दिल्ली, समाजहित
एक्सप्रेस (रघुबीर सिंह गाड़ेगांवलिया) l नई दिल्ली के जनपथ पर स्थित आंबेडकर
फाउंडेशन भवन के परिसर में रैगर समाज की संस्कृति कला एवं रीति-रिवाजो पर आधारित वरिष्ठ
लेखक व साहित्यकार डा० पी.एन. रछौया (सेवानिवृत, भारतीय पुलिस सेवा) द्वारा लिखित “रैगर जाति की संस्कृति
कला एवं रीति रिवाज” नामक पुस्तक का विमोचन भारत सरकार के केंद्रीय सामाजिक
न्याय व अधिकारिता मंत्री माननीय थावरचंद गहलोत ने किया l इस सुनहरे मौके पर मौजूद गणमान्य
लोगों ने उत्साह से पुस्तक का स्वागत किया ।
आई.पी.एस. बैंच
1972 के परमानंद रछौया का जन्म दिनाक 4 फरवरी 1945 को दलित समाज के रैगर जाति में
पिता कालूराम रछौया के घर माता खेमलीदेवी के गर्भ से दिल्ली में हुआ। आज भारत
सरकार के केंद्रीय सामाजिक न्याय व अधिकारिता मंत्री माननीय थावरचंद गहलोत के
हाथों किताब का विमोचन होने से डा० पी.एन. रछौया की जन्म स्थली गौरवान्वित महसूस
कर रही है l
शुक्रवार 20
दिसम्बर को आंबेडकर फाउंडेशन भवन के परिसर में भारत सरकार के केंद्रीय सामाजिक
न्याय व अधिकारिता मंत्री माननीय थावरचंद गहलोत ने वरिष्ठ लेखक व साहित्यकार डा०
पी.एन. रछौया (सेवानिवृत, भारतीय पुलिस सेवा) द्वारा लिखित “रैगर जाति की संस्कृति कला एवं रीति रिवाज” नामक पुस्तक का विमोचन
किया l इस अवसर पर उपस्थित भागीदारों में राज्य-अनुसूचित जाति आयोग के पूर्व
उपाध्यक्ष (राज्यमंत्री) व डॉ. अम्बेडकर फाउंडेशन के सदस्य विकेश खोलिया, समाजहित
एक्सप्रेस के संपादक रघुबीर सिंह गाड़ेगांवलिया, दिल्ली प्रांतीय रैगर पंचायत की
उपप्रधान व कवियत्री चंद्रकांता सिवाल व पुस्तक के वितरक नवरत्न गुसाईंवाल तथा
अन्य गणमान्य व्यक्ति भी उपस्थित रहे ।
इस सुनहरे मौके
पर पुस्तक के वितरक नवरत्न गुसाईंवाल ने बताया कि भविष्य को बेहतर गढ़ने के
लिये अतीत को समझना अनिवार्य होता है । इतिहास के अभाव में रैगर जाति न तो संगठित हो
सकी और न तेज गति से विकास कर सकी । रैगर जाति का इतिहास सदैव गौरवशाली रहा है ।
देश की आजादी के लिए अनेकों रैगर जेल गए हैं तथा कठोर यातनाएं सही हैं । इस जाति
में प्रबुद्ध संत-महात्मा तथा समाज सुधारक हुए हैं । रैगर जाति की आदर्श रीति-रिवाज
व परम्पराएं रही हैं । वर्तमान और भावी पीढ़ी को इन सब बातों की जानकारी देना
नितान्त आवश्यक है ।
इस बात को ध्यान
में रखते हुए रैगर समाज के वरिष्ठ लेखक व साहित्यकार डा० पी.एन. रछौया (सेवानिवृत, भारतीय पुलिस सेवा) ने कई वर्षों तक जागा-पोथियों का गहन अध्ययन व शोध, विभिन्न स्थलों का भ्रमण,
प्राचीन दस्तावेजों को परख कर एतिहासिक महत्वपूर्ण तथ्यों को संजोकर भावी पीढ़ी के
लिए स्वरचित “रैगर जाति की संस्कृति
कला एवं रीति रिवाज” नामक पुस्तक प्रस्तुत की
है l यह सराहनीय है कि
84 वर्ष की आयु में वह पुस्तक लिख रहे है, जो नवोदित लेखकों के लिए प्रेरणा का स्त्रोत हैं । वर्तमान भौतिकवादी युग में साहित्यकारों
और लेखको का दायित्व है कि वे समाज की संस्कृति, परम्परा एवं रीति-रिवाज से
नई पीढ़ी को अवगत कराएं ताकि रैगर समाज की संस्कृति पीढ़ी दर पीढ़ी बनी रह सके ।
No comments:
Post a Comment