Thursday, February 27, 2020

समाज विकास के लिए लोगो में नई सोच व जज्बा चाहिए, बंदरो जैसा डर नहीं होना चाहिए



एक बार की बात है कुछ वैज्ञानिकों ने मिलकर बड़ा ही दिलचस्प प्रयोग किया। वैज्ञानिकों ने एक बड़े से पिंजरे में 5 बंदरों को बंद कर दिया और उसके बीच में एक सीढ़ी खड़ी कर दी जिसके ऊपरी छोर पर केले लटक रहे थे। जैसी कि उम्मीद थी, जैसे ही उनमें से एक बंदर की नज़र केलों पर पड़ी वह बंदर केले खाने के लिए दौड़ पड़ा, लेकिन जैसे ही उसने अभी कुछ ही सीढ़ियां चढ़ी थी कि अचानक उस पर ऊपर से तेज पानी की बौछार कर दी गई; जिससे उसे पीछे उतरकर भागना पड़ा। पर यह प्रयोग यही खत्म नहीं हुआ, वैज्ञानिकों ने एक बंदर की किये कि सजा अन्य बंदरों को भी दे दी और सभी पर ठंडे पानी की बौछार कर दिया। डरे-सहमे सभी बंदर एक कोने में दुबक गए।

खैर, बंदर तो बंदर ही होते हैं। बेचारे कब तक ऐसे दुबके बैठे रहते, कुछ वक्त के पश्चात एक दूसरे बंदर को केलों को देख खाने का मन कर दिया, और वह भी ईधर-उधर कुदते हुए सीढ़ी की तरफ जाने लगा…..अभी उस बंदर ने चढ़ना ही शुरू किया था कि उस पर भी पानी की बौछार कर उसे नीचे भेज दिया गया….और इस बार फिर इस बंदर की गलती की सजा बाकी सारे बंदरों को भी दी गई।
दुबारा सारे बंदर डर कर एक कोने में बैठ गए। कुछ समय बाद जब तीसरा बंदर केले खाने के लिए आगे बढ़ा तो एक आश्चर्यजनक बात हुई…. अन्य सारे बंदर उसे पीछे से पकड़ने के लिए दौड़ पड़े और केलों को खाने से रोक दिया, जिससे उन्हें एक बार दुबारा ठन्डे पानी की सजा न झेलनी पड़े।
अब वैज्ञानिकों ने एक बड़ा ही मज़ेदार बदलाव किया, पिंजरे में बंद बंदरों में से एक को बाहर निकाल दिया और उसकी जगह एक नए बंदर को अंदर भेज दिया।
नया बंदर तो अंदर आ गया लेकिन उसे वहां के नियम-कायदो का क्या पता, वह भी जल्द ही केलों की तरफ दौड़ा, लेकिन अन्य सभी बंदरों ने मिलकर उसकी जम कर पिटाई कर दी, उसे कुछ समझ नहीं आया कि आखिर उन्होंने उसे क्यों पिटा?….लेकिन धीरे-धीरे उसे भी समझ आ गया कि ऊपर दिख रहे केले केवल देखने के लिए ही हैं, खाने के लिए नहीं।
उसके बाद प्रयोगकर्ताओं ने एक और पहले से बंद बंदर को बाहर निकाला और एक नये बंदर को अंदर कर दिया, और एक फिर वही हुआ जैसा की होना था नये बंदर ने भी केलों को लपकना चाहा लेकिन दूसरें बंदरों ने उसकी खूब पिटाई कर दी और सबसे मजे की बात ये थी कि पिछली बार वाला नया बंदर भी पिटाई करने वाले बंदरों में शामिल था, जबकि उसे एक बार भी ठंडे पानी से नहीं भीगोया गया था।
प्रयोग के आखिर में, सभी पहले से बंद बंदर बाहर आ चुके थे और नए अंदर थे जिन्हें एक बार भी ठंडे पानी से नहीं भीगोया गया था, परन्तु उनका व्यवहार भी पहले के बंदरों जैसा ही था, वे भी किसी नए आए बंदर को केलों को छूने नहीं देते थे।
दोस्तों, हमारे जीवन में भी समाज का व्यवहार कुछ ऐसा ही कुछ होता है l अन्धविश्वास और कुप्रथाओं का चलन भी कुछ इसी तरह होता है क्योंकि हम लोग उन प्रथाओं और रीति-रिवाजों के पीछे का कारण जाने बिना ही उनका पालन करते रहते है, और नए कदम उठाने की हिम्मत कोई नहीं करता, क्योंकि ऐसा करने पर समाज के विरोध करने का डर बना रहता है l
जब भी हम कोई काम लीक से हटकर शिक्षा, खेल, एंटरटेनमेंट, व्यापार, राजनीति, समाजसेवा या किसी अन्य क्षेत्र में करना चाहते है, तब हमारे आस पास के लोग हमें ऐसा करने से रोकते हैं । हमें असफल होने का डर दिखाते है और ये सब करने वाले ज्यादातर वो लोग ही होते है जिन्होंने स्वयं उस कार्य-क्षेत्र में कभी हाथ नहीं लगाया होता हैं।
इसलिए यदि आप भी कुछ नया या लीक से हटकर अलग करने की इच्छा रखते हैं और आपको भी समाज के विरोध का सामना करना पड़ रहा है तो थोड़ा चौकन्ना रहिए, अपने दिल और अपने अंतरात्मा की आवाज सुनिए और अपनी सामर्थ्य और अपने विश्वास से आगे बढे l कुछ बंदरों की जिद्द के आगे आप भी बन्दर मत बन जाइए l


Wednesday, February 26, 2020

अखिल भारतीय रैगर महासभा की स्थापना हुए 75 साल, महासभा विकास की ठोस नीति तैयार करे



दिल्ली समाजहित एक्सप्रेस l देश को आजाद हुए 73 साल हो गए है और अखिल भारतीय रैगर महासभा की स्थापना हुए 75 साल हो गए है l नवम्‍बर, 1944 में स्‍वामी आत्‍मारामजी लक्ष्‍य ने रैगर समाज के संगठन के महत्‍व को समझते हुए अखिल भारतीय रैगर महासभा की स्थापना की l कोई भी समाज तभी उन्नति कर सकता है, जब समाज के लोग अपने अस्तित्व से पूरी तरह वाकिफ हो l इसके लिए समाज के लोगो को समाजहित में सोचना-सीखना होगा, अपनी समस्याओं के समाधान खुद तलाशना सीखना होगा l

अखिल भारतीय रैगर महासभा के पदाधिकारियों ने आज़ादी से 1986 तक के दौर में समाज के धर्मगुरुओ के विचारों और राष्ट्रीय नेतृत्वकर्ता भौलाराम तौणगरिया, कन्‍हैया लाल रातावाल, नवल प्रभाकर जाजोरिया, छोगा लाल कंवरिया व धर्मदास शास्त्री आदि की सोच से समाज पोषित होकर विकास करता रहा l लेकिन बाद के वर्षों में सोच-विचार की भिन्नताओं और नेतृत्व के व्यक्तिगत अहं और स्वार्थ के चलते महासभा दो अध्यक्षों के हाथो में चली गई l जब से आज तक समाज विकास के बजाय महासभा के नेतृत्वकर्ताओ के बीच खीचतान चलती रही है । नेतृत्व की वैचारिक भिन्नता के चलते तन-मन-धन से पूरी तरह समर्पित समाज के लोग समझ नहीं पा रहे हैं कि कौन समाजहित में है और कौन नहीं ।
अखिल भारतीय रैगर महासभा के पदाधिकारीगण ऐसी व्यवस्था अपनाये हुए जिसमें बेहद गंभीर मुद्दों और नीतिगत फैसलो पर समाज के लोगो के साथ व्यापक विचार मंथन नहीं किया जाता और ना ही किसी भी विशेष मसले पर समाज के लोगो को सोचने-समझने के लिए वक्त भी नहीं दिया जाता l  गंभीर मसले और नीतिगत फैसले भी दिखावे के तौर पर लिए और लागू किए जाते है l  मानो जैसे सिर्फ उन नीतिगत फैसले के प्रचार प्रसार करके ही, किसी सामाजिक समस्या का हल व विकास पा लिया जाएगा l
मैं रैगर समाज से हूं, और इसके उत्थान और पतन से भली भांति परिचित हूं और वर्तमान में रैगर समाज के उत्थान के लिए प्रयासरत हूँ, आज रैगर समाज छोटे छोटे ग्रुप में संगठित होकर के अलग-अलग दल और संस्थाओ में बंटा हुआ है l जिसके कारण समाज के सभी लोग एकजुट होकर कभी एक मंच पर नही आ पाते है और पदाधिकारियों की विसंगतिओ का पुरजोर विरोध नहीं कर पाते, यही महासभा और अन्य सामाजिक संस्थाओ के पदाधिकारियों का सुरक्षा कवच है ।
किसी भी समाज का अतीत बहुत महत्त्वपूर्ण होता है । अपने इतिहास के प्रति अज्ञानता और  उदासीनता के कारण खुद रैगर समाज की युवा पीढ़ी भी अंधेरे में है और भ्रमित हैं l राजनेता व स्वहित साधने वाले स्वार्थी लोग इस बात का फायदा उठाकर युवाओ बरगलाते रहते है l लोग संगठित होकर संगठन बनाकर राजनैतिक लाभ लेना कोई बुरी बात नही लेकिन अपना इतिहास और अपने गुरूओं व महापुरुषों की जगह अन्य को महत्व देने से कोई लाभ नही होने वाला l सभी धर्मो और जातियों का आदर करे, लेकिन अपनी जाति व अपने समाज के महापुरुषो, गुरूओं व पुर्वजों का मान-सम्मान करना ना भूले l
रैगर समाज के साहित्यकारों व प्रबुद्ध लेखको को ऐतिहासिक योगदान के लिए साधुवाद, मुख्यतः जीवन राम गुसाईवाल, डॉ० पी.एन. रछौया,  डॉ. राजेन्‍द्र प्रसाद गाडेगावलिया, चिरंजीलाल बोकोलिया, रमेश चन्द जलूथरिया, चन्‍दनमल नवल, रूपलाल जलुथंरिया आदि द्वारा रैगर समाज के शोधपूर्ण इतिहास की रचना की गई जो उच्‍च कोटी के रैगर इतिहास होकर अत्‍यंत ज्ञानवर्धक एवं समाजोंपयोगी सिद्ध हुए है। ये सभी साहित्यकार धन्‍यवाद के पात्र है। साहित्‍य समाज का दर्पण होता है जिस समाज का साहित्‍य जितना विकसित होगा वह समाज उतना ही उन्नत व जाग्रत होगा।
आज अगर हम सचमुच में रैगर समाज का शैक्षिक, सामाजिक, आर्थिक एवं राजनैतिक विकास चाहते हैं तो वर्तमान हालातो से समाज को आज़ाद कराने की जरूरत है l सर्वप्रथम समाज के लोगो मे एक सोच बने, समाज को एक दिशा मिले और समाज का एक लक्ष्य तय हो और एक ही मजबूत संगठन हो l  समाज में ज्यादा संगठन बनाने से हमारी शक्तियां भी बंट जाती है । यदि अनेक संगठन भी हो तो वे सभी मजबूत संगठन के घटक/इकाई संगठन हो । दूसरा समाज में किसी को सम्मान देने का पैमाना धन-दौलत न बने l हमें ऐसा माहौल बनाना होगा जहां सबसे ज्यादा सम्मान उस मजदूर को मिले जो चाहे शारीरिक मेहनत करता हो या मानसिक, अपने कौशल के साथ मेहनत करता हो या प्रतिभा के साथ, अपनी कला से समाज की सेवा कर रहा हो या किसी आविष्कार से, इसके लिए पुरानी सोच को तोड़कर एक नई सोच लाने की जरूरत होगी l
(इस आलेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किये हैl)

Monday, February 24, 2020

स्वामी आत्माराम जी 'लक्ष्‍य' का जीवन परिचय


जब रैगर जाति सामन्‍त शाही धर्मनीति के अन्‍दर बुरी तरह कुचली जा रही थीतब रैगर बन्‍धु मनुष्‍य से दूर पशुतर जीवन व्‍यतीत कर रहे थे और जब कुछ नवयुवक अपने इस सामाजिक व्‍यवस्‍था से छुटकारा पाने के लिये कुछ कर गुजरने के लिए व्‍यथित थे उस समय इन बिखरी हुई शक्तियों को एक सूत्र में पिरोने के लिये उसको एक निर्दिष्‍ट मार्ग देने के लिये उस परम पिता परमात्‍मा की कृपा से जयपुर राज्‍य के अन्‍तर्गत शिवदासपुरा ग्राम में श्री गणेशराम जी खोरवाल के यहां विक्रम सम्‍वत् 1964 (17अगस्‍त 1907) की कृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी को एक पुत्र रत्‍न का जन्‍म हुआ । जिसका नाम कन्‍हैयालाल रखा गया । बालक कन्‍हैयालाल के पिता एवं माता श्रीमती पाँचा देवी बहुत ही साधु प्रकृति के व्‍यक्ति थे ।
       ईश्‍वर अपने आगामी कार्यों की झलकी कई बार प्रकृति के द्वारा देता है । भगवान को शायद यह इष्‍ट था कि बालक कन्‍हैयालाल आगे चल कर रैगर जाति में एक सामाजिक क्रान्ति का सूत्रपात करें । इसके लिये सबसे आवश्‍यक था बालक को प्रारम्‍भ से ही पकानाउसे कष्‍टसाध्‍य बनाना ,जिस प्रकार सोने को आग में डालकर पवित्र किया जाता है । उसी प्रकार उस परमपिता परमेश्‍वर ने बालक कन्‍हैयालाल जी को विपत्तियों पर विपत्ति आई उनकी जीवन के प्रथम तीन वर्ष पश्‍चात् जब इनके पिता की मृत्‍यु हुई और इसके पश्‍चात् जब इनकी माता का स्‍वर्गवास हुआ ।
       बालक कन्‍हैयालाल अनाथ हो गये और इसी अवस्‍था में उनके जीवन का दूसरा (अध्‍याय) शुरू होता है । जबकि उनकी भुआजी दिल्‍ली में रहती थी उन्‍हें अपने पास पालन-पोषण हेतु ले आई । बुआ फूफा भी निर्धनि थेअत: वह इन्‍हें किसी प्रकार की शिक्षा नहीं दिला सके । अभावों में पलता हुआ बाल निर्धनता के झकोरे खाता रहा । इन परिस्थितियों ने बालक के हृदय में दया का भाव भराऔर भरा उसमें करूणा का अथाह सागर शायद बालक कन्‍हैयालाल का बाल हृदय इस संसार से क्षुब्‍ध हो जाता परन्‍तु भुआ के मात्रवत स्‍नेह ने उन्‍हे जकड़े रखा और माता के प्‍यार से वंचित बालक के हृदय ने भुआ के स्‍नेह से ओत-प्रोत हो उसी में अपनी मां को प्राप्‍त किया ।
      छोटी आयु में ही इच्‍छा न रहते हुए भी इनका विवाह हो गया । लेकिन यह अपने गृहस्‍थ जीवन से सन्‍तुष्‍ट नहीं थे । कुछ तो बचपन से ही इनके हृदय में जातीय सुधार सम्‍बन्‍धी अंकुर विद्यमान थे एवं इन्‍हें से प्रेरित होकर ही इन्‍होंने विवाह का विरोध भी किया । इनका गृहस्‍थ जीवन से असन्‍तुष्‍ट रहने का मुख्‍य कारण इनके विचारों का अपनी स्‍त्री के विचारों से ताल-मेल न होना था । इनकी धर्मपत्‍नी कुटिल स्‍वभाव की स्‍त्री थी उससे यह हमेशा दुखी रहा करते थे । यह भी शायद ईश्‍वर की पूर्व निश्चित योजना के अनुसार ही था अन्‍यथा यदि कन्‍हैयालाल‍ को एक सुचरित्रा ग्रहणी मिल जाती तो वह उसी में उलझ जाते और कन्‍हैयालाल केवल कन्‍हैयालाल ही रह जाते ।
      बचपन से ही श्री कन्‍हैयालाल जी कुशाग्र बुद्धि के थे इनको बचपन से ही भजन कीर्तन में अत्‍यधिक रूचि थी । जिसका मुख्‍य कारण यह था कि वह अपने साढू भाई श्री भगताराम रातावाल के घर में ही रहा करते थे एवं श्री भगतारामजी श्री स्‍वामी मौजीराम के मुख्‍य शिष्‍यों में से एक थे एवं सतसंगों में उनकी प्रमुख रूचि थी । इसीलिए अपने प्रारम्भिक अवस्‍था से ही यह भजन लिखा करते थे । दिल्‍ली क्‍लाथ मिल्‍स में जब से इन्‍होने कार्य करना प्रारम्‍भ किया वहां यह कुछ कबीर पंथ के अनुयायियों के सम्‍पर्क में आ गये । उनके साथ प्रतिदिन कार्य करने से एवं निरन्‍तर के सामीप्‍य के कारण शनै: शनै: यह कबीरदास जी के विचारों से प्रभावित होते रहे । उनके कबीर पंथी अनुयायियों के सम्‍पर्क में आने से इनका सम्‍बन्‍ध कबीर पन्‍थी महात्‍माओं से भी बढने लगा और उन पर इनकी प्रतिभा पूर्ण व्‍यक्तित्‍व का प्रभाव पडा एवं उन महात्‍माओं ने इनको अपने सम्‍प्रदाय में सम्मिलित करने का सफल प्रयास किया । इसके पश्‍चात् तो वह पूर्णतया कबीरपन्‍थी सम्‍प्रदाय के अनुयायी बन गए । अब इनका अधिक समय कबीरपन्‍थी साधुओं के साथ व्‍यतीत होने लगा कबीरपन्‍थी होने पर इनका पर्यटन भी बढ गया था पर्यटन में भ्रमण आदि में इनको बहुत सी कठिनाई उठानी पड़ी । श्री कन्‍हैयालाल जी स्‍वामी मौजीराम एवं स्‍वामी ज्ञानस्‍वरूप जी के शिष्‍यों से समय-समय पर शास्‍त्रार्थ किया करते थे । इनको शंका समाधान करने का बडा शोक था । एक बार तो पूर्व निश्चित कार्यक्रम के अनुसार इनके अन्‍य कबीरपंथी साथियों का स्‍वामी मौजीराम जी के मध्‍य एक शास्‍त्रार्थ हेतु वृहद सत्‍संग दिन में गुरूद्वारा (वर्तमान श्री विष्‍णु मन्दिर) में हुआ था । इस सत्‍संग में दंगली भजनों के माध्‍यम से ही तर्को का खण्‍डन मण्‍डन हुआ श्री कन्‍हैयालाल जी कबीरपंथी पक्ष का नेतृत्‍व कर रहे थेस्‍वामी मौजीराम जी के शिष्‍य भी इनकी प्रतिभा से प्रभावित हुए । तत्‍पश्‍चात् तो श्री कन्‍हैयालाल जी का एवं सत्‍संगीयों के साथ परस्‍पर सम्‍बन्‍ध घनिष्‍ट से घनिष्‍टतर होते गएविशेषतया सर्व श्री राम स्‍वरूप जी जाजोरियाश्री कंवरसेन मौर्यश्री आसाराम जी सेवलियाश्री शम्‍भुदयाल जी गोडेगांवलियाश्री खुशहालचन्‍द मोहनपुरिया के साथ इनका विशेष प्रेम एवं सोहाद्र था । इकने अधिक सम्‍पर्क में आने से इनका कबीरपंथीयों से सम्‍बन्‍ध कम होता रहा एवं शनै: शनै: वैष्‍णव धर्म से प्रभावित होने लगे । एकेश्‍वरवाद के स्‍थान पर अवतारवाद में इनका विश्‍वास बढ़ता गया । समय-समय पर स्‍वामी मौजीराम एवं स्‍वामी ज्ञानस्‍परूप जी भी दिल्‍ली आते रहते थे । जिनसे यह प्रभावित होते रहे ।
       एक समय 'गुरूद्वाराके समक्ष रात्रि में एक विशाल सत्‍संग हुआ जिसमें स्‍वामी ज्ञानस्‍वरूप जी उपस्थित थे । इस विशाल सत्‍संग में श्री कन्‍हैयालाल जी ने कबीरपंथी सम्‍प्रदाय का पूर्णतया त्‍याग करके स्‍वामी ज्ञानस्‍वरूप जी महाराज का शिष्‍यत्‍व ग्रहण किया । कन्‍हैयालाल जी अपने दाम्‍पत्‍य जीवन से बहुत दुखी रहते थे इसलिए अपने इस सांसारिक मोहमाया की जन्‍जीर तोड़कर एक धोती एवं लोटा लेकर घर को पूर्णतया त्‍याग कर निकल पडे । घर से निकल कर सीधे स्‍वामी ज्ञानस्‍वरूप जी के टडू आदमी के आश्रम सिन्‍ध में पहॅुचे । स्‍वामी जी ने इनकी कई परीक्षाऐं ली और इन्‍हें घर वापस जाने के लिए दबाव दिया लेकिन अन्‍तत इन सभी परीक्षाओं में वे उत्‍तीर्ण हुएइनके घर त्‍याग के पीछे भी दिल्‍ली के सत्‍संगियों की प्रेरणा थीस्‍वामी ज्ञानस्‍वरूप जी ने इनको अंगीकार किया इनको साधुता की दीक्षा दी । स्‍वामीजी ने इनका नाम आत्‍माराम रखा स्‍वामीजी यह पूर्णतया जानते थे कि शिक्षा के बिना कोई भी व्‍यक्ति न स्‍वयं की नही समाज की उन्‍नति कर सकता है । इस हेतु स्‍वामी जी ने आत्‍माराम को पढ़ाने का निश्‍चय किया प्रारम्भिक शिक्षा के लिए स्‍वामीजी ने इसके लिए पं. लच्छिराम नामक अध्‍यापक रखा । श्री आत्‍माराम जी ने इनसे विचार सागर नाम ग्रन्‍थ का अध्‍ययन किया स्‍वामी ज्ञानस्‍वरूप जी ने सोचा कि शास्‍त्रों के अध्‍ययन के लिए संस्‍कृत का ज्ञान अत्‍यावश्‍यक है एवं श्री आत्‍माराम जी को संस्‍कृत का अध्‍ययन करने की अधिक इच्‍छा थी स्‍वामी जी ने इनको ''श्री ताराचंद जय राम दास संस्‍कृत पाठशाला'' हैदराबाद (सिन्‍ध) में प्रवेश दिलाया इनके अध्‍यापक का नाम श्री फतेहचंद जी था । यह हैदाराबाद में स्‍वामी ज्ञानस्‍वरूप जी के एक अन्‍य आश्रम में अकेले रहने लगे एवं नियमितरूप से विद्या अध्‍ययन करने लगे इस छोटे आश्रम के चारों तरफ चार दिवारी एवं एक छोटी सी कुटीया थी श्री आत्‍माराम जी ने बड़े परिश्रम के साथ एवं लगन के साथ मध्‍यमा परीक्षा पास की । श्री आत्‍माराम की बुद्धि एवं मेघा की प्रशंसा उनके अध्‍यापकगण भी मुक्‍त कण्‍ठ से किया करते थे । श्री आत्‍माराम जी ने ''व्‍याकरण भूषणाचार्य'' की परीक्षा काशी विद्यापिठ के पास करने हेतु काशी भी गये । वहाँ भी उन्‍होंने अपने विद्या अध्‍ययन में एकाग्रचित हो ध्‍यान लगायाइनका शिक्षा भाग श्री स्‍वामी ज्ञानस्‍परूप जी के अतिरिक्‍त दिल्‍ली स्थित स्‍वामी मौजी राम जी एवं स्‍वामी ज्ञानस्‍परूप जी द्वारा संचालित सत्‍संग सभा द्वारा वहन किया जाता था । ''श्री सनातन धर्म सभा'' (वर्तमान श्री स्‍वामी मौजी राम सतसंग सभा) सर्वरूपेण उनको नियमित रूप से आर्थिक सहायता प्रदान करती रही । व्‍याकरण भूषणाचार्य की परीक्षा पास करने के उपरांत स्‍वामी ज्ञानस्‍परूप जी ने आत्‍माराम जी को बताया की उनकी इतनी ही शिक्षा पर्याप्‍त है एवं तत्‍पश्‍चात् उनको रैगर जाति की दुर्दशा का सजीव चित्र प्रस्‍तुत करते हुए उन्‍हे पूर्णतया वास्‍तविकता से अवगत कराया । एवं उन्‍हे निर्देश दिया की जाति सुधार कार्यों में प्रवृत हो जाये । यहा एक विशेष उल्‍लेखनीय बात यह है कि स्‍वामी जी ने दीक्षा के रूप में श्री आत्‍मारामजी को एक 'लक्ष्‍यसमाज सुधार एवं उत्‍थान करना प्रदान किया जिसको आत्‍माराम जी ने अपना 'लक्ष्‍यस्‍वीकार कियातभी से इनके नाम के पीछे लक्ष्‍य लगने लगा । इस प्रकार स्‍वामी जी ने श्री आत्‍माराम लक्ष्‍य के हृदय में सुप्‍तावस्‍था में स्थित जाति सुधार भावना को पूर्णतया जागृत कर दिया । स्‍वामी जी के उपदेशों एवं आदेशों से प्रेरित हो श्री आत्‍माराम जी ने अपने जीवन का एक मात्र लक्ष्‍य रैगर जाति की सेवा अर्थात् जाति उद्धार ही बना लिया था । इस प्रकार श्री आत्‍माराम जी लक्ष्‍य जाति उद्धार के लिए लक्ष्‍य लेकर निकल पड़े । गाँव-गाँव में जा-जाकर श्री आत्‍माराम जी ने सत्‍संगों के माध्‍यम से जाति को सुधार सम्‍बंधी मार्ग पर चलने का प्रचार करने लगे । आत्‍माराम जी का जीवन बहुत सादा एवं राष्‍ट्रवादी भावनाओं से पूर्णतया ओत-प्रोत था । भगवाँ वस्‍त्र न पहनने पर भी सभी जगह स्‍वामी जी कहलाये जाते थे । वे हमेशा खद्दर के वस्‍त्र ही पहनते थे एवं सिर पर खादी की टोपी लगाते थे ।
       स्‍वामी जी ने आंधी थौलाई में एक विशाल सत्‍संग बुलाने की इच्‍छा लेकर दिल्‍ली में पदार्पण किया । उस समय दिल्‍ली के रैगर बंधुओं में दुषित वातावरण था । सारा समाज दो मुख्‍य धड़ों मे बटा हुआ था । दोनों में आपस में तीवृ कटूता एवं दूशम‍नी का साम्राज्‍य था । यही नहीं बल्‍की दोनों दलों में आपस में मारपीट की घटना घटित होती रहती थी । दिल्‍ली की पंचायत रूणिवादी पंचों के हाथ में थी । सनातन-धर्मियों (सत्संगीयों) ने समय-समय पर पंचायत के ढाचें को सुधारने का प्रयास किया । यह लोग चाहते थे कि पंचायत का नियमित रूप से आय-व्‍यय रखा जाए और समय-समय पर जॉच-पड़ताल कराई जाए । इन्‍हीं कारणों वश समाज में एक तनावपर्ण परिस्थिति थी । ऐसे समय जबकि एक वर्ग के लोग दूसरे वर्ग द्वारा संचालित किसी भी कार्य का इसीलिए विरोध करते थे कि यह प्रस्‍ताव दूसरे वर्ग का है स्‍वामी जी का पदार्पण विशेष महत्‍वपूर्ण था । इन्‍होंने यहाँ की तनाव एवं कटुतापूर्ण परिस्थितियों का पूर्णतया अध्‍ययन करने के उपरान्‍त एक सफल प्रयास किया जिससे दूषित एवं घृणितवैमनस्‍यपूर्ण वातावरण के स्‍थान पर सौहार्द्रपूर्णप्रेमशांति एवं जातीय सुधारक वातावरण की स्‍थापना की जा सके ।
       सर्वप्रथम इन्‍होंने अपने विचार को अपने गुरू-भाई सत्‍संगीयों के सन्‍मुख रखा जिन्‍होंने पूर्ण सहयोग देने का आश्‍वासन दिया एवं प्रेरित किया कि स्‍वामी जी अन्‍य रैगर बन्‍धुओं से भी मिलें । स्‍वामी आत्‍माराम जी मोहनलाल पटेल जी से तत्‍कालीन पंचायत के प्रधान थे से मिले एवं उन्‍हें अपने विचारों से अवगत कराया । पटेल जी ने इस कार्य में आशातीत उत्‍साह का प्रदर्शन किया । इस प्रकार स्‍वामी जी ने आर्य समाजियों एवं सत्‍संगीयों के बीच में सौहार्द्रपूर्ण वातावरण उत्‍पन्‍न करने में एक कड़ी का काम किया । उन्‍होंने रैगर समाज के नव युवक वर्ग को एकत्रित किया और उनको जातिय सुधार कार्यों में उत्‍साह के साथ भाग लेने को प्रेरित किया ।
       स्‍वामी आत्‍माराम जी लक्ष्‍य के अथक परिश्रम एवं प्रेरणा से दिल्‍ली स्थित रैगर समुदाय एक व्‍यक्ति (स्‍वामी जी) के नेतृत्‍व में आ गया था । इन्‍हीं की प्रेरणा से मार्च 1944 में एक दिल्‍ली के कार्यकर्ताओं की बेठक आंधी थौलाई में सत्‍संगनुमा विशाल जलसा मनाने के उद्देश्‍य निमित श्री बिहारी लाल जाजोरिया के निवास स्‍थान पर स्‍वामी आत्‍माराम जी की अध्‍यक्षता में हुई । जहा स्‍वामी जी ने नवयुवकों का आह्वान किया कि आपसी कहल का त्‍याग कर जातिय सुधार कार्यों में कन्‍धें से कन्‍धा मिलाकर कार्य करे । इस समय एक दिल्‍ली प्रांतीय रैगर युवक संघ नामक संस्‍था का जन्‍म हुआ । आगे चल कर जिसको स्‍थायी रूप दे दिया गया था । जिसका प्रथम चुनाव निम्‍न प्रकार से था :-

       प्रधान - श्री मोहन लाल जी पटेल
       उप प्रधान - श्री रामस्‍वरूप जी जाजोरिया
       उप प्रधान - श्री ग्‍यारसा राम चान्‍दोलिया
       मंत्री - डॉ. खूबराम जी जाजोरिया
       प्रचार मंत्री - श्री कंवर सैन मौर्य
       कोषाध्‍यक्ष - श्री प्रभुदयाल जी रातावाल

       इनके अलावा लगभग 40 कार्य-कारिणी के सदस्‍य भी निर्वाचित किए गए ।
       आंधी थौलाई में जलसा न कर एक अखिल भारतीय स्‍तर पर रैगर महासम्‍मेलन को बुलाने के लिए निश्‍चय किया गया । महासम्‍मेलन के लिए आंधी थौलाई जैसे छोटे से गांव को जो रेल्‍वे स्‍टेशन से भी पर्याप्‍त दूरी पर हे एवं अन्‍य सम्‍बंधित कठिनाई भी थी आदि कई कारणों को दृष्टि में रखते हुए इस स्‍थान को महासम्‍मेलन के लिए अनुपयुक्‍त समझा गया । तत्‍पश्‍चात् उक्‍त गांव के स्‍थान पर 'दौसानगर उपयुक्‍त समझा गया । इस संघ की ओर से ही डॉ. खूबराम जी जाजोरिया एवं श्री आशाराम जी सेवलिया का एक शिष्‍टमण्‍डल दौसा नगर में महासम्‍मेलन की स्थिति जांचने के लिए भेजा गया । इसके पश्‍चात् इस संघ के अंतर्गत एक शिष्‍टमण्‍डल सर्व श्री नवल प्रभाकर एंव श्री कंवर सैन मौर्य का जावला तथा परबतसर के रैगरों पर होने वाले अत्‍याचारों की जॉच के लिए भेजा गया जहां उन्‍हें पूर्णतया सफलता प्राप्‍त हुई ।
       स्‍वामी आत्‍माराम जी लक्ष्‍य दौसा महासम्‍मेलन के स्‍वागताध्‍यक्ष थे । एवं इस सम्‍मेलन का आयोजन उन्‍हीं की प्रेरणा से हुआ था । सवागताध्‍यक्ष होने पर तो सारा कार्य ही इनके कन्‍धों पर था । महासम्‍मेलन को पूर्णतया सफल बनाने में इन्‍हें अथक प्रयत्‍न करना पड़ा । उपस्‍वागताध्‍यक्ष श्री नवल प्रभाकर जी ने भी इनका पूर्ण सहयोग दिया एवं कन्‍धें से कन्‍धा मिलाकर कार्य किया ।
       भारतवर्ष में सभी स्‍थानों पर जहां भी रैगर बंधु रहते थे वहां पर स्‍वर्णों के द्वारा अत्‍याचार हो रहे थे । राजस्‍थान के तो गांव-गांव में सजातीय बंधुओं पर सभी स्‍वर्ण हिन्‍दुओं का दुर्व्‍यवहार हो रहा था । स्‍वामी आत्‍माराम जी लक्ष्‍य ने गांव-गांव में जाकर जागृति का मंत्र फूंका जिसके फलस्‍वरूप इन्‍हें कई प्रकार की यातनाओं का सामना करना पड़ा । दौसा महासम्‍मेलन एंव जयपुर महासम्‍मेलन जो इनके अथक प्रयास के ही प्रतिफल थेके पारित प्रस्‍तावों का प्रचार करने लगे । इनके जीवन काल मे बहुत दर्दनाक एंव हृदयस्‍पर्शी घटनाएं घटित हुई लेकिन उन सभी घटनाओं का वर्णन न कर केवल एक दो महत्‍वपूर्ण घनाओं का वर्णन ही पर्याप्‍त होगा ।
       कनगट्टी (होलगर स्‍टेट) में स्‍वामी आत्‍माराम जी समाज सुधार सम्‍बंधी प्रचार-प्रसार करने हेतु वहाँ पहुँचे । स्‍थानीय रैगर बंधुओं ने बड़े उत्‍साह के साथ इनका स्‍वागत किया जिसे देख स्‍थानीय ठाकुरजमींदार आदि स्‍वर्ण हिन्‍दू ईर्ष्‍या अग्नि से धधक उठे एवं उन्‍हें यह सहन न हो सका की तथा कथित नीच रैगर जाति का एक साधु का जलूस घोड़े पर उनके गांव में उनकी आँखों के सामने निकाला जाए एंव उनका यह साधु यहां के रैगरों को बेगार न देनेमूर्दा न घसीटनेमुर्दे की खाल न उतारने के लिए इन्‍हें उपेदश दिये । स्‍वर्ण हिन्‍दुओं ने सम्‍म‍िलित रूप में स्‍वामी जी के जलूस पर हमला कर दिया । लाठियों एवं जूतों का प्रहार किया गया । जिससे स्‍वामी जी का बहुत चोट आई लेकिन फिर भी स्‍वामी जी स्‍थानीय रैगर बंधुओं को धर्य प्रदान करते हुए सुधारवादी कार्यों में निरन्‍तर प्रवृत रहने एवं मुसिबतों का दृढ़ता एवं संगठन के साथ मुकाबला करने का उपदेश दिया ।
       एक अन्‍य सबसे महत्‍वपूर्ण घटना स्‍वामी जी के जीवन कोट खावदा ग्राम (जयपुर राज्‍य) में घटीत हुई । यहा पर भी स्‍वामी जी स्‍थानीय रैगर बंधुओं कीजिन पर बेगार आदि न देने पर वहां के ठाकुर लोग अत्‍याचार कर रहे थेरक्षाहेतु वहां पहुंचे । स्‍वामी जी ने स्‍थानीय स्‍वर्णों को समझाने का प्रयास किया । साथ ही उन्‍होंने रैगर बंधुओं को धेर्य प्रदान करते हुए अपने सुधारवादी कार्यों का दृढ़ता से पालन करने का प्रचार किया । स्‍वर्ण हिन्‍दुओं को इनका प्रचार अच्‍छा नहीं लगा जिसके परिणाम स्‍वरूप वहां के जागीरदारों ने इनको नजरबन्‍द कर लिया एवं इनके साथ दुर्व्‍यवहार एवं मार-पीट की गई । लगभग 24 घंटे तक इनको काठ (जेल) (एक विशेष प्रकार की सजा दोनों टांगों को पर्याप्‍त दूरी पर रखा जाता है) दे दिया गया । इस पर भी स्‍वामी जी ने धैर्य को नहीं छोड़ा स्‍वामी जी कभी भी इन नाना प्रकार की यातनाओं से अपने ध्‍येय से पदच्‍युत नहीं हुए क्‍योंकि इनका एक मात्र लक्ष्‍य जाति उत्‍थानहमेशा इनके समक्ष बना रहता था ।
       जयपुर महासम्‍मेलन के समय ही इनका स्‍वास्‍थ्‍य खराब हो गया था । स्‍वामी जी के स्‍वास्‍थ्‍य खराब होने का एक कारण यह था कि उन्‍होंने कभी भी अपने स्‍वास्‍थ्‍य की ओर ध्‍यान नहीं दिया । जाति हित के प्रबल चितेरे को अपने स्‍वास्‍थ्‍य का ध्‍यान हो भी केसे सकता था । जयपुर महासम्‍मेलन को सफल बनाने हेतु स्‍वामी जी ने राजस्‍थान के गांव-गांव में पद यात्रा की । दौसा सम्‍मेलन के उपरांत काण्‍डों में स्‍वामी जी को बड़ी कठिनाईयों का सामना करना पड़ा । स्‍वामी आत्‍माराम जी ने इस महासम्‍मेलन की समाप्ति पटरी मंगलानन्‍द जी को जो महाराज ज्ञानस्‍परूप जी के परम शिष्‍यों में से एक थे एवं उस समय हैदराबाद (सिंध) में पढ़ा करते थेको अपने उपचार के लिए रोका । उनके आदेशानुसार श्री मंगलानन्‍द जी वहां पर उनके साथ रूक गए । जयपुर से ज्‍येष्‍ठ मास में दिल्‍ली में पहुँचे । दिल्‍ली में महाराज ज्ञानस्‍परूप जी के शिष्‍यों ने इनकी बहुत सेवा की एवं इनका इलाज कराया । स्‍वामी जी का ईलाज आयुर्वेदिक औषधालय तिबिया कालेज में वहां के श्री चन्‍द्रशेखर शास्‍त्री नामक योग्‍य वैद्य द्वारा हुआ लेकिन अन्‍तत: इन्‍हें स्‍वास्‍थ्‍य लाभ नहीं हो सका । विपरीत इसके इनके रोग में निरन्‍तर वृद्धि होती रही । तत्‍पश्‍चात् स्‍वामी आत्‍माराम जी को अपनी रुगणावस्‍था में भी जातिय सुधार कार्यों में भाग लेने की इच्‍छा बनी रहती थी । दिल्‍ली के स्‍वामी जी मंगलानन्‍द जी के साथ जयपुर अजमेर रूकते हुए 'ब्‍यावरमें पहुँचे । ब्‍यावर में स्‍वामी जी श्री सूर्यमल जी मौर्य एंव श्री रामचन्‍द्र जी पवार आदि महानुभावों के यहां विश्राम किया । वहाँ स्‍वामी जी की चिकित्‍सा होने लगी लेकिन कोई सफलता प्राप्‍त नहीं हुई । कुछ समय ब्‍यावर में रूकने के पश्‍चात् हैदराबाद (सिंध) गये वहां स्‍वामी जी के आश्रम पर इनकी चिकित्‍सा होने लगी । वहाँ पर इनकी चिकित्‍सा एक प्रसिद्ध राजपूत वैद्य से कराई गई । उन्‍होंने इनका ईलाज किया एवं स्‍वामी जी को विश्‍वास दिलाया कि वे शीघ्र ही ठीक हो जायेगें लेकिन एकान्‍त में श्री मंगलानन्‍द जी को बताया कि इनका यह संग्रहणी रोग लाइलाज हो गया है । ओर के चार मास में इस नश्‍वर संसार को छोड़कर जायेंगे । इससे मंगलानन्‍द जी पर बज्रपात सा हुआ लेकिन फिर भी ईश्‍वर पर भरोसा करते हुए अपने हृदय को धैर्य प्रदान किया एवं इस तथ्‍य को स्‍वामी जी से छिपाये रखा ।
       इसके पश्‍चात् स्‍वामी आत्‍माराम जी पुन: हैदराबाद से जयपुर श्री मंगलानन्‍द जी के साथ पधारे । इस समय उनके हालात नाजुक दौर से गुजर रहे थे । जयपुर में स्‍वामी जी श्री लालाराम जलुथिरिया चांदलोल गेट के निवास स्‍थान पर रूके श्री लालाराम जी ने भी इनकी सेवा करने में भरसक प्रयत्‍न किया खतरनाक स्थिति में थे । मरणासन अवस्‍था में जब इन्‍हे ऐसा विश्‍वास हो गया कि वे अब इस संसार में केवल थोड़े समय के अतिथि है तो तब स्‍वामीजी ने अपने निकटतम साथी श्री कॅवरसेन मौर्य को याद किया श्री कॅवरसेन मौर्य पर उनका अत्‍यधिक प्रेम था एवं इन दौनों ने समाज कार्यो यथा प्रचार एवं काण्‍ड़ो में कन्‍धे से कन्‍धा मिलाकर कार्य किया था । स्‍वामी जी को श्री कॅवरसेन जी से अपने अधूरे कार्यो की पूर्ति की आशा थी । स्‍वामी जी द्वारा श्री कॅवरसेन जी को तार दिया गया । तार पाते श्री कॅवरसेन मौर्य जी ने दिल्‍ली से प्रस्‍थान किया एवं जयपुर में पहॅुच कर स्‍वीमा जी के दर्शन किये । स्‍वामी जी ने श्री कंवरसेन मौर्य जी को बताया कि वह सम्‍भवत: इस संसार के थोड़े ही दिनों के ही महमान है एवं सारा कार्य ही अधूरा है । इस प्रकार स्‍वामीजी समझते थे कि जिस 'लक्ष्‍यको प्राप्‍त करने की प्रतिभा लेकर महाराज स्‍वामी ज्ञानस्‍वरुप जी के आशिर्वाद से उस क्षैत्र में पदार्पण किया उसमें सफलता नहीं मिल सकी । इस बात का उन्‍हे बहुत दू:ख था । वस्‍तुत: स्‍वामी आत्‍मारामजी 'लक्ष्‍यअपने जीवन पर के लक्ष्‍य की प्राप्ति में पूर्ण रूपेण सफल रहे । लेकिन फिर भी उन्‍होंने वसीयत के रुप में अपने जीवन को तीन अन्तिम अभिलाषा व्‍यक्‍त की जिन्‍हे स्‍वामीजी अपने जीवन काल में ही पूरा करना चाहते थे लेकिन कर नहीं सके थे । इन्‍होंने श्री कंवरसेन जी को बताया कि सर्वप्रथम तो रैगर जाति का एक विस्‍तृत इति‍हास लिखा जाना चाहियेदूसरे जाति के समाचार पत्र का महत्‍व बताते हुए अभिलाषा प्रकट की कि रैगर जाति का अपना एक समाचार पत्र हो । तीसरे रैगर जाति के उच्‍च शिक्षा का अध्‍ययन करने वाले विद्यार्थियों के लिए रैगर छात्रावास का निर्माण होना चाहिए । श्री कंवरसेन मौर्य प्रचार मन्‍त्री अखिल भारतीय रैगर महासभा ने पूर्णतया स्‍वामी जी को विश्‍वास दिलाया एवं यथाशक्ति अधूरे कार्य को पूर्ण करने का आश्‍वासन दिया ।
       परन्‍तु विधाता का विधान कुछ और ही था रैगर जाति का समय प्रयत्‍नबहुत से लोगों की सेवा एवं प्रसिद्ध वैद्य डाक्‍टरों की औषधियॉ बेकार हो गई । वह दिन भी आया जब जाति का वह सितारा जिसने बहुत से लोगों के मन में ज्‍योति जगाई एवं इन्‍हें समाज सेवा के लिये प्रेरित किया था । 20 नवम्‍बर बुधवार प्रात: काल 1946 को उस 'त्‍यागमूर्ति के जिसने अपना सारा जीवन अपने 'लक्ष्‍यकी पूर्ति में लगा दिया प्राण पखेरु अनन्‍त गगन की ओर उठ गए । रैगर जाति को प्रकाशित करने वाला वह सूर्य अस्‍त हो गया और हो गया उसके साथ ही रैगर जाति की सामाजिक क्रान्ति का स्‍वर्णिम अध्‍याय ।

(साभार- रैगर कौन और क्‍या ?)


डर अंधेरों से नहीं, इंसानों से लगता है

"डर किससे"
डर अंधेरों से नहीं,
इंसानों से लगता है।।
घुरती गली चौराहे पर,
निगाहों से लगता है।।
अंधेरा आबरू नहीं लेता,
इंसान हनन करता है।।
नोचते जानवर ऐसे नहीं,
इंसान हैवानियत करता है।।
इंसान मर चूका है,
शैतान घुमा करता है।।
गुनाहगारों से भरा शहर,
अपनों से डर लगता है।
इंसानियत कहां है अब,
मौक़ा तलाश करता है।।
अब सुरक्षित कहां हूं मैं
कोख में डर लगता है।।
अब सुरक्षित कहां है लड़की,
कोख में डर लगता है।।

Thank you for your swift action regarding my complaint.


Dear Sir/Madam,

I want to notify you that the complaint I filed on 12-02-2020 against Jwala Puri ESI Despensary, After discussing with Mr. Ramesh Kumar (IMO) on the complaint, it has been satisfactorily resolved and I wish to remove the compliant. Thank you for your help, without your intervention it would not have been accomplished.

Thank you again for your assistance & assurance.

Sincerely,


Raghubir Singh Gadegaonlia,

Saturday, February 22, 2020

अपने समाज का नेतृत्व और प्रतिनिधित्व करने के बजाय पार्टियों एवं नेताओं के गुलाम नेता बन कर ही रह गये हैं


1952 में प्रथम चुनाव में जब बाबा साहब डॉ भीमराव अम्बेडकर जी चुनाव हारे थे और एक अछूत होलकर चुनाव जीता तब होलकर बाबा साहब डॉ भीमराव अम्बेडकर से मिलने गया तो उसने बाबा साहब डॉ अम्बेडकर से मुस्कराते हुए कहा कि साहब आज मैं चुनाव जीता हूँ, मुझे वास्तव में बहुत ही खुशी हो रही है...
तब बाबा साहब डॉ भीमराव अम्बेडकर ने कहा कि तुम जीत तो गये तो अब क्या करोगे और तुम्हारा कार्य क्या होगा ?
तब होलकर ने कहा कि मैं क्या करुंगा जो मेरी पार्टी कहेगी वहीं करूँगा...
तब बाबा साहब अम्बेडकर ने पूछा कि तुम सामान्य शीट से चुनाव जीते हो ?
तो होलकर ने कहा कि नहीं मैं सुरक्षित शीट से चुनाव जीता हूँ जो आपकी मेहरबानी से संविधान में दिये गये आपके अधिकार के तहत ही जीता हूँ... बाबा साहब अम्बेडकर ने होलकर को चाय पिलायी.…
होलकर के जाने के बाद बाबा साहब हंस रहे थे तब नानक चन्द रत्तू ने पूछा कि साहब आप क्यों हंस रहे हो ?
तब बाबा साहब अम्बेडकर ने कहा कि होलकर अपने समाज का नेतृत्व और प्रतिनिधित्व करने के वजाय पार्टी के गुलाम बन गये हैं ,मतलब " नाजायज औलाद"
आज कल हमारे समाज के सांसद,विधायक पंच, सरपंच, प्रधान, प्रमुख अपने समाज का प्रतिनिधित्व करने के बजाय
पार्टियों एवं नेताओं के गुलाम नेता बन कर ही रह गये हैं...
यह बात बाबा साहब अम्बेडकर ने 1952 में कही थी जो आज तक सार्थक सिद्ध हो रहा हैं ।

Thursday, February 20, 2020

राजस्थान में दो दलित युवको की बर्बरतापूर्ण मारपीट व उनके गुप्तांगों में पेट्रोल और पेचकस डाला



दिल्ली समाजहित एक्सप्रेस (रघुबीर सिंह गाड़ेगांवलिया) l राजस्थान के नागौर ज़िले में इंसानियत को शर्मसार कर देने वाली घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है, जिसमे दो चचेरे भाइयों को बर्बर तरीके से पीटने और गुप्तांग में पेट्रोल डालते कुछ युवक नजर आ रहे है l वीडियो वायरल होने के बाद पुलिस ने पीड़ित युवक से संपर्क करके बुधवार को 7 आरोपियों के खिलाफ मामला दर्ज किया है । इनमें से पांच को गिरफ्तार कर लिया गया है, 2 की तलाश जारी है।
प्राप्त जानकारी के मुताबिक मामला 16 फरवरी का नागौर जिले के पांचौड़ी इलाके का है । पीड़ित ने 19 फरवरी को पुलिस को शिकायत में बताया कि 16 फरवरी को चचेरे भाई के साथ बाइक की सर्विस करवाने के लिए करणु गांव में एजेंसी पर गया था। वहां भीव सिंह समेत कई अन्य युवकों ने काउंटर से चोरी करने का आरोप लगाया। जब मना किया तो वे भीव सिंह एजेंसी के पीछे ले गये। वहां करीब डेढ़ घंटे तक दोनों भाइयों को बाँध कर बेल्ट और लात-घूसों से उसकी बुरी तरह से पिटाई की। इसके बाद आरोपियों ने पेंचकस पर पेट्रोल से भरा कपड़ा लपेट गुप्तांग में डाला।
आरोपियों ने दलित युवको के साथ बर्बरतापूर्ण मारपीट करने के बाद बाद उसके पड़ोसी अर्जुन सिंह और जेठू सिंह को फोन कर बताया कि दोनों को आकर ले जाएं, इसके बाद घायल युवक का भाई एजेंसी पहुंचा और दोनों को अस्पताल लेकर गया l पीड़ित युवक के परिवार का कहना है कि उन्हें जान से मारने की धमकी दी जा रही थी, इसलिए शिकायत दर्ज नहीं करवाई l आरोपियों ने इस अमानवीय घटना का वीडियो बनाया और उसे सोशल मीडिया पर वायरल भी किया l
मीडिया से प्राप्त जानकारी के मुताबिक, पुलिस ने दोनों युवकों की पिटाई करने वाले 7 आरोपियों भीव सिंह, लक्ष्मण सिंह, आईदान, जसू सिंह, सवाई सिंह, हड़मान सिंह, गणपत राम के ख़िलाफ़ आईपीसी की धारा 323 (चोट पहुंचाने), धारा 342 (गलत तरीके से रोकने), धारा 143 (गैरकानूनी तौर पर इक्ट्ठा होने) और अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया है ।
पुलिस ने कहा कि इस मामले में आरोपी हड़मान, रघुवीर, आईदान, छैल और रहमतुल्ला पांच लोगों को गिरफ्तार कर लिया है और बाकि 2 की तलाश जारी है । मामले की जांच चल रही है l नागौर SP ने बताया कि पुलिस को समय पर सूचना नहीं मिली l उन्होंने कहा कि मामले में कठोर कार्रवाई की जाएगी l
घटना के बारे में बताते हुए लेखक और राजस्थान के प्रसिद्ध दलित विचारक भँवर मेघवंशी ने फ़ेसबुक पर वीडियो शेयर करते हुए लिखा, राजस्थान के नागौर जिले की यह घटना हैवानियत की हद है कैसा बर्बर समाज है यह ?
अशोक गहलोत जी, सचिन पायलट जी ,अगर आपकी सरकार इन दरिंदों को कठोर सजा नहीं दे सके तो आपका यह शासन और प्रशासन हमारे किसी काम का नहीं है!
लानत है उस शासन पर जो कमजोर वर्ग को सुरक्षा न दे सकें। शर्मनाक और निंदनीय कांड ! लगता है कि राजस्थान में सरकार का कोई इकबाल नहीं बचा है।