दिल्ली, समाजहित एक्सप्रेस (रघुबीर सिंह गाड़ेगाँवलिया) ।भीलवाड़ा के पास
ही छोटे से गांव में जन्मी रैगर समाज की लाडली बेटी अर्चना जग्गरवाल अपने परिवार, समाज
और राष्ट्र का सिर फक्र से ऊंचा करने में जुटी हैं। रैगर समाज के इतिहास में पहली
बार किसी बेटी ने भारतीय अंडर-15 टीम में जगह
बनाई और विदेश में फ्रांस के पेरिस में ‘पेरिस वर्ल्ड गेम्स - 2017' में स्वर्ण पदक
प्राप्त किया हो ।
प्राप्त जानकारी
के मुताबिक भीलवाड़ा का कांवाखेड़ा शहर की कच्ची बस्ती है। जहाँ मूलभूत सुविधाएं
भी नहीं हैं। यहां खेलने के लिए कभी मैदान भी नहीं हुआ करता था। इस बस्ती ने इस
साल में भीलवाड़ा का देश में नाम कर दिया। पार्षद मंजू पोखरना ने छह साल पहले
मैदान तैयार करवाया था। यहां प्रोपर्टी कारोबारी विजय बाबेल सुबह-शाम प्रशिक्षण
देने लगे। बस्ती के बच्चों को वे किट, बॉल, जूते तक उपलब्ध कराते हैं। उनकी मेहनत का नतीजा अब नजर आने लगा। तीन बेटियां
भारतीय बॉस्केटबॉल की उस टीम का हिस्सा रहीं जो फ्रांस में वर्ल्र्ड स्कूल गेम्स
में अपने-अपने वर्ग में गोल्ड और ब्रांज मेडल जीत चुकी हैं। बास्केटबॉल दुनिया के उन
खेलों में शुमार है, जिसमें जबर्दस्त स्टैमिना और स्किल्स की जरूरत
पडती है।
“मिलेगी जरुर परिंदों
को मंजिल ये उनके पर बोलते हैं,
रहते हैं कुछ लोग
खामोश लेकिन उनके हुनर बोलते हैं| “
चहुमुखी विकास के
लिए मनुष्य के जीवन में खेल और शिक्षा का बराबर महत्व है। मनुष्य को प्रेरणा और
सीख का जो पाठ शिक्षा नहीं सीखा पाती, वह उसे खेल के मैदान में
सीखने को मिलता है। खेल खेलते समय अनुशासन में रहना, अपने कोच की आज्ञा का
पालन करना, जीत के समय उत्साह और हारने पर सहनशीलता, टीम के सदस्यों के साथ सहयोग की भावना रखना तथा अपनी असफलता का पता लगने पर
जीत के लिए पुन: प्रयत्न करना जैसे गुण हम खेलों के माध्यम से ही ग्रहण करते हैं।
अर्चना जग्गरवाल
का जन्म भीलवाड़ा के एक गाँव में 5 नवम्बर 2004 में रैगर परिवार में हुआ। उनके पिता का नाम
खेमराज रैगर व माता श्रीमती सुंदर देवी रैगर है उनके पैतृक गाँव, बोलो का सावता, तहसील गंगरार, जिला चित्तौड़गढ़ में है। उनके माता पिता
चित्तौड़गढ़ से भीलवाड़ा चले आए जहां उनके पिताजी श्री खेमराज रैगर कठोर मेहनत से
मजदूरी हमाली का कार्य करने लगे। खेमराज रैगर के परिवार में 10 सन्ताने, जिनमे 5 लड़कियां और 5 लड़के है जिनमे अर्चना सबसे छोटी व सब की
लाड़ली है, जोकि जन्म से ही लडको
जैसी प्रवृत्ति की रही है उसका रहन सहन तथा परिवेश भी लड़कों जैसा ही रहा है तथा
सबसे खास बात यह कि उसकी स्कूल ड्रेस भी हमेशा लडको जैसी ही थी तथा लड़कियों के
कपड़े कभी नहीं पहने और बचपन से ही घर में खेल का माहौल रहा है ।
अर्चना जग्गरवाल के
चाचा जी राष्ट्रीय स्तर के पहलवान रह चुके हैं, तथा उसके सभी भाई अपने-अपने खेल में जैसे क्रिकेट व कुश्ती
में राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी रह चुके हैं । .इन सभी कारणों से परिवार में खेल का
माहौल भी अच्छा रहा है ।
अर्चना जब 2011-12 में कावाखैड़ा के विकास पब्लिक स्कूल तीसरी कक्षा
में पढ़ रही थी तब कावाखैड़ा बास्केटबॉल ग्राउंड पर अपना पहला कदम रखा, तो वहा के कोच श्री विजय बाबेल ने उसकी प्रतिभा
को जल्द ही पहचान कर उसके भैया को ग्राउंड पर बुलाया और कहा कि आपकी बहन एक दिन
जरुर आपका व आपकी समाज का नाम रोशन करेगी और उन्होंने कहा कि उसके सीखने की लगन और
कठिन मेहनत दूसरे बच्चों से काफी तेज है । अर्चना का बास्केट बॉल खेल खेलने का शौक
बढता गया । शायद तभी से उनके भाई को अर्चना की प्रतिभा का अनुमान लग गया था कि
उनकी सबसे छोटी व सब की लाड़ली बहन को भविष्य में किस राह पर जाना है ।
चौथी क्लास में
अपना पहला टूर्नामेंट खेला जोकि गुलाबपुरा (भीलवाड़ा) में आयोजित हुआ जिसमें उसकी
स्कूल ने प्रथम स्थान प्राप्त किया, फिर अगले साल भीलवाड़ा के रोजत पब्लिक स्कूल की कक्षा 6 व 7 में जिले की
बेस्ट प्लेयर के साथ-साथ राजस्थान की भी बेस्ट लेयर बनी और राजस्थान अंडर-14 टीम का प्रतिनिधित्व किया ।
अर्चना जग्गरवाल बड़ी
लग्न व जिम्मेदारी से खेल को खेलती जिसे देखकर कोच श्री विजय बाबेल का उनमे
विश्वास बढा और विजय बाबेल सर के मार्गदर्शन से भारतीय खेल प्राधिकरण (साईं)
ट्रेनिंग सेंटर छत्तीसगढ़ में ट्रायल हुई जिसमें उसका चयन हुआ उसके बाद अर्चना की
आगे की शिक्षा के लिए छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव में ही DPS में एडमिशन हुआ, और वह अपने बेहतर प्रदर्शन से छत्तीसगढ़ टीम का नेतृत्व
करते हुए राष्ट्रीय U-14 बास्केटबॉल
प्रतियोगिता में अच्छा प्रदर्शन कर स्वर्ण पदक प्राप्त किया और भारतीय अंडर-15
टीम में जगह बनाई जो कि अभी हाल ही में फ़्रांस के
पेरिस में आयोजित पेरिस वर्ल्ड गेम्स में स्वर्ण पदक प्राप्त किया ।
रैगर समाज का
गौरव अर्चना जग्गरवाल के उज्जवल भविष्य की कामनाओं के साथ समाजहित एक्सप्रेस की ओर
से उन्हें ढेर सारी शुभकामनाएं।