Wednesday, September 23, 2020

बहुजन समाज ने 23 सितम्बर को भीम संकल्प दिवस महोत्सव के रूप में मनाया

 


दिल्ली समाजहित एक्सप्रेस (रघुबीर सिंह गाड़ेगांवलिया) l संघर्ष के दिनों के कुछ क्षण बहुमूल्य होते हैं, जो न केवल व्यक्ति विशेष के जीवन के लिए मार्गदर्शक व निर्णायक हो जाते हैं बल्कि समाज की दिशा व दशा बदल देते हैं l ऐसे क्षणों के कुछ मूक गवाह भी होते हैं, जो इतिहास में अंकित होकर अमर हो जाते हैं l बाबा साहब डॉ० भीमराव अम्बेडकर जी के जीवन के संघर्ष वाले दिनों का एक मूक गवाह गुजरात के बड़ौदा शहर के कमेटी बाग़ में वट वृक्ष मौजूद है l  

आज से 103 पूर्व 23 सितम्बर 1917 को बाबा साहेब डॉ भीम राव अंबेडकर जी को गुजरात स्थित बड़ोदरा के गेस्ट हाउस से तकरीबन दर्जन भर समाज द्रोहियों ने लाठी-डण्डे से उनपर हमला बोल दिया था और उनके ऊपर घृणित व्यवहार करते हुए उनका सामान भी गेस्ट हाउस के बाहर फेंक दिया था l

इस घटना के पीछे केवल मनुवाद का जातिवाद था l उन दिनों बड़ौदा एक रियासत हुआ करती थी और रियासत के मुखिया बड़ौदा नरेश सर सयाजीराव गायकवाड़ थे उन्होंने एक प्रतिभाशाली, होनहार गरीब नौजवान भीमराव को छात्रवृति देकर कानून व अर्थशास्त्र अध्ययन करने हेतु लन्दन भेज दिया l छात्रवृति के साथ यह अनुबंध था कि विदेश से उच्च शिक्षा ग्रहण करने के बाद युवक भीमराव को बड़ौदा रियासत को अपनी दस वर्ष की सेवाएं देगा l

28 वर्षीय वह युवक भीमराव विदेश से उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद अनुबंध के अनुसार अपनी सेवाएं देने के लिए बड़ौदा नरेश के दरबार में हाज़िर हुए l बड़ौदा नरेश ने उस युवक भीमराव की काबलियत को देखते हुए उसे सैनिक सचिव के पद पर तत्काल नियुक्त कर दिया l जातिवाद के कारण यह बात पूरी रियासत में फ़ैल गई, कि बड़ौदा नरेश ने एक अछूत व्यक्ति को सैनिक सचिव बना दिया है l

जातिवाद का प्रभाव इस कद्र हावी था कि सैनिक सचिव के महत्वपूर्ण पद पर भीमराव के नियुक्त होने के बावजूद उनके अधीन कार्यरत कर्मचारी उन्हें फाइल देनी होती तो दूर से ही फाइल फेंक देते थे और चपरासी उन्हें पीने के लिए पानी भी नहीं देता था l रियासत के दीवान को बड़ौदा नरेश ने आदेश दिया कि उच्च अधिकारी भीमराव के रहने की उचित व्यवस्था की जाये, लेकिन दीवान ने बड़ौदा नरेश को स्पष्ट ही इंकार कर दिया था l

जातिवाद के जहर के कारण उच्च अधिकारी भीमराव को रहने के लिए रियासत की किसी हिन्दू लॉज या धर्मशाला में भी उन्हें जगह नही मिली l आखिरकार उच्च अधिकारी भीमराव ने एक फारसी धर्मशाला में अपना असली नाम छुपाकर एवं फारसी नाम एदल सरोबजी बता कर दैनिक किराये की दर पर रहने लगा l लेकिन जातिवाद के समर्थको की आँखों में यह बात चुबने लगी कि भीमराव को रहने की जगह कैसे मिल गई और उन्होंने जातिवाद के बल पर फारसी धर्मशाला में आकर लाठी-डण्डे से उनपर हमला कर जातिसूचक शब्दों से अपमानित किया और सामान निकालकर सड़क पर फेंक दिया l विवश हो भीमराव ने दुखी मन से बड़ौदा नरेश को अपना त्याग पत्र सौंप दिया l

मुंबई जाने के लिए रेलवे स्टेशन पहुंचे, वहां मुंबई जाने वाली ट्रेन चार पांच घंटे विलम्ब से चल रही थी l इस कारण इन्तेजार करने के दौरान भीमराव कमेटी बाग़ के वट वृक्ष के निचे एकांत में बैठ कर फुट फुट कर रोया उस समय उस रुदन को सुनने वाला उस वृक्ष के सिवाय कोई न था l उनके मन में पीड़ा थी कि मैं विदेश से उच्च शिक्षित हूं, और योग्य, प्रतिभावान एवं सक्षम होकर भी वह जातिवाद के कारण उपेक्षित हूं तो देश के करोड़ों अछूत लोगों के साथ क्या हो रहा होगा?

23 सितम्बर 1917 को जब आंसू थमे तो भीमराव ने एक विराट संकल्प लिया अब मैं सारा जीवन इस देश से छुआछूत निवारण और समानता के लिए कार्य करूंगा तथा ऐसा नहीं कर पाया तो स्वयं को गोली मार लूंगा l वह एक साधारण संकल्प नहीं था बल्कि सम्यक संकल्प था l हम रोज ही संकल्प लेते हैं और रात गयी बात गयी की तरह भूल जाते हैं लेकिन न तो उस व्यक्ति के संकल्प साधारण थे और न वह व्यक्ति खुद साधारण था l कमेटी बाग़ के उस वट वृक्ष के नीचे असाधारण संकल्प लेने वाला व्यक्ति कोई और नहीं देश के महान सपूत डॉ. भीम राव अम्बेडकर थे l उनके इस संकल्प से उपजे संघर्ष ने भारत के करोड़ों लोगों के जीवन की दिशा बदल दी l

आज बाबा साहब के विराट संकल्प के 103 वर्ष के अवसर पर हम सब भी मिलकर संकल्प लें कि असमानता व अन्याय का हम प्रतिरोध/प्रतिकार करेंगे | आज संकल्प दिवस पर बाबा साहब के विराट संकल्प को ह्रदय से उनके चरणों मैं नमन करते हुवे, उस महामानव डॉ बाबा साहेब अम्बेडकर जी को कोटि-कोटि नमन !

 

No comments:

Post a Comment