है तो, समाज में जन्म के साथ ही, उसको कुछ अधिकार प्राप्त हो जाते हैं और साथ उसका समाज के प्रति दायित्व भी उत्पन्न होता है । इस समाज मे पैदा होकर, हमने समाज को क्या दिया, समाज ने हमे गाड़ी, बंगला, राज-पाट, एश-आराम, धन-दौलत, सुख सभी दिया, इसके बदले मे हमने क्या दिया । यह कोई उधार नही है, यह तो ऋण है, समाज का हमारे ऊपर, जिसे हमे हर हालत में उतारना है । यदि हम, इस ऋण को नही चुकाते हैं तो, हमारा जीवन तो पशु समान ही रह जायेगा ।
उन सभी लोगों को सन्देश है कि, जो अपनी उम्र के अन्तिम पड़ाव में हैं, यह मंथन करे कि, उन्होंने इस समाज मे पैदा होकर, समाज को क्या दिया है । आप ने, अपने जीवन में लाखों करोड़ो रूपये कमाऐ हैं, जिसमे कुछ ईमानदारी से और कुछ बेईमानी से । इसमे कुछ हिस्सा यदि हमने समाज कल्याण मे दान कर दिया तो, आपकी भावी पीढ़ी पर कोई फर्क नही पड़ने वाला है । आपका समाज के प्रति दायित्व भी पूर्ण होगा और आपको समाज सम्मान भी देगा, नतीजा आपकी संतान भी आपका अधिक सम्मान करेगी, जो आपकी भावी पीढ़ी के लिए प्रेरणा स्त्रोत रहेगा और समाज का विकास भी होगा ।
इतिहास गवाह है कि, समाज को दिशा देना, उसका मार्गदर्शन करना, समाज के बुद्विमान लोगों का दायित्व है । वे अपने दायित्व से पीछे नही हट सकते, क्योंकि आज भारत आजाद है तो, यह आजादी किसी गरीब या धनवान लोगों की देन नही है । यह बुद्धिमान समाज के लोगों की मेहनत बलिदान का ही परिणाम है । आज जो भी परिवार, समाज विकसित व साधन सम्पन्न हुये है, वे सभी समाज के बुद्विजीवी लोगों के त्याग व मेहनत के कारण है । अब प्रश्न उठता है कि, जो परिवार व समाज पिछड़े है उसके पीछे मूल कारण क्या है, इसका भी सीधा सा उत्तर है कि, इसके पीछे भी एहसान फरामोश प्रबुद्द लोग है, जिन्होंने समाज से लिया तो सब कुछ, लेकिन जब देने की बारी आई तो अपनी अक्कल का उपयोग करते हुए, किनारा कर दिया और अगुंठा दिखा दिया ।
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जब कोई स्वार्थी व्यक्ति मर जाता है तो अक्सर सुनने मे आता है कि फलाना-फलाना व्यक्ति दुनिया को छोड़कर चला गया, लेकिन सोचो कि, वो जिंदा था, तब समाज को उससे क्या फायदा था, जो मरने पर नुकसान हो गया । चापलूस लोग कहते है कि, अच्छा व्यक्ति था, तब समाज के लोग कहते है कि, कैसे, जरा समझाये । केवल अपनी पत्नि, बेटा-बेटी और चापलूसों के लिए अच्छे होंगे, समाज क्या लेना-देना ?
अनेक बार अनेक लोग व्यक्तिवाद से प्रेरित होकर यह दावा करने का साहस करने लगते है कि उन्होंने अपना विकास अपने प्रयत्न एवं पुरुषार्थ के बल पर किया है, समाज ने उनकी कोई सहायता नहीं की, बल्कि टांग खीच कर पीछे खीचने का ही प्रयत्न किया है l ऐसे लोग शायद समाज को समझने की भूल करते है l वे केवल उन्हें ही समाज समझ बैठते है जिन्होंने उन्हें प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष सहयोग नहीं दिया होता है l कुछ इने-गिने ही लोग समाज नहीं होते l समाज एक विशाल और व्यापक संस्था है l समस्त समाज जिसका असहयोग करता है उसका विकास तो दूर जीना भी दूभर हो जाता है l
व्यक्ति जो कुछ सीखता है वह समाज में ही समाज से सीखता है और जो कुछ पाता है समाज से ही पाता है l जब व्यक्ति का जन्म समाज में होता है तो, समाज में जन्म के साथ ही, उसको कुछ अधिकार प्राप्त हो जाते हैं और साथ उसका समाज के प्रति दायित्व भी उत्पन्न होता है । इस समाज मे पैदा होकर, हमने समाज को क्या दिया, समाज ने हमे गाड़ी, बंगला, राज-पाट, एश-आराम, धन-दौलत, सुख सभी दिया, इसके बदले मे हमने क्या दिया । यह कोई उधार नही है, यह तो ऋण है, समाज का हमारे ऊपर, जिसे हमे हर हालत में उतारना है । यदि हम, इस ऋण को नही चुकाते हैं तो, हमारा जीवन तो पशु समान ही रह जायेगा ।
उन सभी लोगों को सन्देश है कि, जो अपनी उम्र के अन्तिम पड़ाव में हैं, यह मंथन करे कि, उन्होंने इस समाज मे पैदा होकर, समाज को क्या दिया है । आप ने, अपने जीवन में लाखों करोड़ो रूपये कमाऐ हैं, जिसमे कुछ ईमानदारी से और कुछ बेईमानी से । इसमे कुछ हिस्सा यदि हमने समाज कल्याण मे दान कर दिया तो, आपकी भावी पीढ़ी पर कोई फर्क नही पड़ने वाला है । आपका समाज के प्रति दायित्व भी पूर्ण होगा और आपको समाज सम्मान भी देगा, नतीजा आपकी संतान भी आपका अधिक सम्मान करेगी, जो आपकी भावी पीढ़ी के लिए प्रेरणा स्त्रोत रहेगा और समाज का विकास भी होगा ।
इतिहास गवाह है कि, समाज को दिशा देना, उसका मार्गदर्शन करना, समाज के बुद्विमान लोगों का दायित्व है । वे अपने दायित्व से पीछे नही हट सकते, क्योंकि आज भारत आजाद है तो, यह आजादी किसी गरीब या धनवान लोगों की देन नही है । यह बुद्धिमान समाज के लोगों की मेहनत बलिदान का ही परिणाम है । आज जो भी परिवार, समाज विकसित व साधन सम्पन्न हुये है, वे सभी समाज के बुद्विजीवी लोगों के त्याग व मेहनत के कारण है । अब प्रश्न उठता है कि, जो परिवार व समाज पिछड़े है उसके पीछे मूल कारण क्या है, इसका भी सीधा सा उत्तर है कि, इसके पीछे भी एहसान फरामोश प्रबुद्द लोग है, जिन्होंने समाज से लिया तो सब कुछ, लेकिन जब देने की बारी आई तो अपनी अक्कल का उपयोग करते हुए, किनारा कर दिया और अगुंठा दिखा दिया ।
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