दिल्ली, समाजहित
एक्सप्रेस (रघुबीर सिंह गाड़ेगांवलिया) l राजस्थान के चूरू जिले के अंतर्गत तारानगर
तहसील का गांव 'लांबा की ढाणी' के लोग अंधविश्वास और
आडम्बर से दूर रहकर शिक्षा व मेहनत के बल पर सरकार में प्रशासनिक सेवा, वकालत, चिकित्सा, सेना और खेलों में सक्रिय
रहकर गांव का नाम रोशन कर रहे है । लांबा की ढाणी के लोग मृतकों की अस्थियां नदी में विसर्जन
करने नहीं ले जाते। गांव में कोई मंदिर या कोई अन्य धार्मिक स्थल नहीं है ।
नदियों का जल प्रदूषित
होना वर्तमान समय की एक सबसे बड़ी समस्या है, जो आधुनिक और तकनीकी रूप
से उन्नत समाज में तेजी से बढ़ रहा है । आज शिक्षित वर्ग भी धार्मिक कर्मकांड में
विश्वास करते हुए लाखों टन पूजन सामग्री व अस्थियाँ जिस तरह से नदियों में
प्रवाहित कर रहे है l अपने घरों,
उद्योगों की सारी गन्दगी
प्रवाहित कर देते हैं। जिसके कारण नदियों का जो जल अमृत माना जाता था जिसके आचमन
से हम खुद को पवित्र हुआ समझते थे वह आज पीने तो क्या जानवरों को नहलाने और सिंचाई
के काबिल भी नहीं रहा । इस समस्या की ओर ध्यान देते हुए लगभग 70 वर्ष पहले लांबा
की ढाणी में रहने वालों ने सामूहिक रूप से तय किया कि गांव में किसी की मृत्यु पर
उसके दाह संस्कार के बाद अस्थियों का नदी में विर्सजन नहीं किया जाएगा ।
राजस्थान के
विभिन्न भागों में जहां अंधविश्वास के नाम पर तरह तरह की कुरीतियां अपने पांव
पसारे हुए हैं वहीं राजस्थान के चूरू जिले में तारानगर तहसील का गांव 'लांबा की ढाणी' एक अनोखा गांव ऐसा भी है जहां के लोग किसी
धार्मिक कर्मकांड में विश्वास नहीं करते l यहां के लोग मेहनत और कर्मवाद पर यकीन रखते
हैं।
लांबा की ढाणी के
लोग मृतकों की अस्थियां नदी में विसर्जन करने नहीं ले जाते l गांव में एक भी मंदिर
या कोई अन्य धार्मिक स्थल नहीं है l गाँव में करीब 105 घरों की आबादी है जिसमे 91
घर जाटों के, 4 घर नायकों और 10 घर मेघवालों के हैं l अपनी शिक्षा,लगन
और मेहनत के जरिये गांव के दो लोग इंटेलीजेंस ब्यूरों में अधिकारी है, वहीं दो प्रोफेसर, 7 वकील, 35 अध्यापक, 30 लोग सेना में, 30 लोग पुलिस में, 17 लोग रेलवे में, और लगभग 30 लोग चिकित्सा क्षेत्र में गांव का
नाम रोशन कर रहे हैं l गांव के पांच युवकों ने खेलों में राष्ट्रीय स्तर पर पदक
प्राप्त किये हैं और दो खेल के कोच हैं l
गांव के 80
वर्षीय एडवोकेट बीरबल सिंह लांबा ने बताया कि कृषि प्रधान गांव में लोगों का शुरू
से ही मंदिर के प्रति रूझान नहीं था क्योंकि सुबह से शाम तक लोग मेहनत के काम में
ही लगे रहते थे l मगर इसका मतलब यह नहीं है गांव के लोग नास्तिक है l वह कहते हैं
कि ग्रामवासी कहा करते थे कि “मरण री फुरसत कोने, थे राम के नाम री बातां करो हो”
(हमें तो मरने की भी फुरसत
नहीं हैं आप राम का नाम लेने की बात करते हो) l
स्वतंत्रता
सेनानी पिता स्वर्गीय नारायण सिंह लांबा के पुत्र ईश्वर सिंह ने बताया कि उनके
पिता ने आजादी की लड़ाई लड़ी थी और द्वितीय विश्वयुद्ध तथा 1965 व 1971 के युद्धों में भी दुश्मनों से लोहा लिया था l
उनका 95 वर्ष की आयु में इस वर्ष जनवरी में निधन हुआ, उन्हें उनके
योगदान के लिए राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित भी किया गया l सेना में लगातार 20 वर्ष तक सेवा देने पर उन्हें सेना मेडल भी दिया गया था l
हर व्यक्ति को
अपने आस-पास की नदियों के बारे में यह प्रण करना चाहिए कि ना तो वे खुद नदियों को
गन्दा करेंगे, न उसमें गन्दगी फेकेंगे बल्कि दूसरों को भी इस
बारे में जागरुक करेंगे, और सिर्फ नदियाँ हीं नहीं पानी के जो भी स्रोत हैं जैसे
कि झील, पोखर, तालाब, झरने, कुएँ सब की सफाई के बारे में सोचेंगे। अगर हर व्यक्ति यह तय कर ले तो सच मानिए
न तो नदियाँ गन्दी होंगी, न कभी पानी की कमी होगी।
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