दिल्ली, समाजहित
एक्सप्रेस (रघुबीर सिंह गाड़ेगांवलिया) l रैगर समाज में निरंतर बिना दहेज की
शादियों की संख्या बढ़ती चली जा रही है। लोग उत्सुक होकर बिना दहेज की शादी करने
में अपनी अहम भूमिका निभा रहे हैं। झुंझुनूं में डॉ. महेन्द्र सबलानिया पुत्र श्रवण सबलानिया
निवासी नवलगढ़ ने डॉ. पूजा डिग्रवाल पुत्री राजकुमार डिग्रवाल (पार्षद नगर परिषद
झुंझुनूं) निवासी झुंझुनूं के साथ बिना दान-दहेज शादी कर समाज के युवाओं को एक संदेश
दिया है।
प्राप्त जानकारी
के मुताबिक रैगर समाज ने समाज में फैली बुराइयां जैसे आपसी भेदभाव, दहेज प्रथा, बाल विवाह, धूम्रपान, मदिरापान सहित अन्य सामाजिक बुराइयों को भी जड़ से मिटाने का आहवान किया है । सामाजिक बुराइयों
पर अंकुश लगाने की रैगर समाज की मुहिम अब रंग लाने लगी है । झुंझुनूं में बिना दान दहेज और
फिजूलखर्ची के अपनी रजामंदी और परिवार के सलाह-मशवरे के बाद डॉ. महेन्द्र सबलानिया
पुत्र श्रवण सबलानिया निवासी नवलगढ़ ने डॉ. पूजा डिग्रवाल पुत्री राजकुमार डिग्रवाल
(पार्षद नगर परिषद झुंझुनूं) निवासी झुंझुनूं, दोनों वर-वधु ने अपने माता-पिता,परिजन एवं अन्य गणमान्यों की मौजूदगी में हिन्दू रीति-रिवाज के साथ प्रणय
सूत्र में बंधकर अनूठी व अनुकरणीय मिसाल पेश की l इस शादी के अवसर पर बड़ी
संख्या में मौजूद परिजनों,रिश्तेदारों व अन्य ने आशीर्वाद देते हुए वर
पक्ष के दहेज न लेने के निर्णय की सराहना की ।
एक सामान्य
परिवार की तरह डॉ. महेन्द्र सबलानिया और डॉ. पूजा डिग्रवाल के परिवार वाले भी बाकी
लोगों की तरह परंपरागत तरीके से शादी करना चाहते थे। लेकिन डॉ. पूजा और डॉ.
महेन्द्र दोनों की सोच फिजूलखर्ची को रोकने की है । दोनों नव दंपती बताते हैं कि
विवाह में दिखावा जरूरी नहीं है । डॉ. पूजा ने कहा कि डॉ. महेन्द्र जैसा साथी
मिलने पर उन्हें बेहद खुशी और गर्व महसूस हो रहा है ।
इस अवसर पर
समाजसेवी राकेश सबलानिया एडवोकेट,
ने कहा, 'मुझे बहुत खुशी हो रही है कि हमारे समाज के प्रतिभाशाली डॉ. पूजा और डॉ.
महेन्द्र ने सदियों से चली आ रही बुरी प्रथा को तमाचा जड़ते हुए समाज में एक नजीर
पेश की । हमें उम्मीद है कि उनके इस सराहनीय कदम से बाकी लोग भी प्रभावित होंगे और
बिना दहेज के शादी संपन्न कराएंगे। आज दहेज और धूम धड़ाके वाली शादी बड़े और अमीर
लोगों के लिए भले ही कोई छोटी बात हो लेकिन एक आम आदमी के लिए बेटी की शादी के लिए
दहेज और पैसों का इंतजाम करना सबसे बड़ी समस्या होती है। ऐसे बहुत से माता-पिता
हैं जो दहेज के चक्कर में जान तक गवां देते हैं।'
उन्होंने आगे कहा
कि दहेज जैसी कुरीति का सबसे बड़ा कारण यह भी है कि हम अभी भी लड़कियों को लड़कों
के बराबर नहीं समझते हैं। लड़के पक्ष के लोग समझते हैं कि शादी करके हम लड़की
वालों पर कोई अहसान कर रहे हैं। इस सोच को खत्म करने के लिए हम सभी को आगे आना
होगा और खुद से एक नई शुरुआत करनी होगी। तब जाकर समाज में कोई बड़ा सामाजिक बदलाव
आ सकेगा। नहीं तो दहेज न मिलने के कारण बहुओं को प्रताड़ित करने और उन्हें मार
देने की खबरें आती रहेंगी।
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