दिल्ली, समाजहित एक्सप्रेस, (रघुबीर सिंह गाड़ेगाँवलिया) । हम समाज की बात
करते है तो, संगठन का भी
प्रश्न सामने नजर आता है, कि समाज को कैसे
संगठित किया जाये । समाज को संगठित करने मे सामाजिक संगठनों द्वारा आयोजित सम्मेलन,
बैठको, विचार मंथन शिविरों आदि की महत्वपूर्ण भूमिका होती है । सामाजिक सम्मेलनों के द्वारा
समाज के प्रतिनिधि सरकार से अपने हक अधिकार की मांग करता है, सम्मेलन समाज के एक महत्वपूर्ण हथियार के रूप मे उपयोग किया जाता है, जो समाज विकास के लिए जायज भी है ।
लोकतन्त्र मे
जन-बल ही सबसे बड़ी ताकत है, जिसके सामने सरकार को झुकना ही पड़ता है, इसमे देर-सवेर हो सकती है, लेकिन यह सौ फिसदी सच है, जरूरत है तो, निरन्तर प्रयास की । अब प्रश्न उठता है कि सामाजिक
सम्मेलन के आयोजन की जिम्मेदारी किसकी है l इस तरह के आयोजन मुख्यतः समाज के जनाधार वाले
नेता जैसे-वर्तमान या पूर्व सांसद,
विधायक, मेयर या ऐसे सामाजिक नेता जिनका समाज सेवा का लम्बा इतिहास रहा हो l जिसकी समाजसेवा
को समाज सम्मान की नजर से देखता आ रहा हो या समाज की राष्ट्रीय, राज्यस्तरीय, जिलास्तरीय संस्थाओं द्वारा अपने क्षेत्राधिकार
मे सफल सम्मेलनों का आयोजन किया जाना चाहिये ।
समाज के संगठनों
के द्वारा बुलाये गए सम्मेलन एक तरफ जहा, समाज में अपने अधिकारों के प्रति जागृति पैदा करते हैं, वही दूसरी तरफ, इस तरह के आयोजन को गम्भीरता पूर्वक या पूर्ण मजबूती के साथ नही किया जाता है
तो, यह समाज व संगठन की पोल
भी खोल देते हैं । जो समाज के लिए बहुत घातक हो सकता है, क्योंकि इससे देश मे कार्यरत राजनैतिक पार्टियों को सीधा
संदेश जाता है कि, कोनसा समाज अपने
अधिकारों के प्रति जागरूक है, और कौन निन्द्रा
में है । उसी के अनुरूप सरकार अपनी नितियों बनाती है और क्रियान्वित करती है ।
सामाजिक किसी भी
सम्मेलन की सफलता, उसके आयोजकों पर
ही निर्भर करती है । क्योंकि समाज मे लोग वही है, केवल नेतृत्व करने वाले नेता बदलते रहते हैं । नेतृत्व ही
समाज को सफल बनाता है और वही उसकी असफलता का कारण बनता है । इतिहास इस बात का गवाह
है ।
सामाजिक
सम्मेलनों की सफलता उसके नेतृत्व पर निर्भर करती है । सम्मेलन जब जिला स्तर का हो
तो उसका नेतृत्व जिलास्तर के मजबूत जनाधार वाले नेता के नियन्त्रण मे होना चाहिये
और जब प्रदेशस्तर का हो तो, उसका नेतृत्व
प्रदेश स्तर के मजबूत जनाधार वाले व्यक्तियों के पास होना चाहिये । राष्ट्रीय स्तर
के सम्मेलन की अगुवाई राष्ट्रीय नेताओं तथा समाज के सबसे मजबूत समाजसेवी, अग्रणी नेताओं द्वारा कि जानी चाहिये l
किसी भी सामाजिक समारोह
या सम्मेलन मे जाने से पहले, कोई भी व्यक्ति पहले निमन्त्रण कार्ड को देखता है कि कौन-कौन-सा
सामाजिक नेता इसमें आ रहा है और इस कार्यक्रम के कौन लोग आयोजक है l यह बात दिखने में
बहुत ही छोटी सी है लेकिन, समारोह व सम्मेलनों की सफलता मे इसका
महत्वपूर्ण योगदान होता है, इसलिए आमन्त्रित नेता, आयोजक व निवेदक, शीर्ष मजबूत जनाधार वाले नेता होने चाहिये ।
सामाजिक सम्मेलन
समाज के शीर्ष व लोकप्रिय नेतृत्व की स्थिति मे ही सफल हुए है क्योंकि समाज मे,
लोगों की भीड़, उनका संख्यात्मक बल, अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है, आमतौर पर राजनैतिक पार्टिया अपने वोट बैंक (संख्यात्मक बल) के
आगे-पीछे घूमती है l राजनीतिक नेताओ का मूल लक्ष्य अपनि पार्टी के लिए वोट बैंक
मे बढोतरी करना तथा उसे बनाये रखना । ऐसी स्थिति मे जब सामाजिक सम्मेलनों मे
राष्ट्रीय या राज्य स्तरीय राजनेता अतिथि के तौर पर पधारते है तो उनका मूल
उद्देश्य अधिकतम लोगों की सभा को सम्बोधित करना तथा अपने वोट बैंक को बनाये रखना
होता है ।
इस तरह के सामाजिक
सम्मेलनों का आयोजन बड़े सावधानीपूर्ण तरीके से व सम्पूर्ण समाज को विश्वास मे लेकर
तथा सर्वमान्य नेतृत्व के सानिध्य मे आयोजित किया जाना चाहिये । जिसमे समाज को
दिशा देने वाले, त्यागवान धर्मगुरूओं को भी शामिल किया जाना
चाहिये, क्योंकि इस तरह के सफल आयोजन समाज के इतिहास का हिस्सा बनते हैं । जो
भावी पीढ़ी के लिए प्रेरणा स्त्रोत बने रहते हैं, वही असफल आयोजन समाज को
हतोसाहित करते है और समाज की राजनैतिक पहचान के लिए खतरा भी बन सकते है क्योंकि
लोकतान्त्रिक देश मे जनबल ही सर्वेसर्वा होता है।
यदि सामाजिक
सम्मेलनो का आयोजन का उद्देश्य, कुछ चुंनिदा
लोगों को राजनैतिक फायदा पहुचाने के लिए किया गया है, तो फिर इसकी सफलता की उम्मीद करना बेमानी है, क्योंकि समाज के लोग इस बात को अच्छी तरह
जानते है कि, कौन क्या रहा है,
और क्यो कर रहा है, किसे धोखा दे रहा है । क्या इस कार्यक्रम को समाज
के हित मे कर रहा है या अपने निजी स्वार्थ पूर्ति हेतू कर रहा है, क्योंकि किसी भी नेता का वजूद उसके समाज से है । समाज का वजूद नेता से नही, समाज, नेता बनाता है और मिटाता भी है ।
समाज के लोगो को चाहिए
कि ऐसे सम्मेलनों में स्वार्थपूर्ति वाले तत्वों को सावधानी पूर्वक पहचान कर,
किनारे लगाने की आवश्यकता है, ताकि वे समाज का अपने निजी स्वार्थ पूर्ति हेतु
उपयोग न कर सके ।
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