Tuesday, July 2, 2019

सोशल मीडिया पर सामाजिक नेताओ और कार्यकर्ताओं की टूटती भाषाई मर्यादा



दिल्ली,समाजहित एक्सप्रेस (रघुबीर सिंह गाड़ेगाँवलिया) l समाज में लोग पक्ष-विपक्ष पर तर्कपूर्ण और मुद्दा आधारित बहस हमेशा करते आए हैं । लेकिन आजकल क्या छोटा क्या बड़ा, आज हर सामाजिक कार्यकर्ता अपने प्रतिद्वंद्वी के खिलाफ फेसबुक, वाट्सअप, इंस्टाग्राम व ट्वीटर पर बयान व टिपण्णी में शालीनता की धज्जियां उड़ाता नजर आ रहा है । आजकल नेतागण एक-दूसरे को नीचा दिखाने का कोई मौका नहीं छोड़ रहे हैं और इसके लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं । जबकि सामाजिक नेता की भाषा सभ्य, सौम्य, शालीन होनी चाहिये l क्योंकि वह समाज का आइना होता है l समाज के लोगो का सामाजिक राजनीति के प्रति बढ़ते मोहभंग का यह एक बड़ा कारण है ।
सवाल उठता है कि समाज में अगर सामाजिक नेता मर्यादाविहीन रास्ते पर चलने लगे तो क्या देश और समाज का लोकतंत्र सुरक्षित रह सकता है ? क्या हम एक स्वस्थ लोकतान्त्रिक समाज के रूप में आगे बढ़ सकते हैं ? क्या समाज अधिनायकवाद या तानाशाही के रास्ते की ओर उन्मुख नहीं होगा ? इन सवालो पर हमे आत्म-मंथन करना होगा l
पहले सामाजिक नेता समाज को दिशा देते थे। उनके नेतृत्व से समाज के लोगो को बहुत कुछ सीखने को मिलता था। उनमे संवाद की शैली विरोधियों के लिए तीखी तो हो सकती थी लेकिन उसमें वैमनस्यता का भाव नहीं होता था। बिना लिखे हुए नियम समाज में परम्पराओं के रूप में लागू होते थे। इसमें लोक लज्जा होती थी, शालीनता होती थी,और मर्यादा व विवेक का संगम होता था ।
समाज में अगर गलती से भी किसी नेता की जुबान फिसलती थी, तो उसमें भी शालीनता बरकरार रहती थी । वे एक-दूसरे का सम्मान रखना जानते थे । विरोधी के साथ तीखे वाक् युद्ध में भी एक दुसरे की गरिमा बनाए रखी जाती थी । खासकर जिन सामाजिक नेताओ पर सामाजिक संगठन का कामकाज चलाने की जिम्मेवारी हो उनसे तो समाज के लोगो को बहुत ही संयम,विवेक और धैर्य की अपेक्षा होती है ।
भारतीय समाज में लगातार गिरावट आ रही है, आप अधिकांश सामाजिक नेताओं की जानबूझकर लडख़ड़ाती जुबान के कई मामले फसबूक और ट्वीटर पर देख सकते है । आपको यही लगेगा कि अब मर्यादा का संकट भारतीय समाज में गहरा गया है । सामाजिक संगठन की सत्ता या पद पाने के लिए, कार्यकर्ता अपने नेताओं के गुणों और कार्यों का बखान करते हुए विपक्ष को आइना दिखाने के लिए व्यवहार और भाषा में शालीनता की हर मर्यादा की लक्ष्मण रेखा लांघने को तैयार रहते है l मर्यादा, शालीनता, भद्रता जैसे शब्द अब डिक्शनरी में ही दिखने लगे हैं, सामान्य व्यवहार में तो ये गायब होते जा रहे हैं l
लोकतंत्र में सबको अपनी बात कहने और रखने का अधिकार है, लेकिन दूसरे के संबंध में कुछ कहने से पहले देखना चाहिए कि उसे किस स्तर तक जाने की जरूरत है । इसके लिए आत्म-मंथन किया जा सकता है। विरोध करें, लेकिन इसका तरीका सामने वाले को नीचा दिखाने वाला नहीं होना चाहिए । पक्ष-विपक्ष को चाहिए कि वह संतुलित और सजग सामाजिक राजनीति करते हुए कुछ भी बोलने से पहले उसे परखे । हम ने आपसी भेदभाव और द्वेष से ऊपर उठने के लिए सामाजिक संगठन और विधान बनाये है उनका पालन करते हुए हमे समाज का विकास करना चाहिए l

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