Wednesday, January 1, 2020

समाज से भय और निराशावादी भाव को समाप्त कर, विश्वास और भाईचारे का भाव जगाना होगा



जब भी रैगर समाज की कोई छोटी या बड़ी सभा होती है, तो यह चर्चा छिड़ना लाजिमी है कि समाज सुधरेगा कैसे? समाज में एकता कैसे होगी ? समाज का विकास कैसे होगा? आखिर कब और कैसे सुधरेंगे रैगर समाज के हालात ? सामाजिक लोगो द्वारा समाज की दुर्गति पर चिंता व्यक्त की जाती है । बड़ी उत्तेजक बहसें होती हैं । कभी-कभी तनातनी भी हो जाती है । सामाजिक संगठनों के पदाधिकारी क्यों नहीं समाजहित की ठोस पहल करके समाज के लिए आर्दश स्थापित करते?
सबसे पहले रैगर समाज के प्रत्येक व्यक्ति को तय करना होगा, कि क्या जो सामाजिक बदलाव हो रहा, क्या वो सही है? जिन हालात में हम रह रहे हैं क्या उससे हम संतुष्ट हैं? क्या समाज के हर तबके तक सामाजिक विकास पहुंच रहा हैं जिसकी उन्हें उम्मीद है? यदि नहीं तो सोचे इन सबका जिम्मेदार कौन है? इन सारे सवालों से जूझना ज़रूरी है और गंभीरता से सोचना ज़रूरी है ।
किसी राज्य या देश का गौरव उसके समाज के लोगों के नैतिक मूल्य होते हैं, समाज में घटनेवाली घटनाएं समाज की छवि बनाती और बिगाड़ती हैं l समाज परिवारों से बना है और परिवार हमसे बने हैं, तो हम बदलेंगें तो निश्चित ही समाज भी बदलेगा l बिल्कुल साधारण सी बात है पर एकदम सच है l व्यक्ति और समाज दोनों परस्पर सापेक्ष है । व्यक्ति के बिना समाज नहीं बन सकता और समाज के बिना व्यक्ति का चरित्र उभर नहीं सकता । समाज से आदर्शों का विलुप्त होना, सदाचारों का खण्डित होना या नष्ट हो जाना व्यक्तिगत जीवन मूल्यों का भी विनाश है, और नैतिकताओं पर व्यक्तिगत अनास्था, सामाजिक चरित्र का पतन है l
समाज की वास्तविकता ये है कि हमारे समाज के बच्चे जो कुछ सीखते है, पहले माँ बाप और परिवार से सीखते हैं, फिर विद्यालय से सीखते हैं अंत में समाज से सीखता है, अगर इन तीनो स्तर में से किसी भी स्तर पर नैतिकता का अभाव हो तो उसका प्रभाव तो बच्चे पर निश्चित पड़ेगा, तो फिर आदर्श व्यक्ति की उम्मीद कैसे कर सकते हैं?
आजकल सामाजिक नेतागीरी का बहुत बड़ा स्कोप है और बेरोजगार धनबली युवक अब इसमें भी अपने भविष्य की संभावनाओ की तलाश करने लगे हैं । समाज-सेवा तो दिखावा है । जिस व्यक्ति की कहीं कोई विशेष योग्यता नहीं है और वह पैसे वाला भी है और एक बड़ी गाड़ी, स्मार्ट मोबाईल, एक-दो बन्दूकधारी, चार-छह बाहुबली साथ में लेकर स्वयं में राजनेता की स्वयंभू प्राण-प्रतिष्ठा कर लेता है । अब सामाजिक नेता की प्राथमिक योग्यता धनबल एवं बाहुबल हो गई है । ऐसे नये-नवेले नेताओं को अपने समाज की गरिमा,विचाराधारा, इतिहास, सिद्धान्तों और प्रेरणास्त्रोत की जानकारी ही नहीं होती है । धनबल से संख्या-बल का बढ़ना एक सूत्री कार्यक्रम बन गया और गुणवत्ता-बल द्वितीयक हो गया है । वे चुनाव जीतने का केवल एक सूत्री कार्यक्रम बनाते हैं जो उनकी मजबूरी होती है । विपक्ष में वे रहना ही नहीं चाहते और आदर्श विपक्ष की भूमिका का निर्वाहन जानते नहीं हैं । पैसे से सत्ता और सत्ता से जो इच्छा हो उसे अर्जित करने का काम करते है l
संवैधानिक मान्यता है कि निर्वाचित् पदाधिकारी व प्रतिनिधि सामाजिक संगठन में पहुंचकर समाज के लोगो के भविष्य हेतु सामाजिक व आर्थिक विकास की योजना और नियम बनायेंगे। लेकिन सबसे बड़ी विडम्बना तो यह है कि निर्वाचित् पदाधिकारी व प्रतिनिधि समाज के कर्णधार होते हुये भी समाज विकास पर ध्यान नहीं देते और केवल केवल समारोह में अपना स्वागत और सम्मान में लगे रहते है l
सम्मान और सहयोग ही मनुष्य की जीवात्मा की भूख और प्यास है । अगर आप समाज में सम्मान और सहयोग को पाना चाहते हों तो कृपा करके जो समाज के प्रति आपके दायित्व हैं, जो कर्तव्य हैं, वो आपको निभाने चाहिए । आप उन कर्तव्यों और दायित्वों को निभा लेंगे तो बदले में सम्मान और सहयोग पा लेंगे । जिससे आपकी खुशी, आपकी प्रशंसा और आपकी प्रगति में चार चाँद लग जायेंगे ।
समाज में सम्मान और सहयोग को पाने के लिए सबसे पहले ईमानदारी से अपने आपका निर्माण करना, दूसरा अपने परिवार का निर्माण करना,  और तीसरा अपने समाज को प्रगतिशील और  उन्नतिशील बनाने के लिये कुछ न कुछ योगदान देना । अगर आपने इन तीनो सिद्धान्त अपना लिया तो आप विश्वास रखिए,  आपका समाजसेवा का 60% काम तो अपने आप हो जायेगा । इसलिए सामाजिक नेता को व्यक्ति निर्माण, परिवार निर्माण और समाज निर्माण व विकास के लिये संगठन की गतिविधियाँ चलानी चाहिए l
हम समाज के चुनाव में वोट के जरिये सिर्फ संगठन के मंत्रीमंडल के पदाधिकारियों को बदल देते है, लेकिन संगठन के मंत्रीमंडल के पदाधिकारियों को बदलने से कुछ नहीं होगा l समाज में विश्वास और भाईचारे का हमारा सामाजिक ताना-बाना धनबल एवं बाहुबल के आगे अब टूट गया है और बिखर गया है । समाज के प्रबुद्ध लोग सच बोलने में डरते हैं । गहरे अविश्वास, निरंतर भय और निराशावादी भाव हमारे समाज में व्याप्त है और समाज पर इसी का असर नजर आ रहा है । इससे सामाजिक विकास रुक गया है l जब तक समाज में डर का माहौल खत्म कर भरोसा नहीं जगाया जाएगा, इसके बगैर समाज की हालत नहीं सुधरेगी ।


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