Wednesday, January 29, 2020

पेंटर/चित्रकार रमेश कुमार रसगनिया द्वारा बावलिया बाबा की पैतृक हवेली का सौंदर्यीकरण हेतु चित्रकारी



दिल्ली समाजहित एक्सप्रेस (रघुबीर सिंह गाड़ेगांवलिया) l राजस्थान के शेखावटी क्षेत्र के बुगाला गाँव में स्थित पंडित गणेशनारायण बावलिया बाबा की पैतृक हवेली को म्युजियम बनाने का निर्माण कार्य पूर्ण हो चूका है, निर्माण कार्य के बाद अब इन दिनों हवेली में सौंदर्यीकरण हेतु चित्रकारी का कार्य मुम्बई के विशेषज्ञों की देखरेख में गुढ़ागौड़ जी के प्रतिभावान पेंटर/चित्रकार रमेश कुमार रसगनिया द्वारा किया जा रहा है l
भारतीय उपमहाद्वीप में हवेली शहर के पारंपरिक भवन को कहते है जो वास्तुशिल्प और एतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण होती है l भारतीय शैली में बने छज्जे अग्र भाग की ख़ूबसूरती में चार चाँद लगाते है, पत्थर पर लयदार जाली का आभास कराती पतली नक्काशी पहले मध्य एशिया की कलाकृति की देन थी मगर आज के दिन में ये भारतीय वास्तुकला का हिस्सा बन गई है l शेखावटी की हवेलियां भित्ति चित्रकारी के लिए दुनियाभर में मशहूर है ।
प्राप्त जानकारी के मुताबिक बुगाला गाँव में स्थित पंडित गणेशनारायण बावलिया बाबा की पैतृक हवेली के अन्दर और बाहर दोनों तरफ नवलगढ़ की हवेलियों की तर्ज पर चित्रकारी की जायेगी l पेंटर/चित्रकार रमेश कुमार रसगनिया ने बताया कि इस हवेली की चित्रकारी में लगभग 06 महीने का समय लगेगा l इस हवेली की खिड़कियों और दरवाजो पर तन-मन व दिलोदिमाग से पेंटर/चित्रकार द्वारा काफी खूबसूरत चित्रकारी की जा रही है l जिसे देखने के लिए हवेली में रोजाना लोगो की भीड़ उमड़ रही है l
नवलगढ़, झंझुनूं, फतेहपुर, मंडेला, रामगढ़, महनसर, चिड़ावा, चूरू, पिलानी, मुकुंदगढ़, डूंडलोद और सीकर की हवेलियां तकरीबन 150 वर्ष की उम्र पार कर चुकी हैं l सभी हवेलियां आज प्रदेश की विरासत का हिस्सा बन चुकी हैं, जो विदेशी पर्यटकों को लुभा रही हैं l इन सभी पुरानी हवेलियां की दीवारों, मेहराबों, खंभों पर बने भित्ति-चित्रों की खूबसूरती हर किसी का मन् मोह लेती है l इन्हें दीवार पर चूने का प्लास्टर करते वक्त बनाया जाता था l पत्थर की पिसाई कर उन्हें पेड़-पौधों की पत्तियों और प्राकृतिक रंगों के साथ गीले प्लास्टर में मिलाकर तालमेल से पेंटिंग हवेली की दीवारों पर उकेरा जाता था l गीले प्लास्टर में ये रंग पूरी तरह समा जाते थे l इस तरह के रंग फैलने की बजाए अंदर तक जड़ पकड़ कर लेते थे l इन पेंटिंग्स को ही नहीं, बल्कि रंगों को तैयार करने में भी चित्रकार जी-जान लगा दिया करते थे । तभी तो 200 वर्ष पुरानी ये पेंटिंग आज भी नयनाभिराम हैं l
ये हवेलियां सचमुच अनूठी और बेशकीमती हैं l इनकी देखभाल बहुत जरूरी है वरना देखने को यहां कुछ भी नहीं बचेगा l व्यापारियों के पलायन के बाद ये हवेलिया सुनसान हो गई और धीरे धीरे इनका पतन शुरू गया l कुछेक हवेलियों के मालिक तो किसी मांगलिक अवसर पर अपने कुलदेवता की पूजा-अर्चना करने के लिए हवेलियों में लौटते हैं, बाकी समय ये हवेलियां लगभग वीरान रहती हैं । हालांकि कुछ मालिकों ने तो चौकीदार के भरोसे इन्हें पयर्टकों के लिए जरूर खोल दिया है l कई मालिक तो इनकी खैर-खबर भी नहीं ले रहे हैं l

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