Saturday, February 1, 2020

डॉ. भीमराव अंबेडकर द्वारा प्रकाशित-संपादित पत्रिका ‘मूक नायक’ के सौ वर्ष पूर्ण होने पर विशेष लेख



दिल्ली समाजहित एक्सप्रेस (रघुबीर सिंह गाड़ेगांवलिया) l संविधान निर्माता व भारतरत्न बाबा साहेब डॉ० भीमराव अम्बेडकर जी शोषित, पीड़ित और दबे-कुचले समाज की पत्रकारिता के आधार स्तम्भ रहे हैं । वे शोषित, पीड़ित और दबे-कुचले समाज की पत्रिकारिता के प्रथम संपादक, संस्थापक एवं प्रकाशक हैं, उनके द्वारा संपादित पत्रिका मूक नायकके सौ वर्ष बाद भी आज की पत्रकारिता के लिए एक मानदण्ड हैं ।
बाबा साहेब डॉ० भीमराव अम्बेडकर जी ने शोषित, पीड़ित और दबे-कुचले समाज की पीड़ा को आवाज देने के लिए 31 जनवरी 1920 को मराठी भाषा में पाक्षिक पत्र मूक नायक पत्रिका का प्रथम अंक प्रकाशित किया था । इस पत्रिका के अग्रलेखों में अम्बेडकर जी ने शोषित, पीड़ित और दबे-कुचले समाज के तत्कालीन आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक समस्याओं को बड़ी निर्भीकता से उजागर किया l यह पत्रिका उन मूक-शोषित, पीड़ित और दबे-कुचले लोगों की आवाज बनकर उभरी, जो सदियों से सवर्णों का अन्याय और शोषण चुपचाप सहन कर रहे थे l
डॉ० अम्बेडकर जी ने जीवन के प्रारम्भ काल से ही शोषित होने की पीडा को सहा था । अतः वे चाहते थे कि कुछ ऐसा करें,  जिससे शोषित, पीड़ित और दबे-कुचले समाज का उत्थान हो और वो भी समाज की मुख्यधारा में शामिल हो सके । लक्ष्य स्पष्ठ था किंतु साधन सीमित थे । शोषित, पीड़ित और दबे-कुचले समाज की दयनिक स्थिति को देखकर बाबा साहेब ने समाज में चेतना का संचार करने के लिए एक पत्रिका निकालने की योजना बनाई । उस समय पत्रिका निकालना कोई आसान काम नहीं था, यह बहुत खर्चीला काम था, इस काम के लिए धन की आवश्यकता थी और धन स्वयं उनके पास नहीं था l
बाबा साहेब अम्बेडकर जी ने पत्रिका निकालने की योजना को लेकर कोल्हापूर के शाहू महाराज से मिले उन्होंने अपनी योजना और उद्देश्य को विस्तार से समझाया । शाहूजी महाराज उदार थे अतः उन्होंने अम्बेडकर जी को आर्थिक सहायता उपलब्ध करा दी, जिससे अम्बेडकर जी का उत्साह बढ़ गया l किंतु जब उन्होंने अपनी पात्रिका का विज्ञापन अखबारों में देना चाहा तो अनेक अखबारों ने दलितों के इस पत्रिका का विज्ञापन छापने से मना की दिया । अखबारों की ऐसी प्रतिक्रिया से बाबा साहेब निराश नहीं हुए, किंतु कोई प्रतिक्रिया न देते हुए मूक बने रहे । अंततः सभी बाधाओं को पार कर उन्होंने 31 जनवरी 1920 को मूक नायकमराठी पत्रिका का प्रथम अंक प्रकाशित किया ।मूक नायकसभी प्रकार से मूक-पीड़ित समाज की ही आवाज थी, जिसमें उनकी पीड़ाएं बोलती थीं l मूक नायकमराठी पत्रिका के प्रकाशन से उच्च वर्ग में खलबली मच गई थी और पीड़ित समाज में उत्साह का संचार हुआ । यह जागृति पीड़ित समाज के उत्थान की दिशा में महत्वपूर्ण साबित हुई l
बाबा साहेब डॉ० भीमराव अम्बेडकर जी हमेशां भविष्य के बारे में ही सोचते थे, वे पीड़ित समाज को दीर्घकालीन विकास की दिशा देने के लिए चिन्तन करते थे, जो सर्वविदित है । बाबा साहेब डॉ० भीमराव अम्बेडकर जी जैसे महापुरुष के आचरण एवं चिन्तन का मूल्यांकन करना कठिन है l बाबा साहेब डा. भीमराव अम्बेडकर ने शोषित, पीड़ित और दबे-कुचले समाज में जागृति लाने के लिए कई पत्र एवं पत्रिकाओं का प्रकाशन एवं सम्पादन किया । इन पत्र-पत्रिकाओं ने उनके मूक-शोषित, पीड़ित और दबे-कुचले समाज के आंदोलन को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया ।
6 दिसंबर 1956 को अम्बेडकर जी इस दुनिया को अलविदा कह गए, लेकिन बाबा साहेब अपने विचारों के जरिये आज भी लोगों के दिलों में जिन्दा है । सौ साल से भी अधिक समय पहले उन्होंने समाज में भेदभाव मुक्त भारत की जो अलख जगाई थी वो अब भी समाज में जल रही है । आज 31 जनवरी 2020 को डॉ. भीमराव अंबेडकर द्वारा प्रकाशित-संपादित पत्रिका मूक नायकके सौ वर्ष पूर्ण हो गए है ।


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