दिल्ली, समाजहित
एक्सप्रेस (रघुबीर सिंह गाड़ेगांवलिया) l युवा जो नई सोच रखते हैं। समाज को आगे
लेकर जाने की इच्छाशक्ति रखते हैं और अपने हौसले और जज्बे से समाज में फैली
विसंगतियों और बुराइयों को जड़ से उखाड़ फेंक सकते है, ईमानदारी से वे सबकुछ कर समाज
में बदलाव ला सकते है । युवा ही समाज की दिशा बदल सकते हैं। आज के तथाकथित अनुभवी
सामाजिक संगठनों के लोग युवाओं को आगे लाना ही नहीं चाहते l युवाओ की भावनाएं तथाकथित सामाजिक
नेताओं के लिए कोई महत्व नहीं रखती है। इसके कारण ही समाज पिछड़ता जा रहा है। पढ़े-लिखे
युवाओं को आगे लाने से ही समाज का भविष्य उज्जवल होगा।
आज के दौर में
समाज पर भौतिकतावाद, उपयोगितावाद व उपभोक्तावाद हावी हो गया है
जिसके कारण रैगर समाज के युवाओं में समाज के प्रति रुझान बहुत कम हो रहा है । समाज
उन्हीं लोगों को भाता है जो अपने सामाजिक परिवेश से कुछ सीखना चाहते हैं, समाज कल्याण की भावना रखते हैं ऐसे लोगो की संख्या बहुत कम हो गई है। लेकिन आज का युवा
इसके बिलकुल उलट है वह केवल अपने तक सीमित है ऐसे में समाज की उसे जरूरत महसूस
नहीं होती है l इसकी कई वजह हैं :-
पहला तो पारिवारिक
स्तर पर समाज को बढ़ावा देने व बच्चो में रुचि पैदा करने के लिए कोई कदम नहीं उठाए
जाते, वहीँ पहले जैसे आध्यात्मिक, मेहनती व आदर्श संस्कृति स्थापित करने वाले लोग नहीं रह
गए हैं कि युवा उनका अनुसरण करे l संवेदनशीलता समाज व परिवार से गायब होती जा रही है और इंसान
यांत्रिक हो गया है। लोगों की सोच में लघुता व संकीर्णता आ गई है l
दूसरी वजह यह है
कि आधुनिक प्रचार प्रसार के माध्यम जैसे टीवी, इंटरनेट व सोशल नेटवर्किग साइटों के जाल में समाज के युवा
उलझ कर रह गया है l ये साधन युवा वर्ग को दूसरी दिशा की ओर ले जा रहे हैं
जो कि समाज के अस्तित्व के लिए खतरा साबित हो रहे हैं ।
तीसरी वजह यह कि आज का युवा केवल नौकरी
और पैसा कमाने की होड़ में समाज की परवाह नहीं करता l आज के महंगाई के दौर में समाज
के युवा को अगर कहीं से भी पैसा और नौकरी मिल रही है तो वह समाज को दरकिनार कर
देता है l
रैगर समाज के
संगठनों को समाज के युवाओ में समाज के प्रति रूचि पैदा करने हेतु जन-जागरूकता अभियान
की बहुत जरूरत है, जिसमें समाज के जिम्मेदार लोगो को भी आगे आना चाहिये । जहाँ
जहाँ समाज के लोग बसते है वहां पर गोष्ठियां, चर्चा-परिचर्चा, खेल प्रतियोगिता व सांस्कृतिक कार्यक्रमों
का आयोजन कराना अति आवश्यक है । युवाओं को समाज में रूचि लेने हेतु प्रेरित करना व
कार्यक्रमों में भागीदार बनाकर उनको समय-समय प्रोत्साहित करना समाज के जिम्मेदार
लोगो का दायित्व बनता है ।
वहीं युवाओ को सिखाना
होगा कि वे अपने जीवन में सच को सच कह कर निर्णायक भूमिका निभायें, न कि किसी की
चाटुकारिता करें । युवाओ में अंधश्रद्धा और अंध-विरोध दोनो खतरनाक हो सकते हैं।
किसी भी विचार, सोच, नीति, संगठन या व्यक्ति के
प्रति युवाओ की न तो अंधश्रद्धा होनी चाहिए, और न ही अंधविरोध। समाज
में घुसी बुराईयों को दूर करने हेतु व्यंग बाण चलाना ही चाहिये । किसी पूर्वाग्रह
से सदैव बचना होगा । किसी दायरे में न बंधकर सामाजिक उत्थान के चिंतन को व्यापक
आयाम देना । किसी भी युवा को समाज,राज्य व देश के
शासन-प्रशासन की समालोचना भी करनी चाहिये ताकि शासक व प्रशासक वर्ग को उनकी अपनी
कमी से अवगत करा सकें और वे अपने कार्यों को और बेहतर कर सकें । समाज के युवाओ को
निर्भीक अवश्य होना चाहिये और इसमें समाज के जिम्मेदार बुजुर्ग लोगों को युवाओ का
सहयोग करना चाहिये ।
(इस आलेख में
व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं l)
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