दिल्ली, समाजहित एक्सप्रेस (रघुबीर सिंह गाड़ेगाँवलिया) ।
आज चारो तरफ समाजसेवको की भीड़ के बीच समाजसेवा का शोर मच रहा है इस शोर के बीच हमे खुद से सवाल करना चाहिए कि समाज सेवा किसे कहते है ? यह समाजसेवक कौन लोग होते है ? समाजसेवा असली मायने में गरीब व असहाय लोगो से प्यार, इनके दुख तकलीफ़ में सहायता और इनके हक अधिकारों के संघर्ष में साथ देना । जो यह सब करता है वही वास्तव में समाज सेवक कहलाने का हकदार है l
आज चारो तरफ समाजसेवको की भीड़ के बीच समाजसेवा का शोर मच रहा है इस शोर के बीच हमे खुद से सवाल करना चाहिए कि समाज सेवा किसे कहते है ? यह समाजसेवक कौन लोग होते है ? समाजसेवा असली मायने में गरीब व असहाय लोगो से प्यार, इनके दुख तकलीफ़ में सहायता और इनके हक अधिकारों के संघर्ष में साथ देना । जो यह सब करता है वही वास्तव में समाज सेवक कहलाने का हकदार है l
अब सवाल उठता है
कि क्या समाज के गरीब व असहाय लोगो के दुःख-तकलीफ में शामिल हुए बिना, उसके संघर्ष में भागीदारी किये बिना कोई समाज सेवक कहला सकता है? यह गंभीर विषय है और इस पर चिंतन और मंथन होना चाहिए l
समाजसेवको का
दायित्व :
1. समाज में किसी भी तरह के आपसी झगडे न बढ़े । अपने अपने
जीवन में आगे बढ़ने का सबको सामान अवसर प्राप्त होता रहे ।
2. सामाज के किसी
भी व्यक्ति को अकेला जीवन यापन करने की आवश्यकता न पडे । सब मिल जुल कर एक दूसरे
को पढ़ा लिखा सकें, एक दूसरे के दुःख सुख में साथ मिलजुलकर रह सकें
और वह चिंताएं मिटाई जा सकें जो की सबकी सांझा है ।
समाज सेवा के लिए
समाज के लोग मिल जुल कर अपने लिए एक संगठन बनाते है और सभी लोग मिल जुल कर समाज के
विद्वान,सम्पन्न और अच्छे अनुभव रखने वाले लोगों का चयन कर उनको समाज
विकास की जिम्मेवारियां सौंपी जाती है ।
सामाजिक संगठन को
हम समाज का शरीर माने तो समाज के लोग उसके अंदर का खून है और संगठन के पदाधिकारीगण
समाज रूपी शरीर की रीढ़ की हड्डी और हड्डियों का ढांचा है ।
No comments:
Post a Comment