Wednesday, November 20, 2019

त्यागमूर्ति स्‍वामी आत्‍माराम लक्ष्य जी ने अपने जीवन के अंतिम क्षणों में तीन अन्तिम अभिलाषा व्‍यक्‍त की थी



त्यागमूर्ति स्वामी आत्माराम लक्ष्य जी ने अपने परिवार को त्‍याग कर अपने जीवने के एक मात्र 'लक्ष्‍य'  रैगर जाति के उत्‍थान की प्राप्ति के लिए सर्वस्व न्‍योछावर कर दिया इस लिए उन्‍हे त्‍यागमूर्ति स्‍वामी आत्‍माराम लक्ष्‍य के नाम से भी जाना जाता है । रैगर समाज के ऐसे युगपुरूष त्यागमूर्ति स्वामी आत्माराम लक्ष्यजी के महापरिनिर्वाण दिवस के अवसर पर हम स्मरण कर शत् शत् प्रणाम करते हैं ।
समाज को धर्म एवं शिक्षा के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देकर रैगर समाज को एकता के सूत्र में पिरोने वाले सामाजिक क्रांति के पुरोधा अमर युगपुरुष त्यागमूर्ति स्वामी आत्माराम लक्ष्यजी अपने जीवन में लक्ष्‍य की प्राप्ति में पूर्ण रूपेण सफल रहे । लेकिन फिर भी उन्‍होंने वसीयत के रुप में अपने जीवन को तीन अन्तिम अभिलाषा व्‍यक्‍त की जिन्‍हे स्‍वामीजी अपने जीवन काल में ही पूरा करना चाहते थे लेकिन कर नहीं सके थे । स्‍वामी जी ने कंवरसेन मौर्य जी को रैगर समाज के उत्‍थान के लिए तीन बातें कही, जिसका वृतांत विशेष लेख द्वारा प्रस्तुत है :-
त्यागमूर्ति स्‍वामी आत्‍माराम जी पुन: हैदराबाद से जयपुर मंगलानन्‍द जी के साथ पधारे । इस समय उनके हालात नाजुक दौर से गुजर रहे थे । जयपुर में स्‍वामी जी लालाराम जलुथरिया चांदलोल गेट के निवास स्‍थान पर रूके लालाराम जी ने भी इनकी सेवा करने में भरसक प्रयत्‍न किया खतरनाक स्थिति में थे । मरणासन अवस्‍था में जब इन्‍हे ऐसा विश्‍वास हो गया कि वे अब इस संसार में केवल थोड़े समय के अतिथि है तो तब स्‍वामीजी ने अपने निकटतम साथी कॅवरसेन मौर्य को याद किया l कॅवरसेन मौर्य पर उनका अत्‍यधिक प्रेम था एवं इन दौनों ने समाज कार्यो यथा प्रचार एवं हर काण्‍ड़ में कन्‍धे से कन्‍धा मिलाकर कार्य किया था । स्‍वामी जी को कॅवरसेन जी से अपने अधूरे कार्यो की पूर्ति की आशा थी । स्‍वामी जी द्वारा कॅवरसेन जी को तार दिया गया । तार पाते कॅवरसेन मौर्य जी ने दिल्‍ली से प्रस्‍थान किया एवं जयपुर में पहॅुच कर स्वामी जी के दर्शन किये ।
स्‍वामी जी ने कंवरसेन मौर्य जी को बताया कि वह सम्‍भवत: इस संसार के थोड़े ही दिनों के ही महमान है एवं सारा कार्य ही अधूरा है । इस प्रकार स्‍वामीजी समझते थे कि जिस 'लक्ष्‍य' को प्राप्‍त करने की प्रतिभा लेकर महाराज स्‍वामी ज्ञानस्‍वरुप जी के आशिर्वाद से उस क्षैत्र में पदार्पण किया उसमें सफलता नहीं मिल सकी । इस बात का उन्‍हे बहुत दु:ख था । वस्‍तुत: स्‍वामी आत्‍मारामजी 'लक्ष्‍य' अपने जीवन पर के लक्ष्‍य की प्राप्ति में पूर्ण रूपेण सफल रहे । लेकिन फिर भी उन्‍होंने वसीयत के रुप में अपने जीवन को तीन अन्तिम अभिलाषा व्‍यक्‍त की जिन्‍हे स्‍वामीजी अपने जीवन काल में ही पूरा करना चाहते थे लेकिन कर नहीं सके थे । इन्‍होंने कंवरसेन जी को बताया कि सर्वप्रथम तो रैगर जाति का एक विस्‍तृत इति‍हास लिखा जाना चाहिये, दूसरे जाति के समाचार पत्र का महत्‍व बताते हुए अभिलाषा प्रकट की कि रैगर जाति का अपना एक समाचार पत्र हो । तीसरे रैगर जाति के उच्‍च शिक्षा का अध्‍ययन करने वाले विद्यार्थियों के लिए रैगर छात्रावास का निर्माण होना चाहिए । कंवरसेन मौर्य प्रचार मन्‍त्री अखिल भारतीय रैगर महासभा ने पूर्णतया स्‍वामी जी को विश्‍वास दिलाया एवं यथाशक्ति अधूरे कार्य को पूर्ण करने का आश्‍वासन दिया ।
परन्‍तु विधाता का विधान कुछ और ही था रैगर जाति का समय प्रयत्‍न, बहुत से लोगों की सेवा एवं प्रसिद्ध वैद्य डाक्‍टरों की औषधियॉ बेकार हो गई । वह दिन भी आया जब जाति का वह सितारा जिसने बहुत से लोगों के मन में ज्‍योति जगाई एवं इन्‍हें समाज सेवा के लिये प्रेरित किया था । बुधवार 20 नवम्‍बर 1946 को प्रात: काल उस 'त्‍याग' मूर्ति के जिसने अपना सारा जीवन समाज विकास के अपने 'लक्ष्‍य' की पूर्ति में लगा दिया, प्राण पखेरु अनन्‍त गगन की ओर उठ गए और वे सदेव के लिए चिर निंद्रा में सो गये । रैगर जाति को प्रकाशित करने वाला वह सूर्य अस्‍त हो गया  ।
जो समाज अपने इतिहास पुरूष को याद नहीं रखता, वह समाज कमजोर ही नहीं होता, बल्कि उसकी हस्‍ती मिटती चली जाती है । यह बात समझने की जरूरत है रैगरों को, आजादी और ताकत आसानी से नहीं मिलती, इसके लिए संघर्ष करना पड़ता है।

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