दिल्ली समाजहित
एक्सप्रेस (रघुबीर सिंह गाड़ेगांवलिया) l वर्तमान ग्लोब्लाइजेशन यानी वैश्वीकरण के इस दौर में पूरी
दुनिया में प्रत्येक व्यक्ति बेहतर से बेहतरीन होने तथा बेहतर से बेहतरीन पाने की होड़ में लगा हुआ है । इसी पाने और होने की चाहत में लोग बहुत ही अहम अपनी
मातृभाषा को भुलाता चला जा रहा है । जिसके कारण आज हमारे देश की 780 भाषाओं में से 400 विलुप्ति के कगार पर हैं । राजस्थानी लोगो के बीच में राजस्थानी
मातृभाषा ही बेहतर अभिव्यक्ति का माध्यम माना जाता है ।
राजस्थान में
पैदा हुआ कोई भी बच्चा अपनी माँ की गोद में आँचल के साये में माँ के द्वारा बोली
जाने वाली राजस्थानी भाषा ही अपनी माँ से सीखता है, वह उसकी मातृभाषा होती है l उस बच्चे की मातृभाषा ही उसके लिए बेहतर अभिव्यक्ति का
माध्यम होती है l लेकिन जब वह
बच्चा विद्यालय में प्रवेश लायक होता है और प्रवेश करता है तब उस बच्चे को हिंदी
सिखाने के लिए डांट-डपट कर जबरन उसकी मातृभाषा छुडवाई जाती है । जबकि इस तरह का
कृत्य मानवाधिकार के तहत अत्याचार कहलाता है l
भारत के कई
राज्यों में जैसे पंजाब में पंजाबी, गुजरात में गुजराती, तमिलनाडु में
तमिल, महाराष्ट्र में मराठी,
उड़ीसा में उड़िया तथा इसके अलावा चयनित सिंधी,
संस्क़त, उर्दु, मलयालम भाषा के
माध्यम से शिक्षा दी जाती है l लेकिन राजस्थान
में राजस्थानी भाषा में बच्चो को पढाया नहीं जाता l जबकि राजस्थानी भाषा को बोलने
वाले लगभग सभी देशों व प्रदेशो में मौजूद हैं, लेकिन दुर्भाग्य से इसे
संवैधानिक मान्यता नहीं है ।
राजस्थान संपूर्ण
विश्व में अपनी सांस्कृतिक समृद्धि, अदम्य साहस, पराक्रम, शौर्य, वीरता और बलिदान के लिए विख्यात है । लेकिन राजस्थानी भाषा को संवैधानिक
मान्यता प्राप्त करने के लिए अब तक 8वीं अनुसूची में स्थान नहीं मिल पाया है । जबकि राजस्थानी भाषा 12 करोड़ राजस्थानियों की मातृभाषा है, इसका 2500 वर्षो का प्राचीन इतिहास है । राजस्थानी भाषा में रचित गीत,
जो राजस्थान की वंदना का पर्याय बन चुका है l
जिसको सुनते ही पाँव नाचने को उद्धृत हो जाते
हैं, नस-नस में उन्माद सा भर
जाता है, हर आयु वर्ग को जो मदमस्त
कर देने की क्षमता रखता है, जिसके बोल होठों
से कभी लुप्त नहीं हो पाते l ऐसी भाषा शायद ही
कहीं देखने को मिली हो जो तप्त रेगिस्तान में भी सावन की भीनी-भीनी बयारों सी
गुदगुदाहट से भर देती है l
बिना राजस्थानी
मातृभाषा के लोगो को अपनी संवदेनाओं, अपने भावों, अपने विचारों आदि
को भाषा की मिठास और ओजपूर्ण अभिव्यक्ति के साथ एक दूसरे तक प्रेषित करना असंभव
होगा l राजस्थानी भाषा को
संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किए जाने की मांग बीते कई दशकों से उठती रही
है l हाल ही में राजस्थानी
संस्थाओं के फेडरेशन राजस्थान संस्था संघ ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से राजस्थानी
भाषा को संवैधानिक मान्यता दिलवाने की मांग की गई l
मायड़ भाषा
लाड़ली, जन-जन कण्ठा हार।
लाखां-लाखां मोल
है, गाओ मंगलाचार।।
वो दन बेगो आवसी,
देय मानता राज।
पल-पल गास्यां
गीतड़ा, दूना होसी काज।।
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