Tuesday, September 29, 2020

छोटी उम्र में मजबूत इरादे रखने वाली होनिका बुनकर बाघावास ग्राम पंचायत की सरपंच चुनी गई

 


दिल्ली समाजहित एक्सप्रेस (रघुबीर सिंह गाड़ेगांवलिया) l हाल ही में राजस्थान में हुए सरपंच के चुनाव में बाघावास/किशनगढ़ रेनवाल ग्राम पंचायत से देश की सबसे कम उम्र 21 वर्ष की छोटी उम्र में मजबूत इरादे रखने वाली होनिका बुनकर कड़े मुकाबले में अपने प्रतिद्वंदी को 246 मतों से हराकर सबसे युवा सरपंच चुनी गई । सरपंच का चुनाव जीतकर होनिका बुनकर ने अपने नाम एक नया रिकॉर्ड कायम कर एकाएक सुर्खियों में आ गई हैं ।

बाघावास ग्राम पंचायत से छोटी उम्र में मजबूत इरादे रखने वाली होनिका बुनकर गांव की सूरत बदलने का माद्दा रखती हैं । वह चुनाव जीतने के बाद काफी संयमित दिखाई दी l बाघावास ग्राम पंचायत के मतदाताओं का आभार जताते हुये, उन्होंने अपनी जीत का श्रेय अपने समर्थकों और पंचायत के लोगों की प्रेरणा और आशीर्वाद को दिया l

वही होनिका ने कहा कि मैंने ग्राम विकास के लिए जनहित के कार्यो के जो भी वादे किए हैं उन सभी जनहित के कार्यो को करना मेरी प्राथमिकता रहेगी, जिसमें बुनियादी सुविधा जैसे शिक्षा, रोजगार,स्वास्थ्य, स्वच्छता और पेयजल की समस्या के समाधान के लिये विशेष प्रयास किये जायेंगे l

बाघावास ग्राम पंचायत से युवा होनिका बुनकर के सरपंच चुने जाने की ख़ुशी में गाँव में कार्यकर्ताओं और समर्थको में उत्सव जैसा का माहौल है, सभी एक दुसरे का मीठा मुह कराकर बधाई देकर खुशी जाहिर की ।

Monday, September 28, 2020

आप किसी वेबसाइट डिजाइनर या वेब डेवलपर से वेबसाइट को बनवाने की तैयारी में हैं, तो पहले अपने अधिकारों को जानें :-

 


दिल्ली समाजहित एक्सप्रेस (रघुबीर सिंह गाड़ेगांवलिया) l आजकल टेक्नोलॉजी के इंटरनेट युग में लोग अपनी व्यापारिक गतिविधियों को संचालित करने, सामान या स्किल्स को बेचने तथा समाचारों के आदान प्रदान के लिए इंटरनेट का सहारा लेते हैं । इसके लिए उन्हें एक वेबसाइट जरूरी होती है l वेबसाइट को बनवाने के लिए वेबसाइट डिजाइनर या वेब डेवलपर की आवश्यकता होती है l

कुछ वेबसाइट डिजाइनर या वेब डेवलपर अपने प्रचार के दौरान बहुत ही कम कीमत पर डोमेन नेम के साथ वेबसाइट बनाने का ऑफ़र करते हैं और समझौते के समय बहुत सी जानकारी आप से छिपा लेते हैं l ऐसे में जब आप समझौता कर लेते हैं, तब आपसे वेबसाइट बनाने की पूरी रकम लेकर आपको वेबसाइट लिंक और पासवर्ड थमा देते है l किसी भी नए कारोबारी के लिए वेबसाइट लिंक और पासवर्ड मिल जाना उत्साह बढ़ाने वाला कदम होता है l इस दौरान कुछ उच्च तकनीकी शिक्षित, शातिर और चालबाज वेबसाइट डिजाइनर या वेब डेवलपर आपके रुपयों से अपने नाम से डोमेन ख़रीद लेते है जिसकी आपको जानकारी भी नहीं होती है l जो सरासर आपके साथ चीटिंग, धोखाधड़ी और बेईमानी है l

नए कारोबारी लोगो को जानकारी के आभाव में अपने वेबसाइट डिजाइनर या वेब डेवलपर पर जरूरत से ज्यादा विश्वास होता है और वे लोग वेबसाइट डिजाइनर या वेब डेवलपर की सेवा की शर्तों को अच्छे से नहीं पढ़ते है कि आगे अनुरक्षण व रिन्यूअल की दरें क्या होंगी और डोमेन को ट्रांसफ़र या उसका रजिस्ट्रेशन रद्द करने की प्रोसेस जैसी जानकारी से वे अनजान रहते है l अधिकांश लोगो को वेबसाइट की दुनिया की अधिक जानकारी नहीं होती है और इस बात का वेबसाइट डिजाइनर या वेब डेवलपर फायदा उठाते है और उनसे गलत तरीके से ज़्यादा पैसे वसूल कर उनका आर्थिक शोषण करते है l

इसलिए, यदि आप किसी वेबसाइट डिजाइनर या वेब डेवलपर से वेबसाइट को बनवाने की तैयारी में हैं तो आपको पहले इन बातों का पता होना चाहिए कि वेबसाइट का डोमेन किसके नाम से ख़रीदा जाना चाहिए और भविष्य में वेबसाइट के अनुरक्षण व रिन्यूअल की दरें क्या होंगी और डोमेन को ट्रांसफ़र या उसका रजिस्ट्रेशन रद्द करने के प्रोसेस की पूरी जानकारी वेबसाइट डिजाइनर या वेब डेवलपर से लेनी चाहिए l ऐसा करके आप वेबसाइट डिजाइनर या वेब डेवलपर की किसी भी तरह की धोखाधड़ी से बच सकते हैं l

 

 

 

राजस्थानी भाषा मिठास और ओजपूर्ण अभिव्यक्ति की भाषा है, करोडो लोगो द्वारा बोली जाती है

 


दिल्ली समाजहित एक्सप्रेस (रघुबीर सिंह गाड़ेगांवलिया) l वर्तमान ग्लोब्लाइजेशन यानी वैश्वीकरण के इस दौर में पूरी दुनिया में प्रत्येक व्यक्ति बेहतर से बेहतरीन होने तथा बेहतर से बेहतरीन पाने की होड़ में लगा हुआ है । इसी पाने और होने की चाहत में लोग बहुत ही अहम अपनी मातृभाषा को भुलाता चला जा रहा है । जिसके कारण आज हमारे देश की 780 भाषाओं में से 400 विलुप्ति के कगार पर हैं । राजस्थानी लोगो के बीच में राजस्थानी मातृभाषा ही बेहतर अभिव्यक्ति का माध्यम माना जाता है ।

राजस्थान में पैदा हुआ कोई भी बच्चा अपनी माँ की गोद में आँचल के साये में माँ के द्वारा बोली जाने वाली राजस्थानी भाषा ही अपनी माँ से सीखता है, वह उसकी मातृभाषा होती है l उस बच्चे की मातृभाषा ही उसके लिए बेहतर अभिव्यक्ति का माध्यम होती है l लेकिन जब वह बच्चा विद्यालय में प्रवेश लायक होता है और प्रवेश करता है तब उस बच्चे को हिंदी सिखाने के लिए डांट-डपट कर जबरन उसकी मातृभाषा छुडवाई जाती है । जबकि इस तरह का कृत्य मानवाधिकार के तहत अत्याचार कहलाता है l

भारत के कई राज्यों में जैसे पंजाब में पंजाबी, गुजरात में गुजराती, तमिलनाडु में तमिल, महाराष्ट्र में मराठी, उड़ीसा में उड़िया तथा इसके अलावा चयनित सिंधी, संस्क़त, उर्दु, मलयालम भाषा के माध्यम से शिक्षा दी जाती है l लेकिन राजस्थान में राजस्थानी भाषा में बच्चो को पढाया नहीं जाता l जबकि राजस्थानी भाषा को बोलने वाले लगभग सभी देशों व प्रदेशो में मौजूद हैं, लेकिन दुर्भाग्य से इसे संवैधानिक मान्यता नहीं है ।

राजस्थान संपूर्ण विश्व में अपनी सांस्कृतिक समृद्धि, अदम्य साहस, पराक्रम, शौर्य, वीरता और बलिदान के लिए विख्यात है । लेकिन राजस्थानी भाषा को संवैधानिक मान्यता प्राप्त करने के लिए अब तक 8वीं अनुसूची में स्थान नहीं मिल पाया है । जबकि राजस्थानी भाषा 12 करोड़ राजस्थानियों की मातृभाषा है, इसका 2500 वर्षो का प्राचीन इतिहास है । राजस्थानी भाषा में रचित गीत, जो राजस्थान की वंदना का पर्याय बन चुका है l जिसको सुनते ही पाँव नाचने को उद्धृत हो जाते हैं, नस-नस में उन्माद सा भर जाता है, हर आयु वर्ग को जो मदमस्त कर देने की क्षमता रखता है, जिसके बोल होठों से कभी लुप्त नहीं हो पाते l ऐसी भाषा शायद ही कहीं देखने को मिली हो जो तप्त रेगिस्तान में भी सावन की भीनी-भीनी बयारों सी गुदगुदाहट से भर देती है l

बिना राजस्थानी मातृभाषा के लोगो को अपनी संवदेनाओं, अपने भावों, अपने विचारों आदि को भाषा की मिठास और ओजपूर्ण अभिव्यक्ति के साथ एक दूसरे तक प्रेषित करना असंभव होगा l राजस्थानी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किए जाने की मांग बीते कई दशकों से उठती रही है l हाल ही में राजस्थानी संस्थाओं के फेडरेशन राजस्थान संस्था संघ ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से राजस्थानी भाषा को संवैधानिक मान्यता दिलवाने की मांग की गई l

मायड़ भाषा लाड़ली, जन-जन कण्ठा हार।

लाखां-लाखां मोल है, गाओ मंगलाचार।।

वो दन बेगो आवसी, देय मानता राज।

पल-पल गास्यां गीतड़ा, दूना होसी काज।।

Saturday, September 26, 2020

वरिष्ठ कर्मठ समाजसेवी सेवा राम सोकरिया का निधन, समाज में शोक की लहर

 


दिल्ली समाजहित एक्सप्रेस (रघुबीर सिंह गाड़ेगांवलिया) l श्री बाबा रामदेव जन्मोत्सव समारोह समिति पंजी के अध्यक्ष व व धार्मिक एवं सामाजिक संगठनो से जुड़े कर्मठ वरिष्ठ समाजसेवी श्री सेवा राम सौंकरिया जी का शनिवार 26 सितम्बर को अपने आवास 16, रैगरपुरा पर देहांत हो गया । वरिष्ठ समाजसेवी की मौत से पूरे क्षेत्र में शोक की लहर है । समाजसेवी की शव यात्रा में भारी संख्या में लोग शामिल हुए। उनके पार्थिव शरीर का करोलबाग क्षेत्र में स्थित सतनगर श्मशान घाट पर अंतिम संस्कार किया गया । अंतिम संस्कार के दौरान भारी संख्या में गणमान्य व्यक्तियों ने स्व. सेवा राम सौंकरिया को श्रद्धांजलि अर्पित की । मुखाग्नि स्व. सेवा राम सौंकरिया के पुत्र ने दी ।

श्री सेवाराम सौंकरिया जी के निधन से रैगर समाज को बहुत बड़ी क्षति हुई है इसकी पूर्ति नहीं हो सकती । कर्मठ समाज सेवी, श्री बाबा रामदेव जी महाराज की शोभायात्रा के अग्रणी, दिल्ली धर्मशाला ट्रस्ट के संस्थापक अध्यक्ष और अन्य संस्थाओं के पदाधिकारी एवं सदस्य रहे । स्व. सेवा राम सौंकरिया बराबर सामाजिक और धार्मिक कार्यों में आगे रह कर हाथ बंटाते थे l  उनके निधन से रैगर समाज के लोग मर्माहत हैं l वरिष्ठ समाजसेवी श्री सेवा राम सौंकरिया जी के निधन पर सामाजिक, राजनीतिक संस्थाओं के प्रतिनिधियों ने शोक व्यक्त किया ।

समाजहित एक्सप्रेस की टीम परमात्मा से प्रार्थना करती है कि दिवंगत सेवा राम सौंकरिया की आत्मा को अपने श्रीचरणों में स्थान दे कर शांति प्रदान करे व इस संकट की घडी में सौंकरिया परिवार के परिजनों को इस असीम दुख को सहने की शक्ति दे l


सामाजिक विकास के लिए समाज के नेतृत्वकर्ताओ को विकास नीति बनाने की जरूरत है

 


दिल्ली समाजहित एक्सप्रेस (रघुबीर सिंह गाड़ेगांवलिया) l वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए समाज के प्रबुद्ध लोगो को समाज विकास के लिए एक वैकल्पिक विकास नीति (रणनीति) पर सोंचने और विचार करने की आवश्यकता है, जो समाज के अनुकूल हो, जो समाज के हितो के संरक्षण एवं संवर्धन में सक्षम या समर्थ हो और जिससे निरंतरता के साथ समाज का विकास संभव हो l  

शिक्षा के प्रसार से हमारी युवा पीढ़ी शिक्षित जरुर हुई है लेकिन युवाओ के लिए रोजगार के अवसर नहीं के बराबर हैं । जिसके कारण समाज में बेरोजगारी की समस्या ने विकराल रूप धारण कर लिया है । गरीबी और बेरोजगारी के कारण गांवों में समाज के हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं ।

वैकल्पिक (अल्टरनेटिव) सोच का मतलब, पारंपरिक सोच को चुनौती देना, समस्याओं को कुछ इस तरह से हल करना जैसा पहले कभी किसी ने सोचा ही नहीं हो । गांवों और शहरो में समाज के लोगो को संगठित कर सहकारिता के आधार पर उद्योगों को विकसित कर रोजगार के अवसर पैदा करके युवाओ को आत्मनिर्भर बनाया जा सकता है l जिससे युवाओ की बेरोजगारी की समस्या का समाधान हो जायेगा और समाज के लोगो के जीवन में इस प्रकार सकारात्मक परिवर्तन लाकर उनकी जीवनशैली को सुधार कर उन्हें सामर्थ बनाया जा सकता है l

सामाजिक विकास में शिक्षा और रोजगार महत्वपूर्ण सीढ़ी है जिस पर चढ़कर सामाजिक विकास के लक्ष्य को पाना आसान हो जाता है । इसके अलावा समाज के लोगो को सामाजिक कुरीतियां जैसे दहेजप्रथा, बाल विवाह, कन्या भ्रूण हत्या और रीति-रिवाजों के नाम पर फिजूलखर्ची आदि के मुद्दों पर उन्मूलन हेतु लोगो से विचार विमर्श किया जाए, और लोगो को जागरूक कर इन सामाजिक कुरीतियां को दूर करने के संदेश को जन जन तक पहुंचाएं l

आजकल समाज में हिंसा, बलात्कार, चोरी, आत्महत्या आदि अनेक अपराधों के पीछे एकमात्र नशा बहुत बड़ा कारण है । युवा पीढ़ी सबसे ज्यादा नशे की लत से पीड़ित है । नशे के रूप में लोग बीड़ी-सिगरेट, शराब, गाँजा, गुटखे, ब्राउन शुगर, कोकीन, स्मैक आदि मादक पदार्थों का प्रयोग करते हैं, जो स्वास्थ्य के साथ सामाजिक और आर्थिक दोनों लिहाज से ठीक नहीं है । समाज में नशे को सदा बुराइयों का प्रतीक माना है। सरकार भी नशे के पीड़ितों को नशे की लत छुड़ाने के लिए नशा मुक्ति अभियान चलाती है l मनोचिकित्सकों का कहना है कि युवाओं में नशे के बढ़ते चलन के पीछे आधुनिक समाज की बदलती जीवन शैली हैं ।

नशे जैसी सामाजिक बुराई से समाज को बचाने के लिये जन जागरूकता अभियान चलाया जाना जरूरी है । समाज के हर जागरूक व्यक्ति का कर्तव्य है कि वह अपने आसपास नशे की लत से ग्रसित लोगों को नशे से होने वाले नुकसान की जानकारी देते रहें । तभी हम समाज विकास की कल्पना कर सकते हैं ।

आज के वैज्ञानिक युग में अंधविश्वास व रुढ़िवादी परंपराओं की कोई जगह नहीं है । लेकिन कई बार देखा गया है कि जागरूकता के अभाव में समाज के भोले-भाले और रुढ़िवादी परंपराओं को मानने वाले लोगो को कुछ पाखंडी लोग हाथ की सफाई एवं वैज्ञानिक तरीकों से चमत्कार दिखाकर बेवकूफ बनाकर लूटते है तथा शोषण एवं प्रताडि़त करते है । हालांकि सरकार ने अंधविश्वास को रोकने के लिए कानून भी बनाये हुए है । ऐसे में समाज विकास के लिए व्याप्त अंधविश्वास व रुढ़िवादी परंपराओं को रोकने के लिए जनसामान्य में वैज्ञानिक सोच एवं जागरूकता की आवश्यकता है ।

 

Wednesday, September 23, 2020

बहुजन समाज ने 23 सितम्बर को भीम संकल्प दिवस महोत्सव के रूप में मनाया

 


दिल्ली समाजहित एक्सप्रेस (रघुबीर सिंह गाड़ेगांवलिया) l संघर्ष के दिनों के कुछ क्षण बहुमूल्य होते हैं, जो न केवल व्यक्ति विशेष के जीवन के लिए मार्गदर्शक व निर्णायक हो जाते हैं बल्कि समाज की दिशा व दशा बदल देते हैं l ऐसे क्षणों के कुछ मूक गवाह भी होते हैं, जो इतिहास में अंकित होकर अमर हो जाते हैं l बाबा साहब डॉ० भीमराव अम्बेडकर जी के जीवन के संघर्ष वाले दिनों का एक मूक गवाह गुजरात के बड़ौदा शहर के कमेटी बाग़ में वट वृक्ष मौजूद है l  

आज से 103 पूर्व 23 सितम्बर 1917 को बाबा साहेब डॉ भीम राव अंबेडकर जी को गुजरात स्थित बड़ोदरा के गेस्ट हाउस से तकरीबन दर्जन भर समाज द्रोहियों ने लाठी-डण्डे से उनपर हमला बोल दिया था और उनके ऊपर घृणित व्यवहार करते हुए उनका सामान भी गेस्ट हाउस के बाहर फेंक दिया था l

इस घटना के पीछे केवल मनुवाद का जातिवाद था l उन दिनों बड़ौदा एक रियासत हुआ करती थी और रियासत के मुखिया बड़ौदा नरेश सर सयाजीराव गायकवाड़ थे उन्होंने एक प्रतिभाशाली, होनहार गरीब नौजवान भीमराव को छात्रवृति देकर कानून व अर्थशास्त्र अध्ययन करने हेतु लन्दन भेज दिया l छात्रवृति के साथ यह अनुबंध था कि विदेश से उच्च शिक्षा ग्रहण करने के बाद युवक भीमराव को बड़ौदा रियासत को अपनी दस वर्ष की सेवाएं देगा l

28 वर्षीय वह युवक भीमराव विदेश से उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद अनुबंध के अनुसार अपनी सेवाएं देने के लिए बड़ौदा नरेश के दरबार में हाज़िर हुए l बड़ौदा नरेश ने उस युवक भीमराव की काबलियत को देखते हुए उसे सैनिक सचिव के पद पर तत्काल नियुक्त कर दिया l जातिवाद के कारण यह बात पूरी रियासत में फ़ैल गई, कि बड़ौदा नरेश ने एक अछूत व्यक्ति को सैनिक सचिव बना दिया है l

जातिवाद का प्रभाव इस कद्र हावी था कि सैनिक सचिव के महत्वपूर्ण पद पर भीमराव के नियुक्त होने के बावजूद उनके अधीन कार्यरत कर्मचारी उन्हें फाइल देनी होती तो दूर से ही फाइल फेंक देते थे और चपरासी उन्हें पीने के लिए पानी भी नहीं देता था l रियासत के दीवान को बड़ौदा नरेश ने आदेश दिया कि उच्च अधिकारी भीमराव के रहने की उचित व्यवस्था की जाये, लेकिन दीवान ने बड़ौदा नरेश को स्पष्ट ही इंकार कर दिया था l

जातिवाद के जहर के कारण उच्च अधिकारी भीमराव को रहने के लिए रियासत की किसी हिन्दू लॉज या धर्मशाला में भी उन्हें जगह नही मिली l आखिरकार उच्च अधिकारी भीमराव ने एक फारसी धर्मशाला में अपना असली नाम छुपाकर एवं फारसी नाम एदल सरोबजी बता कर दैनिक किराये की दर पर रहने लगा l लेकिन जातिवाद के समर्थको की आँखों में यह बात चुबने लगी कि भीमराव को रहने की जगह कैसे मिल गई और उन्होंने जातिवाद के बल पर फारसी धर्मशाला में आकर लाठी-डण्डे से उनपर हमला कर जातिसूचक शब्दों से अपमानित किया और सामान निकालकर सड़क पर फेंक दिया l विवश हो भीमराव ने दुखी मन से बड़ौदा नरेश को अपना त्याग पत्र सौंप दिया l

मुंबई जाने के लिए रेलवे स्टेशन पहुंचे, वहां मुंबई जाने वाली ट्रेन चार पांच घंटे विलम्ब से चल रही थी l इस कारण इन्तेजार करने के दौरान भीमराव कमेटी बाग़ के वट वृक्ष के निचे एकांत में बैठ कर फुट फुट कर रोया उस समय उस रुदन को सुनने वाला उस वृक्ष के सिवाय कोई न था l उनके मन में पीड़ा थी कि मैं विदेश से उच्च शिक्षित हूं, और योग्य, प्रतिभावान एवं सक्षम होकर भी वह जातिवाद के कारण उपेक्षित हूं तो देश के करोड़ों अछूत लोगों के साथ क्या हो रहा होगा?

23 सितम्बर 1917 को जब आंसू थमे तो भीमराव ने एक विराट संकल्प लिया अब मैं सारा जीवन इस देश से छुआछूत निवारण और समानता के लिए कार्य करूंगा तथा ऐसा नहीं कर पाया तो स्वयं को गोली मार लूंगा l वह एक साधारण संकल्प नहीं था बल्कि सम्यक संकल्प था l हम रोज ही संकल्प लेते हैं और रात गयी बात गयी की तरह भूल जाते हैं लेकिन न तो उस व्यक्ति के संकल्प साधारण थे और न वह व्यक्ति खुद साधारण था l कमेटी बाग़ के उस वट वृक्ष के नीचे असाधारण संकल्प लेने वाला व्यक्ति कोई और नहीं देश के महान सपूत डॉ. भीम राव अम्बेडकर थे l उनके इस संकल्प से उपजे संघर्ष ने भारत के करोड़ों लोगों के जीवन की दिशा बदल दी l

आज बाबा साहब के विराट संकल्प के 103 वर्ष के अवसर पर हम सब भी मिलकर संकल्प लें कि असमानता व अन्याय का हम प्रतिरोध/प्रतिकार करेंगे | आज संकल्प दिवस पर बाबा साहब के विराट संकल्प को ह्रदय से उनके चरणों मैं नमन करते हुवे, उस महामानव डॉ बाबा साहेब अम्बेडकर जी को कोटि-कोटि नमन !

 

Tuesday, September 22, 2020

फ़ातिमा शेख़ प्रथम भारतीय मुस्लिम शिक्षिका थी

 


फ़ातिमा शेख़ प्रथम भारतीय मुस्लिम शिक्षिका थी, जो सामाजिक सुधारकों ज्योतिराव फुले और सावित्रीबाई फुले की सहयोगी थी। फ़ातिमा शेख़ मियां उस्मान शेख की बहन थी, जिनके घर में ज्योतिराव फुले और सावित्रीबाई फुले ने निवास किया था, जब ज्योतिराव फुले के पिता ने अछूतों और महिलाओं के उत्थान के लिए किए जा रहे कार्यों की वजह से उनके परिवार को घर से निकाल दिया था।

फातिमा शेख आधुनिक भारत में सबसे पहली मुस्लिम महिला शिक्षिका थी और उन्होंने फुले के स्कूल में अछूत बच्चों को शिक्षित करना शुरू किया। सवर्णों ने ज्योतिराव फुले और सावित्रीबाई फुले, फातिमा शेख के साथ, अछूत समुदायों में शिक्षा फैलाने का आरोप लगाया।

फ़ातिमा शेख़ और सावित्रीबाई फुले ने महिलाओं और उत्पीड़ित जातियों के बच्चो को शिक्षा देना शुरू किया, स्थानीय लोगों द्वारा उन्हें धमकी दी गई। उनके परिवारों को भी निशाना बनाया गया और उन्हें अपनी सभी गतिविधियों को रोकना या अपना घर छोड़ने का विकल्प दिया गया ! उन्होंने स्पष्ट रूप से घर छोड़ने का चयन किया।

फूले दम्पत्ती को उनकी जाति और उनके परिवार और सामुदायिक सदस्यों ने उन्हें उनके इस काम में साथ नहीं दिया। उन्हें आस-पास के सभी लोगों द्वारा त्याग दिया गया ! फूले दम्पत्ती ने आश्रय की तलाश में और अछूत समाज के उत्पीड़न के लिए अपने शैक्षिक सपने को पूरा करने के लिए, अपनी खोज के दौरान, एक मुस्लिम समुदाय के उस्मान शेख के घर पहुंचे, जो पुणे के गंज पेठ में रह रहे थे ! उस्मान शेख ने फुले दम्पत्ती को अपने घर में रहने की पेशकश की और परिसर में एक स्कूल चलाने पर सहमति व्यक्त की तथा 1848 में उस्मान शेख और उसकी बहन फातिमा शेख के घर में एक स्कूल खोला गया था।

कोई आश्चर्य नहीं था कि पूना की ऊँची जाति से लगभग सभी लोग फ़ातिमा शेख  और सावित्रीबाई फुले के खिलाफ थे, और सामाजिक अपमान के कारण उन्हें रोकने की भी कोशिश की गई । वह उस्मान शेख ही थे जिन्होंने हर संभव तरीके से दृढ़ता से फूले दम्पत्ती का समर्थन किया।

फातिमा शेख ने सावित्रीबाई फुले के साथ उसी स्कूल में पढ़ना शुरू किया ! फातिमा शेख के भाई उस्मान शेख भी ज्योतिराव फुले और सावित्रीबाई फुले के आंदोलन से प्रेरित थे। उस्मान शेख ने अपनी बहन फातिमा को समाज में शिक्षा का प्रसार करने के लिए प्रोत्साहित किया।

जब फातिमा शेख और सावित्रीबाई ने स्कूलों में जाना शुरू कर दिया, तो पुणे के लोग उनको अपमानित करते थे । वे पत्थर फैंकते थे और गोबर व कीचड भी उन पर फैंका जाता था ! किन्तु फातिमा शेख सहित ज्योतिराव फुले और सावित्रीबाई फुले ने हिम्मत नहीं हारी और वे अपनी मंजिल की और बढ़ते चले गए और अपने लक्ष्य को हासिल किया !

माता फातिमा शेख के योगदान को कभी नहीं भूला जा सकता ! उनके जन्म दिवस 21 सितम्बर के अवसर पर गोपाल किरन समाजसेवी संस्था & Team उन्हें करोडो बार सादर नमन करते हैं !

(श्रीप्रकाश सिंह निमराजे)

संस्थापक एवं अध्यक्ष

गोपाल किरन समाजसेवी संस्था

ग्लोबल अचीवर्स अवॉर्ड 2020 हेतु नामांकन प्रक्रिया शुरू



 दिल्ली समाजहित एक्सप्रेस (रघुबीर सिंह गाड़ेगांवलिया) l ग्लोबल कॉन्क्लेव एवं ग्लोबल अवॉर्ड, भारत और नेपाल के सफल अयोजन के बाद अब गोपाल किरन समाज सेवी संस्था लेकर आयी है ‘ग्लोबल अचीवर्स अवॉर्ड 2020’ इस अवॉर्ड से देश की चुनिंदा शख्सियतों को सम्मानित किया जाएगा। यह अवॉर्ड ग्लोबल कॉन्क्लेव कार्यक्रम में प्रदान किया जायेगा। कार्यक्रम भारत के हृदय प्रदेश ग्वालियर शहर में नवम्बर,25-26 माह में आयोजित होगा।

इस अवार्ड हेतु समाज कल्याण, सामाजिक न्याय, महिला सशक्तिकरण, बाल अधिकार, शिक्षा, स्वास्थ्य, पर्यावरण, जल संरक्षण, स्वच्छता, साहित्य, उद्योग, खेलकूद, कला, कोरोना Work, Road Seftey, पत्रकारिता, एनजीओ क्षेत्र के या नए व्यापार आदि में नवाचार करने वालों को प्राथमिकता दी जाएगी।

उपरोक्त महत्वपूर्ण क्षेत्रों में उत्कृष्ट कार्य करने हेतु चुने गए व्यक्तियों एवं संस्थाओं को यह अवॉर्ड दिया जाएगा।

नामांकन प्रक्रिया:
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ग्लोबल अचीवर्स अवॉर्ड 2020 के नामांकन हेतु अपनी जानकारी (बॉयोडाटा, प्रोफाइल)
नीचे दिए गए ई-मेल एड्रेस पर भेजे जा सकते हैं।

अंतिम तिथि:-
31, अक्टूबर,2020

चयन प्रक्रिया :

ग्लोबल अचीवर्स अवॉर्ड 2020 हेतु अवार्डियों का चयन एक निर्धारित निर्णायक मंडल द्वारा किया जायेगा। निर्णायक मंडल का अंतिम निर्णय सर्वमान्य होगा। निर्णायक मंडल में साहित्यकार, पत्रकार, सेवानिवृत्त न्यायाधीश, प्रोफेसर, विधिवेत्ता व वरिष्ठ समाज सेवियों को शामिल किया गया है।

प्रतिभागी का विवरण निम्न प्रारूप में दिए जाएं:

1. पूरा नाम
2. आपके द्वारा किए जाने वाले कार्य
3. यदि आप संस्था से जुड़कर कार्य कर रहे हैं तो संस्था का नाम
4. आपका पूरा पता, मोबाइल नम्बर
एवं ईमेल आईडी
5. आपके द्वारा किए जाने वाले कार्यों के बारे में जानकारी एवं उसका प्रभाव (कुछ फोटोग्राफ्स एवं न्यूज़ के साथ)
Email: gksss85_org@rediffmail.com

समाज की सभी संस्थाओं में "एक व्यक्ति-एक पद-एक ही बार" नियुक्त/मनोनीत होना चाहिए-अनिल कुमार अकरनिया

 


दिल्ली समाजहित एक्सप्रेस (रघुबीर सिंह गाड़ेगांवलिया) l आज के युग में सामाजिक संस्थाओ का मुख्य उद्देश्य समाज के लोगो का शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक, आर्थिक तौर पर आधुनिक विकास करना है l रैगर समाज एक विकासशील समाज है और एक विकासशील समाज का यह लक्षण होता है कि वह निरंतर अपने आप को बदलता रहता है । अपनी पुरानी परंपराओ की दोबारा से व्याख्या करता है और नवीन विचारों को अपने वैज्ञानिक और आधुनिक पैमानों पर कस कर स्वीकारता है । रैगर समाज ने निरंतर इस प्रक्रिया को स्वीकार किया है ।

सामाजिक संस्थाओ का यह दायित्व और प्रयास होना चाहिए कि समाज में प्रत्येक व्यक्ति के प्रति समभाव हो, जो हर व्यक्ति के प्राकृतिक व संवैधानिक अधिकारों की पूर्ण रक्षा का भरोसा प्रदान करता हो और हरेक व्यक्ति को समाज में यथोचित सम्मान पाने के सभी अवसर समान रूप से उपलब्ध कराता हो । यानि सीधी-सी बात है समाज में सभी लोगों में समानता, सम्मान एवं सौहार्द का भाव हो l

रैगर समाज की सामाजिक संस्थाओ में समानता, सम्मान एवं सौहार्द के भाव बढ़ावा देने के लिए अनिल कुमार अकरनिया (कमांडेंट ITBP) ने अपने विचार समाज के लोगो के समक्ष रखे है जो इस प्रकार है :

रैगर समाज के प्रिय बंधुओं,

आजकल समाज की संस्थाओं के चुनावों में पैसे के दुरुपयोग एवं अनावश्यक खर्च को रोकने को लेकर काफी तर्क-वितर्क सामने आ रहे है। उक्त संदर्भ में समाज में चर्चा होना समाज में बढ़ रही जागरूकता का प्रतीक भी है। इस विषय में मेरा भी मानना है कि समाज की सभी संस्थाओं के पदाधिकारियों की नियुक्तियां/मनोनयन चुनाव के बजाए आपसी सहमति से ही होने चाहिए ताकि समाज का जो पैसा चुनावों में खर्च होता है, वो पैसा समाज के विकास में खर्च हो सके। साथ ही, ऐसे नियम भी बनने चाहिए :-

1. किसी भी सरकारी अधिकारी/कर्मचारी एवं किसी भी राजनीतिक पार्टी में किसी भी पद पर पदस्थ व्यक्ति को किसी भी संस्था में किसी भी पद पर नियुक्त/मनोनीत नहीं करना चाहिए, क्योंकि ऐसे लोग सामाजिक संस्थाओं में काम कम और गुटबाजी ज्यादा बढ़ावा देते है। अगर किसी को समाज सेवा करनी है तो वो निःस्वार्थ भाव से और बिना किसी पद के समाज सेवा करे। समाज सेवा के लिए किसी पद की क्या आवश्यकता है?

2. किसी भी सरकारी अधिकारी/कर्मचारी को किसी भी संस्था में किसी भी पद पर नियुक्त/मनोनीत से पहले यह जानकारी सावर्जनिक करना अनिवार्य होना चाहिए कि सरकारी पद पर कार्यरत रहते हुए उसके द्वारा समाजहित में क्या-क्या कार्य किये गये और उसका समाज के प्रति क्या योगदान रहा, जैसे:-समाज के किसी बच्चे की सरकारी या अपने विभाग में नौकरी लगवाना आदि।

3. किसी भी व्यक्ति को सामाजिक संस्थाओं में किसी भी पद पर नियुक्त/मनोनीत करने से पहले उसके द्वारा पूर्व में की गई समाज सेवा की जानकारी और समाज के प्रति हासिल की गई उपलब्धियों की जानकारी सावर्जनिक करना अनिवार्य होना चाहिये।

4. जिस भी व्यक्ति को नियुक्त/मनोनीत किया जाये, वो किसी भी अन्य संस्था में किसी भी पद पर पदाधिकारी/सदस्य नहीं होना चाहिये और ना ही उसने संस्था के नाम पर अपनी कोई दुकान खोल रखी हो।

5. किसी भी व्यक्ति को किसी भी संस्था में किसी भी पद पर नियुक्त/मनोनीत करने से पहले एक शपथ पत्र लिया जाये कि, यदि वो संस्था में नियुक्त/मनोनीत के अन्य संस्थाओं/संस्था में बतौर पदाधिकारी/सदस्य पाया जाता है तो उसकी नियुक्ति/मनोयन तत्काल प्रभाव से रदद् कर दिया जाये।

6. एक व्यक्ति को एक संस्था में एक बार ही नियुक्त/मनोनीत किया जाये। एक ही व्यक्ति को बार-बार एक ही संस्था में अलग-अलग पदों पर नियुक्ति/मनोनीत न किया जाये।

"एक व्यक्ति - एक पद - एक ही बार" की नीति का सख्ती से अनुशरण किया जाये।

Sunday, September 20, 2020

रैगर छात्रावास प्रबंध समिति की कार्यकारिणी का चुनाव सर्वसम्मति से होना चाहिए - लोकेश सोनवाल

 


दिल्ली समाजहित एक्सप्रेस (रघुबीर सिंह गाड़ेगांवलिया) l रैगर समाज की शिक्षा के मामले में जानी-पहचानी संस्था रैगर छात्रावास प्रबंध समिति के चुनाव का समय आगामी 27 नवंबर तय हो चुका है । ये चर्चा ज़ोरों से चल रही है कि पदाधिकारियों का चयन मतदान द्वारा किया जाए या सर्वसम्मति से । चुनाव का मतलब समिति के शीर्ष नेतृत्व के रूप में पदाधिकारियों का चयन करना l समाज द्वारा चुने जाने वाले पदाधिकारियों के बारे में यह देखना होगा कि उम्मीदवार शिक्षा और सामज के प्रति सकारत्मक सोच रखता हो, और समाज की छोटी-बड़ी हर समस्या और समाधान के लिए जागरूक,ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ हो l अगर समाज के अनुभवी लोग इन बातों को ध्यान में रखकर समझदारी से ऐसे उम्मीदवारों का चयन चाहे मतदान से या सर्वसम्मति से करते है तो वे दोनों ही प्रक्रिया समाजहित में होगी ।

समाज के कुछ प्रबुद्ध लोगो का मानना है कि मतदान द्वारा चुनाव प्रक्रिया से समाज पर समय और अर्थ दोनों का भार बढ़ता है । चुनाव द्वंद्व-युद्ध है, इससे समाज में मतभेद और मनभेद बढ़ते है जिससे समाज की एकता भंग होती है l सुलझे हुए समझदार सामाजिक कार्यकर्ता कभी भी समय और अर्थ का बोझ समाज पर नहीं डालना चाहते हैं और न ही समाज की एकता भंग करना चाहते हैं, इसलिए  मतदान से चुनाव के स्थान पर सर्वसम्मति से चयन को महत्व देते हैं ।

रैगर समाज के लोकेश सोनवाल (अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक) ने रैगर छात्रावास प्रबंध समिति के चुनाव के विषय में अपने विचार लिखित में समाज के समुख रखे है जो निम्न प्रकार से है :-

रैगर समाज के सम्मानित वरिष्ठजनों, भाईयों और बहनों,

जैसा कि विदित है रैगर छात्रावास प्रबंध समिति ने आगामी 27 नवंबर को चुनाव करवाने का निर्णय लिया है । लोकतांत्रिक रूप से निर्णय स्वागत योग्य है । मैंने अपने जीवन के 50 साल समाज की सेवा में न्योछावर किये हैं, इन पचास सालों के अनुभवो के आधार पर मैं समाज से निम्नलिखित निवेदन करना चाहता हूँ।

1. पिछले दो चुनावों में देखने में आया समाज के दो गुट बनकर पैनल बनाकर चुनाव होने लगे हैं जिससे समाज दो से अधिक धड़ों में बंट गया ।

2. दानदाताओं की खून पसीने की बड़ी कमाई को चुनावी खर्चे के रूप खर्च करने का चलन होने लगा है रिकार्ड के अनुसार करीब डेढ़ से दो लाख छात्रावास कोष से खर्च हो रहे है । चुनाव प्रबंध में लगे कार्मिक दस हज़ार से बीस हज़ार तक कमा लेता है ।

3. चुनाव लड़ने वाले पैनल क़रीब तीन तीन लाख खर्च करके चुनाव लड़ता है । इसप्रकार क़रीब एक चुनाव में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से क़रीब दस लाख रूपए चुनाव में खर्च हो रहे हैं यानि दोनों चुनाव में क़रीब 15 से 20 लाख खर्च हो रहे हैं ।

4. चुनाव जीतने के बाद छात्रावास का पैसा खर्च करके छात्रावास के विकास के लिए चंदा एकत्रित करने जाते हैं ।

5. फिर कार्यकारिणी चुनाव जीत कर छात्रावास में दो महँगे कार्मिकों को नियुक्त कर उन लोगों को रोज़गार देकर स्वयं समाज सेवा से फ़्री हो जाती है l

6. यदि हम इन सब बातों पर गौर करें तो निष्कर्ष यह निकलता है कि गरीब समाज के लिए ऐसा चुनाव दोहरी मार करता है । होना यह चाहिए कि Pay-back Society के सिद्धांत पर जो लोग समाज सेवा के लिए आएँ वे किसी कार्मिक को बिना प्रतिफल दिए स्वयं कार्य करें, हमारे समाज में निःशुल्क सेवा करने वालों की कमी नहीं है।

7. चुनाव खर्च बचाने के लिए हमें सर्वसम्मति से कार्यकारिणी का चयन करना चाहिए इसप्रकार हम आगामी कार्यकारिणी के लिए कम से 10 लाख रूपये की बचत कर समाज सेवा कर सकते हैं । समाज की निःशुल्क सेवा करने वाले लोग और जिनके पास सेवा करने का समय हो उन लोगों को ही हमें कार्यकारिणी में लाना चाहिए ।

इन सब विषयों पर मंथन करने के लिए शीघ्र ही एक खुली मीटिंग का आयोजन हो ।

सादर

लोकेश सोनवाल

अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक

समाज का सजग प्रहरी ।