Tuesday, January 28, 2020

क्षत्रियों के नाम मे सिंह लगाने का रहस्य"

[क्षत्रियों के नाम मे सिंह लगाने का रहस्य"
क्षत्रिय अपने नाम के अंत में सिंह क्यों लिखते हैं ?_ यदि हिन्दुओं में नामकरण की पद्धति को देखा जाए तो इसके संबंध में उल्लेख मनु स्मृति में मिलता है जिसके अध्याय १ श्लोक ३३ में वर्णित है कि_ मांगल्यं ब्राह्मणस्य स्यात्क्षत्रियस्य बलांवितम् । वैश्यस्य धन संयुक्तम् शूद्रस्तु जुगुप्सितम् ।। इस श्लोक के अर्थानुसार देखा जाए तो तो ब्राह्मण का नाम मंगल सूचक क्षत्रिय का नाम बल सूचक और वैश्य का नाम धन सूचक तथा शूद्र का नाम घृणा सूचक होना चाहिए। यदि हम पुराने इतिहास में जाकर अध्ययन करते हैं तो बड़े से बड़े बलंकारी क्षत्रिय हुए हैं जिनके नाम के अंत में "सिंह" नहीं है जैसे अर्जुन ,भीम,नकुल, भीष्म, दुर्योधन, कर्ण, कृष्ण, बलदाऊ ,राम लक्ष्मण, सुग्रीव, बाली इत्यादि। और यदि हम पृथ्वीराज चौहान के समकालीन क्षत्रियों के नामों का अध्ययन करते हैं तो भी हमें सिंह शब्द का प्रचलन दिखाई नहीं देता है,जैसे_पृथ्वीराज,जयचंद ,मलखान, ब्रह्मा इत्यादि, यदि इसके बाद के इतिहास का अध्ययन करते हैं तो पता चलता है कि क्षत्रिय अपने नाम के अंत में वीरता सूचक शब्द जैसे मल या पाल जैसे शब्दों का प्रयोग करने लगे थे । हम पूर्ण दावे के साथ कह सकते हैं कि लगभग पंद्रहवी/सोलहवीं शताब्दी तक यानी जब तक भारत पर अकबर का शासन नहीं था तब तक क्षत्रियों में "सिंह" शब्द का प्रचलन दिखाई नहीं देता है, क्योंकि कि उस समय के क्षत्रिय महाराणा प्रताप, राणा सांगां ,शक्ति प्रताप, भारमल इत्यादि एेसे क्षत्रियों के नामों को देखा जा सकता है जिनके अंत में सिंह शब्द का प्रयोग नहीं किया गया था। ऐतिहासिक अध्ययन से पता चलता है कि सम्राट अकबर ने सबसे पहले "सिंह" शब्द की उपाधि उस गद्दार को दी जिसने अकबर की मदद अपने सगे भाई महाराणा प्रताप के खिलाफ मुगलों की तरफ से लड़ा जिसका नाम है , शक्ति

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