Thursday, December 5, 2019

राजस्थान के रामभरोसे मीणा प्रकृति और वन्यजीवों के संरक्षण की अलख जगा रहे है



दिल्ली, समाजहित एक्सप्रेस (रघुबीर सिंह गाड़ेगांवलिया) l राजस्थान के अलवर जिले में गैर सरकारी संगठन एल. पी. एस. विकास संस्थान (पंजीकृत) लगातार प्रकृति और वन्यजीवों के संरक्षण को लेकर कार्य कर रहा है l प्रकृति और वन्यजीवों का यह सब कार्य सरकार के बिना किसी सहयोग के संस्थान द्वारा किया जा रहा है l संस्थान के प्रकृति प्रेमी रामभरोसे मीणा का कहना है कि वर्तमान में आर्थिक सहयोग की अति आवश्यकता है जिससे कि संस्थान प्रकृति और वन्यजीवों के संरक्षण के काम को और अच्छे से कर सकें l

एल. पी. एस. विकास संस्थान एक स्वैच्छिक संगठन है जो 28 अगस्त 1999 को रजिस्टर्ड हुआ l संस्थान रजिस्ट्रेशन के बाद से मानव जीवन में प्रकृति और वन्यजीव प्रजातियों के महत्व को समझते हुए वन्यजीवों के निवास-स्थान की सुरक्षा किस प्रकार की जाए, प्रमुखता इस विषय को लेकर कार्य करना प्रारम्भ किया l प्रकृति हितैषी रामभरोसे मीणा ने बताया कि दिनोंदिन देश की बढ़ती आबादी में मनुष्य के शरीर व मस्तिष्क को स्वस्थ व सकारात्मक ऊर्जा से भरपूर रखने के लिये हमारे पर्यावरण को शुद्ध व साफ सुथरा रखना अत्यावश्यक है l पर्यावरण को शुद्ध व साफ सुथरा रखना वन व वन्यजीवों के बिना असंभव है l

उन्होंने आगे कहा कि इसलिए हमारे संस्थान ने सर्वप्रथम अपने सिमित संसाधनों और बिना किसी के सहयोग से अपने अथक प्रयास से वन्य जीवों की सुरक्षा हेतु 5 हेक्टेयर भूभाग पर वन तैयार किया, ताकि अनेकों वन्यजीव उसमें सुरक्षित विचरण कर सकें l हमे वन व मूक बधिर वन्य जीवों से प्रेम करने व उनका संरक्षण करने की आवश्यकता है l

सूचनाओ के मुताबिक राष्ट्रीय पक्षी मोर के विषय में चिताजनक बात सामने आई कि पिछले 10  सालों में मोर की संख्या में कमी आई है l तो संस्थान ने मोर की सुरक्षा के लिए अभियान चलाया l किसी भी दुर्घटना या स्थान पर बीमार अथवा घायल हुए/पाये मोर का तुरंत इलाज कराते हैं, साथी वन विभाग के उच्च अधिकारियों को सूचित कर उनकी सुरक्षा की मांग करते हैं l जिसके पिछले दो-तीन वर्षों से पुन: क्षेत्र में मोरों की संख्या में इजाफा होने लगा है l

संस्थान के रामभरोसे मीणा ने आगे बताया कि इसके अलावा हम सड़क दुर्घटना में घायल हुए जानवरों, पक्षियों व रेंगने वाले जीव-जन्तुओ को उपचार हेतु चिकत्सालय पहुंचाते है और जो मृत पाए जाते है उनको घटना स्थल से उठाकर तुरंत दफनाते हैं l किसी स्थान पर बीमार जानवर की सूचना मिलने पर तुरंत उसे नजदीकी पशु चिकित्सालय ले जाकर दवा,  पट्टी कराते है इस के साथ वन व पशु विभाग को तुरंत सूचना देते है l

देखा गया है कि आजकल किसान द्वारा फसल के लिए कीटनाशक से उपचारित बीजों के प्रयोग के प्रचलन से उत्पन्न फसलों को खाकर वन्यजीव अपनी प्रजनन क्षमता खो देते हैं । इसके अलावा कीटनाशक से उपचारित बीज को काम में लेने के बाद बचे हुए बीज को खुले में डाल दिया जाता है जो वन्य जीवों के लिए घातक साबित होता है । कीटनाशकों के दुष्परिणामस्वरूप मोर, बाज, चील, गौरेया जैसी प्रजातियाँ कम होती जा रही हैं । बाढ़, तूफान, आग जैसी प्राकृतिक आपदाओं एवं पर्यावरण में होने वाले प्राकृतिक परिवर्तनों के कारण भी वन्यजीवों के प्राकृतिक आवास नष्ट होते है और वे भारी संख्या में मारे जाते है । वन्य जीवों के लुप्त होने के दो कारण हैं एक प्राकृतिक और दूसरा मानवीय फिर भी प्राकृतिक कारण, मानवीय कारणों की तुलना में कम हानिकारक सिद्ध हुए ।
वन्य जीव जो पर्यावरण का एक अभिन्न अंग है, देश के धन का गठन करता है। इसमें जंगली जानवर, पक्षी, पौधे आदि शामिल हैं। फिर भी, इंसान प्रगति और विकास की प्रक्रिया में और अपने स्वार्थ के लिए, वनों और वन्य जीव को बहुत नुकसान पहुँचा रहा है। वन्य जीवन प्रकृति का उपहार है और इसकी गिरावट से पारिस्थितिकी पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है और इसलिए वन्य जीवों की रक्षा की तत्काल आवश्यकता है। इसलिए, विनाश से वन्य जीवों की रक्षा के लिए, भारतीय संसद ने वर्ष 1972 में वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम पारित किया।

एल. पी. एस. विकास संस्थान (पंजीकृत) से जुड़े सक्रिय कार्यकर्ताओं द्वारा जनमानस को प्राकृतिक पर्यावरण और वन्यजीवों के संरक्षण हेतु ग्रामीणों के घर-घर जाकर वृक्षारोपण और वन्यजीवों के संरक्षण हेतु अनुरोध करते है l ग्रामीणजन की सहभागिता हो जाने और वृक्षारोपण और वन्यजीवों के संरक्षण के प्रति ग्रामीणों का सकारात्मक सहयोग मिलने से संस्थान के पुनीत उद्देश्य की पूर्ति होती दिख रही है ।
वन्यजीवों के संरक्षण के प्रति जागरूकता में तेजी लाने के लिए प्रतिवर्ष भारत में 2 अक्टूबर से 8 अक्टूबर  तक वन्यजीव सप्ताह मनाया जाता है। भारत में वन्यजीव सप्ताह मनाये जाने के निम्न प्रमुख उद्देश्य हैं-प्रथम प्रत्येक समुदायों व परिवारों को प्रकृति से जोड़ना। दिव्तीय मानव के अंदर संरक्षण की भावना पैदा करना। तृतीय वन्यजीव व पर्यावरण की सुरक्षा के लिए जागरूक रहना। देश के नागरिकों का यह नैतिक कर्तव्य बनता है कि वे प्रकृति में रहने वाले जीव-जन्तुओं के जीवन की रक्षा करने में सहयोगी बने ।

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