दिल्ली समाजहित
एक्सप्रेस l देश को आजाद हुए 73 साल हो गए है और
अखिल भारतीय रैगर महासभा की स्थापना हुए 75 साल हो गए है l नवम्बर,
1944 में स्वामी आत्मारामजी
लक्ष्य ने रैगर समाज के संगठन के महत्व को समझते हुए अखिल भारतीय रैगर महासभा की
स्थापना की l कोई भी समाज तभी
उन्नति कर सकता है, जब समाज के लोग
अपने अस्तित्व से पूरी तरह वाकिफ हो l इसके लिए समाज के लोगो को समाजहित में सोचना-सीखना होगा, अपनी समस्याओं के समाधान खुद तलाशना सीखना होगा
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अखिल भारतीय रैगर
महासभा के पदाधिकारियों ने आज़ादी से 1986 तक के दौर में समाज के धर्मगुरुओ के विचारों और राष्ट्रीय नेतृत्वकर्ता
भौलाराम तौणगरिया, कन्हैया लाल
रातावाल, नवल प्रभाकर जाजोरिया,
छोगा लाल कंवरिया व धर्मदास शास्त्री आदि की
सोच से समाज पोषित होकर विकास करता रहा l लेकिन बाद के वर्षों में सोच-विचार की भिन्नताओं और नेतृत्व के व्यक्तिगत अहं
और स्वार्थ के चलते महासभा दो अध्यक्षों के हाथो में चली गई l जब से आज तक समाज विकास के बजाय महासभा के
नेतृत्वकर्ताओ के बीच खीचतान चलती रही है । नेतृत्व की वैचारिक भिन्नता के चलते
तन-मन-धन से पूरी तरह समर्पित समाज के लोग समझ नहीं पा रहे हैं कि कौन समाजहित में
है और कौन नहीं ।
अखिल भारतीय रैगर
महासभा के पदाधिकारीगण ऐसी व्यवस्था अपनाये हुए जिसमें बेहद गंभीर मुद्दों और
नीतिगत फैसलो पर समाज के लोगो के साथ व्यापक विचार मंथन नहीं किया जाता और ना ही
किसी भी विशेष मसले पर समाज के लोगो को सोचने-समझने के लिए वक्त भी नहीं दिया जाता
l गंभीर मसले और
नीतिगत फैसले भी दिखावे के तौर पर लिए और लागू किए जाते है l मानो जैसे सिर्फ उन नीतिगत फैसले के प्रचार प्रसार
करके ही, किसी सामाजिक समस्या का हल व विकास पा लिया जाएगा l
मैं रैगर समाज से
हूं, और इसके उत्थान और पतन से
भली भांति परिचित हूं और वर्तमान में रैगर समाज के उत्थान के लिए प्रयासरत हूँ, आज
रैगर समाज छोटे छोटे ग्रुप में संगठित होकर के अलग-अलग दल और संस्थाओ में बंटा हुआ
है l जिसके कारण समाज के सभी लोग एकजुट होकर कभी एक मंच पर नही आ
पाते है और पदाधिकारियों की विसंगतिओ का पुरजोर विरोध नहीं कर पाते, यही महासभा और अन्य सामाजिक संस्थाओ के पदाधिकारियों का सुरक्षा कवच है ।
किसी भी समाज का
अतीत बहुत महत्त्वपूर्ण होता है । अपने इतिहास के प्रति अज्ञानता और उदासीनता के कारण
खुद रैगर समाज की युवा पीढ़ी भी अंधेरे में है और भ्रमित हैं l राजनेता व स्वहित
साधने वाले स्वार्थी लोग इस बात का फायदा उठाकर युवाओ बरगलाते रहते है l लोग संगठित होकर संगठन बनाकर राजनैतिक लाभ लेना कोई बुरी
बात नही लेकिन अपना इतिहास और अपने गुरूओं व महापुरुषों की जगह अन्य को महत्व देने
से कोई लाभ नही होने वाला l सभी धर्मो और जातियों का आदर करे, लेकिन अपनी
जाति व अपने समाज के महापुरुषो, गुरूओं व पुर्वजों का मान-सम्मान करना ना भूले l
रैगर समाज के साहित्यकारों
व प्रबुद्ध लेखको को ऐतिहासिक योगदान के लिए साधुवाद, मुख्यतः जीवन राम गुसाईवाल, डॉ० पी.एन. रछौया, डॉ. राजेन्द्र प्रसाद गाडेगावलिया, चिरंजीलाल बोकोलिया, रमेश चन्द जलूथरिया, चन्दनमल नवल, रूपलाल जलुथंरिया आदि द्वारा रैगर समाज के शोधपूर्ण इतिहास की रचना की गई जो
उच्च कोटी के रैगर इतिहास होकर अत्यंत ज्ञानवर्धक एवं समाजोंपयोगी सिद्ध हुए है।
ये सभी साहित्यकार धन्यवाद के पात्र है। साहित्य समाज का दर्पण होता है जिस समाज
का साहित्य जितना विकसित होगा वह समाज उतना ही उन्नत व जाग्रत होगा।
आज अगर हम सचमुच
में रैगर समाज का शैक्षिक, सामाजिक, आर्थिक एवं राजनैतिक विकास चाहते हैं तो वर्तमान
हालातो से समाज को आज़ाद कराने की जरूरत है l सर्वप्रथम समाज के लोगो मे एक सोच बने, समाज को एक दिशा मिले और समाज का एक लक्ष्य तय
हो और एक ही मजबूत संगठन हो l समाज में ज्यादा संगठन बनाने से हमारी शक्तियां
भी बंट जाती है । यदि अनेक संगठन भी हो तो वे सभी मजबूत संगठन के घटक/इकाई संगठन
हो । दूसरा समाज में किसी को सम्मान देने का पैमाना धन-दौलत न बने l हमें ऐसा माहौल बनाना होगा जहां सबसे ज्यादा
सम्मान उस मजदूर को मिले जो चाहे शारीरिक मेहनत करता हो या मानसिक, अपने कौशल के साथ मेहनत करता हो या प्रतिभा के
साथ, अपनी कला से समाज की सेवा
कर रहा हो या किसी आविष्कार से, इसके लिए पुरानी
सोच को तोड़कर एक नई सोच लाने की जरूरत होगी l
(इस आलेख में
लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किये हैl)
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