रघुबीर सिंह
गाड़ेगांवलिया
समाजहित
एक्सप्रेस
प्रसिद्ध लोक
देवता बाबा रामदेव जी महाराज का मंदिर पोखरण से लगभग 12 किमी की दूरी पर रामदेवरा नामक गांव में स्थित है । यहाँ
पर रामदेव जी नें जीवित समाधी ली थी । समाधि-स्थल रामदेवरा में भाद्रपद माह की
शुक्ल पक्ष द्वितीया को भव्य मेला लगता है, जहाँ पर देश भर से लाखों हिन्दू-मुस्लिम श्रद्धालु पहुँचते
है । बाबा रामदेवजी मुस्लिमों के भी आराध्य हैं और वे उन्हें रामसा पीर या रामशाह
पीर के नाम से पूजते हैं ।
बाबा रामदेव जी
के मंदिर का निर्माण सन् 1939 में बीकानेर के
महाराजा श्री गंगासिंह जी ने करवाया था l उस समय 57 हजार रुपये की
लागत आई थी । सद्भाव के प्रतीक बाबा रामदेव महाराज के दरबार में भक्तों द्वारा
नारियल ध्वजा चढ़ाकर मत्था टेक कर मनौती पूर्ण करने की कामना करते है । श्रद्धालु
बाबा रामदेव महाराज की परिक्रमा करते हुए बाबा रामदेव महाराज की महिमा में जोरदार
जयकारे लगाकर आसपास के माहौल को भक्तिमय कर देते है । निसंतान दम्पत्ति कामना से
अनेक अनुष्ठान करते हैं तो मनौती पूरी होने वाले बच्चों का झडूला उतारते हैं और
सवामणी करते हैं ।
मंदिर में बाबा
रामदेव की मूर्ति के साथ−साथ एक मजार भी बनी है। मंदिर में प्रातः 04.30 बजे मंगला आरती, प्रातः 8.00 बजे भोग आरती,
दोपहर 3.45 बजे श्रृंगार आरती, सायं 7.00 बजे संध्या तथा
रात्रि 9.00 बजे शयन आरती होती है ।
वर्ष में दो बार रामदेवरा में भव्य मेलों का आयोजन किया जाता है। शुक्ल पक्ष में
तथा भादवा और माघ में दूज से लेकर दशमीं तक मेला भरता है। यहां आने वालों के लिए
बड़ी संख्या में धर्मशालाएं और विश्राम स्थल बनाये गये हैं। सरकार की ओर से मेले
में व्यापक प्रबंध किये जाते है।
मंदिर के समीप ही
स्वयं रामदेव जी द्वारा खुदवाई गई परचा बावड़ी अपनी स्थापत्य कला में बेजोड़ है।
इस बावड़ी का निर्माण फाल्गुन सुदी तृतीया विक्रम संवत् 1897 को पूर्ण हुआ। बावड़ी का जल शुद्ध व मीठा है। बावड़ी का
निर्माण रामदेव जी के कहने पर बणिया बोयता ने करवाया था। बावड़ी पर लगे चार
शिलालेखों से पता चलता है कि घामट गांव के पालीवाल ब्राह्मणों ने इसका
पुनर्निर्माण कराया था। इस बावड़ी का जल रामदेवजी का अभिषेक करने के काम में लाया
जाता है।
गांव के
निवासियों को जल का अभाव न रहे इसलिए रामदेव जी ने मंदिर के पीछे विक्रम संवत् 1439 में रामसरोवर तालाब खुदवाया था। यह तालाब 150 एकड क्षेत्र में फैला है तथा इसकी गहराई 25 फीट है। तालाब के पश्चिमी छोर पर अद्भुत आश्रम
तथा पाल के उत्तरी सिरे पर रामदेवजी की जीवित समाधी है। इसी क्षेत्र में डाली बाई
की जीवित समाधी भी है।
रामदेवजी ने
तत्कालीन समाज में व्याप्त छूआछूत, जात−पांत का
भेदभाव दूर करने तथा नारी व दलित उत्थान के लिए प्रयास किये। दलितों को आत्मनिर्भर
बनने और सम्मान के साथ जीने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने पाखण्ड व आडम्बर का
विरोध किया। यहां कोई छोटा होता है न कोई बडा, सभी लोग आस्था, भक्ति और विश्वास से भरे, रामदेव जी को
श्रद्धा सुमन अर्पित करने पहुंचते हैं । यहाँ सद्भावना की जीती जागती मिसाल हैं ।
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