Friday, July 3, 2020

मृत्युभोज एक सामाजिक बुराई के अलावा क़ानूनी दण्‍डनीय अपराध भी है



दिल्ली, समाजहित एक्सप्रेस (रघुबीर सिंह गाड़ेगांवलिया) l जिस भोजन को रोते हुए बनाया जाता है,! जिस भोजन को खाने के लिए रोते हुए बुलाया जाता हैं,! जिस भोजन को आँसू बहाते हुए खाया जाता हैं उस भोजन को मृत्युभोज कहा जाता है। पुराने समय में यह केवल राजा-महाराजाओं और सक्षम लोगों के द्वारा प्रजा के लिए किया जाता था। अब हर आदमी स्वयं को श्रेष्ठ मानने लगा है, कि मेरे पास भी धन है...यह दिखाने के लिए लम्बा खर्च उठाया जाता है। यह इतना खर्चीला हो गया है कि दिखावे और परंपरा के चक्कर में कई साधारण दुखी परिवारों की कमर टूट जाती है वे कर्ज तक में डूब जाते हैं ।

शास्त्रों में कहा गया-सम्प्रीति भोज्यानि आपदा भोज्यानि वा पुनैः अर्थात् "जब खिलाने वाले का मन प्रसन्न हो, खाने वाले का मन प्रसन्न हो, तभी भोजन करना चाहिए। यदि भोजन खिलाने वाले एवं खाने वालों दोनो के दिल में दर्द हो, वेदना हो तो ऐसी स्थिति में कदापि भोजन नहीं करना चाहिए । यदि एक व्यक्ति स्वयं अपने आप को बदल लें और आदर्श कार्य की ओर सच्चे मन से अग्रसर हो जाये तो बहुत कुछ बदलाव हो सकता है ।
मानव विकास के रास्ते में बाधक भू-माफिया, ब्याज-माफिया और मिलावट-माफिया संगठित होकर मृत्युभोज की सामाजिक कुरीति को आगे बढ़ाते हैं। उनके स्वयं के परिजनों की मौत होने पर वे बढ़-चढ़ कर मृत्युभोज के आयोजन पर खर्च करते हैं, जैसे खुशी का मौका हो, मिठाईयाँ बनाई और परोसी जाती है,और लोगो को खिलाकर खुशी का इजहार करते है, ताकि मध्यम और निम्र वर्ग इसे समाज के साथ जुडाव की आवश्यक परम्परा मानकर, या लोक-लज्जा के कारण करता रहे । आप ने देखा होगा एक जानवर भी अपने किसी साथी के मरने पर मिलकर वियोग के दुःख को प्रकट करते हैं और खाना तक नहीं खाते l
मृत्युभोज, किसी भी परिवार की आर्थिक स्थिति को अंदर तक हिला देता है। सरकार ने मृत्युभोज के आर्थिक दुष्परिणामों को देखते हुए, राजस्थान मृत्युभोज निवारण अधिनियम 1960 पारित किया हुआ है l जिसके तहत मृत्युभोज एक दण्‍डनीय अपराध है, इसका उल्लंघन करने वालों के लिए एक वर्ष तक की सजा का प्रावधान किया गया है, आइये इसके प्रावधानों के बारे में विस्तार से जाने :-   
 मृत्‍यु-भोज निषेध कानून :-
मृत्‍यु-भोज जिसमें, गंगा-प्रसादी इत्‍यादि शामिल है अब ''राजस्‍थान मृत्‍यु-भोज निषेध अधिनियम 1960'' के तहत दण्‍डनीय अपराध हो गया है ।
मृत्‍यु-भोज की कानून में परिभाषा :-
राजस्‍थान मृत्‍यु-भोज निषेध अधिनियम की धारा 2 में लिखा है कि किसी परिजन की मृत्‍यु होने पर, किसी भी समय आयोजित किये जाने वाला भोज, नुक्‍ता, मौसर, चहलल्‍म एवं गंगा-प्रसादी मृत्‍युभोज कहलाता है कोई भी व्‍यक्ति अपने परिजनों या समाज या पण्‍डों, पुजारियों के लिए धार्मिक संस्‍कार या परम्‍परा के नाम पर मृत्‍यु-भोज नही करेगा ।
मृत्‍यु-भोज करने व उसमें शामिल होना अपराध है :-
धारा 3 में लिखा है कि कोई भी व्‍यक्ति मृत्‍यु-भोज न तो आयोजित करेगा न जीमण करेगा न जीमण में शामिल होगा न भाग लेगा ।
मृत्‍यु-भोज करने व कराने वाले की सजा व दण्‍ड :-
धारा 4 में लिखा है कि यदि कोई व्‍यक्ति धारा 3 में लिखित मृत्‍यु-भोज का अपराध करेगा या मृत्‍यु-भोज करेन के लिए उकसायेगा, सहायता करेगा, प्रेरित करेगा उसको एक वर्ष की जेल की सजा या एक हजार रूपये का जुर्माना या दोनों से दण्डित किया जायेगा ।
मृत्‍यु-भोज पर कोर्ट से स्‍टे लिया जा सकता है :-
धारा 5 के अनुसार यदि किसी व्‍यक्ति या पंच, सरपंच, पटवारी, लम्‍बरदार, ग्राम सेवक को मृत्‍यु-भोज आयोजन की सूचना एवं ज्ञान हो तो वह प्रथम श्रेणी न्‍यायिक मजिस्‍ट्रेट की कोर्ट में प्रार्थना-पत्र देकर स्‍टे लिया जा सकता है पुलिस को सूचना दे सकता है । पुलिस भी कोर्ट से स्‍टे ले सकती है एवं नुक्‍ते को रूकवा सकती है । सामान को जब्‍त कर सकती है ।
कोर्ट स्‍टे का पालन न करने पर सजा :-
धारा 6 में लिखा है कि यदि कोई व्‍यक्ति कोर्ट से स्‍टे के बावजूद मृत्‍यु-भोज करता है तो उसको एक वर्ष जेल की सजा एवं एक हजार रूपये के जुर्माने या दोनों से दण्डित किया जायेगा ।
सूचना न देने वाले पंच-सरपंच-पटवारी को भी सजा :-
धारा 7 में लिखा है कि यदि मृत्‍यु-भोज आयोजन की सूचना कोर्ट के स्‍टे के बावजूद मृत्‍यु-भोज आयोजन होने की सूचना पंच, सरपंच, पटवारी, ग्रामसेवक कोर्ट या पुलिस को नहीं देते हैं एवं जान बूझकर ड्यूटी में लापरवाही करते हैं तो ऐसे पंच-सरपंच, पटवारी, ग्रामसेवक को तीन माह की जेल की सजा या जुर्माना या दोनो से दण्डित किया जायेगा ।
मृत्‍यु-भोज में धन या सामान देने वाला रकम वसूलने का अधिकार नहीं है :-
धारा 8 में लिखा है कि यदि कोई व्‍यक्ति बणिया, महाजन मृत्‍यु-भोज हेतु धन या सामान उधार देता है तो उधार देने वाला व्‍यक्ति, बणिया, महाजन मृत्‍यु-भोज करने वाले से अपनी रकम या सामान की कीमत वसूलने का अधिकारी नहीं होगा । वह कोर्ट में रकम वसूलने का दावा नहीं कर सकेगा । क्‍योंकि रकम उधार देने वाला या सामान देने वाला स्‍वयं धारा 4 के तहत अपराधी हो जाता है ।
अत: यदि कोई व्‍यक्ति अंधविश्‍वास में फंसकर या उकसान से मृत्‍यु-भोज कर चुका है और उसने किसी से धन या सामान उधार लिया है तो उसको वापिस चुकाने की जरूरत नहीं है । अत: सभी बुद्धिजीवियों का कर्तव्य है कि मृत्‍यु-भोज को रूकावे न मानने पर कोर्ट से स्‍टे लेवे एवं मृत्‍यु-भोज करने व कराने वालो को दण्डित करावें ।
इस देश का जन सामान्‍य, भोले-भाले, अनपढ़, रूढ़ीवादी धर्मभीरू श्रमजीवी वर्ग के लोग स्‍वर्ग-मोक्ष के अंधविश्‍वासी कर्मकाण्‍डों में सस्‍कारों में जीवन भर फंसे रहते है । ये संस्‍कार, कर्मकाण्‍ड इनके काले-भालू रूपी कम्‍बल की भांति लिपट गये है जो छोडना चाहने पर भी नहीं छूटते है है बल्कि गरीबों-कंगाली व बर्बादी के गर्त में डूबों रहे हैं ।


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