दिल्ली,समाजहित
एक्सप्रेस (रघुबीर सिंह गाड़ेगांवलिया) l समाज में महिलाओं के साथ बढ़ते उत्पीड़न और
भेदभाव पूर्ण रवैया अपनाये जाने के खिलाफ आशना महिला अधिकार संदर्भ केंद्र भोपाल
के सहयोग से ग्वालियर की स्वयंसेवी संस्था गोपाल किरण समाज सेवी संस्था द्वारा 25
नवंबर से 16 दिसम्बर तक अंतर्राष्ट्रीय महिला हिंसा विरोधी पखवाड़ा के रूप
में मनाया जा रहा है । इस पखवाड़े का उद्देश्य पूरे विश्व मे महिलाओं व लड़कियों के
विरुद्ध होने वाले हिंसा को समाप्त करना तथा इसके बारे में जागरूकता फैलाना है ।
25 नवम्बर से 16
दिसम्बर तक अंतर्राष्ट्रीय महिला हिंसा विरोधी पखवाड़ा को चुनने के पीछे एक इतिहास
है और वही इसकी महत्वता है । 1960 के दशक में डोमेनियन रिपब्लिक में एक तानाशाह
रेफेल ट्रीजिलियो का सत्ता थी। उसके निरकुंश शासन एवं नीतियों के खिलाफ तीन बहनों-
पेट्रिया,मिनरवा और मारिया (मीराबेल बहनें) ने मजबुत
आंदोलन किया। एक विरोध प्रदर्शन के समय तीन बहनों और उनक साथियों को जेल
में डाल दिया। कुछ दिनों में तीनों बहनों को छोड़ दिया परन्तु उनके साथियों
को जेल में रखा था। 25नवम्बर को तीनों बहने जेल में मिलने गई। लौटते समय तानाशाह
के लोगों ने उनको जिन्दा जलाकर हत्या कर दी । 1981 में नारीवादी समूहों ने इस दिन
को महिलाओं पर होने वाली हिंसा के विरोध में अंतरराष्ट्रीय दिवस के रूप में मनाना
शुरू किया।
यह माना गया कि
महिलाओं पर हिंसा उनके मानवाधिकार का हनन है । इसलिए 1991 में सेन्टर फॉर वीमेनस्
ग्लोबल लीडरशीप के तत्वावधान में 25 नवम्बर से 10 दिसम्बर तक 16 दिवसीय अभियान
मनाना शुरू किया । महिला व बालिका हिंसा विरोधी पखवाड़े को 16 दिसम्बर तक इसलिए
बढाया गया कि 16 दिसम्बर को निर्भया मामले में चारों दोषियों पर अंतिम निर्णय होने
की सम्भावना है l
ग्वालियर की
स्वयंसेवी संस्था गोपाल किरण समाज सेवी संस्था के अध्यक्ष श्रीप्रकाश सिंह निमराजे
ने कहा कि महिला हिंसा में महिलाएं भी कई बार जिम्मेदार होती हैं l यह भी तथ्य है
कि पढ़े-लिखे समाज में भी महिलाएं आज सबसे अधिक घरेलू हिंसा की शिकार हो रही हैं l बेटी सुरक्षित
नहीं रहेगी, तो वह कैसे आगे बढ़ेगी l किस तरह से उनका
मानसिक विकास होगा l महिला अधिकारो की रक्षा के लिए नये सख्त कानून भी बने हैं, उन्हें
लागु करवाने के लिए कई संगठन भी बने हैं और कई लोग भी काम कर रहे हैं l महिलाएं भी
जागरूक हो रही है, लेकिन कहीं न कहीं समाज पीछे है l सिर्फ अधिकार
और कानून बनने से कुछ नहीं होगा, इसके लिए आम लोगों को भी जागरूक होने की जरूरत है
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